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वि० सं० ५२०-५५८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
सोस के तौर पर दिया था और उसने देवी सञ्चायिका की सहायता से इस नगर का निर्माण किया था जिसके लिये वंशावलियों में विस्तार से लिखा है इसका समय विक्रम की पहली शताब्दि का है। आदित्यनाग के जैन धर्मी होने के बाद ४१३ वर्ष में तेरहवीं पुश्त में शिवनाग हुए। शिवनाग की वंश परम्परा १२ पुश्त तक नागपुर में राज किया था जिन्होंकी नामावली इस प्रकार है-- १ शिवनाग- इसने नागपुर आबाद किया और भगवान महावीर का मन्दिर बना कर आचार्य
कक सूरि के कर कमलों से प्रतिष्ठा करवाई। २ भोजनाग-इसने तीर्थों की यात्रार्थ नागपुर से संघ निकाला। ३ वभूनाग-यह बड़ा ही वीर शासक हुए और धर्म का भी प्रचारक था। ४ सत्य नाग-प्राचार्य श्री रत्नप्रभ सूरि के स्वागत में एक लक्ष्य द्रव्य व्यय किया था ।
५ सहसनाग-इसने भ० आदीश्वर का मन्दिर बना कर प्रतिष्टा करवाई । .६ भूलनाग-यह बडा ही युद्ध कुशल राजा था इसने अपनी राज सीमा को थली में बहुत बढ़ाई।
७ अरुणनाग-इसने श्री शत्रुजय का संघ निकला। ८ भोलानाग-इसके शासन में एक श्रमण सभा हुई।
९ केतुनाग-इसके ११ पुत्र थे जिसमें हल्ला ने सूरिजी के चरणों में दीक्षा ली जिसके महोत्सव में पांच लक्ष्य द्रव्य व्यव हुए।
१० दाहडनाग-इसने श्री शत्रुजयादि तीर्थ की यात्रा की। ११ मागुं इसकी-राणी छोगाइ ने एक तलाब खुदाया था।
१२ शिवनाग (२)-यह राना विलासी था राज की अपेक्षा भोग विलास में मग्न रहता था और जनता को बडी त्रास देता था अतः उपकेशपुर के राव मूलदेव ने इस पर चढ़ाई कर शिवनाग को पराजय कर नागपुर का राज अपने राज में मिला लिया तब से नागपुर उपकेशपुर के अधिकार में आगया नागपुर में आदित्यनाग गौत्र वालों की बहुत विशाल संख्या थी कहते हैं कि
नागवंशी ने नगर बसाया, देवी साचल आशी
श्राधा में आदित्यनाग, आधा में पुरबासी । नागपुर की हकीकत में अधिक आदित्यनाग वंशियों की ही मिलती है चोरडिया गुलेच्छा गदाइया पारख यह सब आदित्यनाग वंश की शाखाएँ। हैं पन्द्रहवीं सोलहवीं शताब्दी नागपुर में आदित्वनाग-चोरडियों के तीन चार हजार घर बड़े ही समृद्ध थे ऐसा वंशावलियों में पाया जाता है
इनके अलावा सिंध में राव रुद्राट् उसके पुत्र कक ने आचार्य यक्षदेव सूरि के पास दीक्षा ली और उनके उत्तराधिकारियों ने भी कई पुश्त तक जैन धर्म का वीरता पूर्वक पालन किया तथा कच्छ भद्रावती नगरी के राजपुत्र देवगुप्त ने आचार्य ककसूरि के पास जैन दीक्षा ली थी और भद्रावती का राजघराना जैन धर्म को स्वीकार कर उसका ही प्रचार किया था तथा उस समय के और भी अनेक राजाओं ने जैन धर्म को अपना कर उसका ही पालन एवं प्रचार किया था इतना ही क्यों पर उस समय भारत में पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण तक जैन धर्म का काफी प्रचार था।
नागपुर का राजवंश
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