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________________ आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० ९२०-९५८ RAAMAYAsmrushArAARMAnnar ३२० ४५५ ० राजाओं के नाम ई० सं० समम १ श्री गुप्तराजा २ घटोत्कच्छ २. इस समयावली के साथ श्रीमान् ३ चन्द्रगुप्त ३२० ३३० १० | पं० गौरीशंकरजी श्रोमा की दी हुई ४ समुद्रगुप्त ३३० ३७५ ४५ | समयावलि का मिलान करने में बहुत ५ चन्द्रगुप्त (२) ६७५ ४१३ ३८ | अन्तर पाता है शायद शाह ने अनुमान ६ कुमार गुप्त ४१३ ४२ | से समयावलि लिखी होगी विद्वान वर्ग ७ रकन्द गुप्त ४५५ ४८० २५ | इस पर विचार करेगा। ८ कुमार गुप्त (२) ४८० ४९० ९ बुद्ध गुप्त १. भानु गुप्त गुप्तों के बाद आवंती प्रदेश पर हूणों ने भी राज किया था। १-हूण राजा तोरमाण ई० स० ४९० ५२० २-,, मिहिरकुल , ५२० ५३० हूणों के पश्चात आवंती पर प्रदेशियों की हुकूमत बिलकुल उठ गई और परमार जाति के राजपूतों ने सिंहासन को संभाला वे वर्तमान समय तक राज करते ही आये हैं जिन्हों की वंशावली फिर आगे के पृष्ठों पर दी जायगी। -गुप्तवंशी राजाओं ने अपना संवत् भी चलया था विद्वानों का मत है कि ई० सं० ३१९.२० में गुप्तों ने अपना संवत् चलाया डा० बुलार कहना है कि गुप्तवंश के राजाओं के तीन लेख मिला है किसमें एक शिलालेख अथुरा को जैनमूर्ति पर है जिसका भावार्थ यह है कि "जय हो कोटियगण विद्याधर शाखा के इत्तिलाचार्य के उपदेश से वर्ष ३ महान शासक विख्यात चक्रवर्ती राजा कुमारगुप्त के राजकाल के बीसवें दिन कार्तिक मास के दिन भट्टी भवानो की पुत्री और खारवा गृह मित्र हालीत की पत्नि समाडचा ने यह प्रतिमा पधराई थी" दूसरे लेखों की स्थिति ऐसी नहीं कि वह साफ पढ़ा जाय सथापि उसमें मन्दिर बनाने का तथा जीर्णोद्धार करने का उल्लेख है। -गुप्तवंश के राजा हरिगुप्त मौर देवगुप्त के सिक्के मिले हैं हरिगुप्त-देवगपत मे जैमधर्म की श्रमण दीक्षा ली थी और हरिगुप्तसूरि के उपदेश से हूण तोरमण जैनधर्म का अनुरागी बना था तथा दैवगुप्ताचार्य एक बड़ा भारी विद्वान एवं कवि था इनके लिये कुवलयमाला कथा में उल्लेख मिलता है ४-अंगदेश इस देश की राजधानी चम्पा नगरी कही जाती है जहां बारहवें तीर्थकर भ० वासपूज्य का निर्वाण कल्याणक हुआ था पर वर्तमान में कई लोगों ने मगद देश की चम्पा नगरी को ही अंग देश की चम्पा नगरी मानली है वास्तव में मगद देश की चम्पा नगरी अलग है और अंग देश की चम्पा नगी अलग है अत: यह कल्पना की गई है और इस प्रकार अपनी सुविधा के लिये स्थापना नगरिया मानली जाती है वरना अंग देश मगद से पृथक एबं मगद के पड़ोस में पाया हुआ है और अंग देश की चम्पा नगरी के स्थान वर्तमान में भारहूत नाम का एक छोटा सा प्राम है जहां पर जैनों के बहुत से स्तूप वर्तमान में भी विद्यमान है कई लोगों का मत है कि भारहूत स्तूप बौद्ध धर्म का है पर श्रीमान् शाह ने गुप्तवंशी राजाओं की वंशावली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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