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वि० सं० ५२०-५५८ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
वर्ष
२६३ २६५
१८५
नं० राजा
समय ई० सं० वर्ष नं० राजा समय ई० सं० १ षमिति
११७ १४ । ९ दामसेन २४८ २६३ २ चष्टान
११७ १५२ ३५ | १० यशोदमन
२६५ ३ रुद्रदमन १५२ १८५ ३३ / ११ विजयसेन
२७५ ४ दामजाद श्री
२१ । १२ दामजाद श्री २७५ २८० ५ रुद्रसिंह २०६ २२२ १६ | १३ रुद्रसेन (२) २८० ३०१ २१ ६ जीवदमन
२२५ ३ | १४ विश्वसिंह ३०१ ३०४ ७ रुद्रसेन २२५ २४७ २२, १५ भर्तृदामन ३०४ ३२० १६ ८ संघदमन २४७ २४८ १
-त्रि० ले० शाह के पुस्तकानुसार पश्चिम के क्षत्रिपो की वंशावली १-नहापन
१५-विजयसेन २३९-२४९ २-चसथान १३०-१४० | १६-दमजादी २५०-२५५ ३-जयदमन १४०-१४३ १७-रुद्रसेन
२५६-२७२ ४-रूद्रदमन १४३-१५८ १८-विश्वसिंह २७२-२७८ ५-दामजादश्री १५८-१६८ १९-मत दमन २७८-२९४ ६-जीवदामन १६८-१८१ २०-विश्वसेन २९४ -३०० ७- रूदृसिंह (२) १८१-१९६ २१- रूद्रसिंह
०००-३११ ८.-रूद्रसेन २०३-२२० २२-यशदमन
८०६-३२० ९-तृथ्वीसेन २२-२२३ २३-दामश्री
३२० १०-संघदमन २२२-२२६ २४-रूद्रसेन
३४८-३७६ ११-दामसेन २२६-२३६ २५-रूद्रसेन ३७८-३८८ १२- दामजादश्री
२३६ २६-सिंहसेन १३-वीरदमन २३६-२३८
२७-रकन्द १४- यशःदमन २३८-२३९ | "बंबाई प्र. जै० स्मारक पृ. १८२ पर से मैंने इस विषय की कई वशावलियों देखो पर उसमें समय का अन्तर सर्वत्र पाया जाता है।
+ श्री विश्वेश्वरनाथ रेऊ लिखित 'भारत का राजवंश' नामक पुस्तक में चष्टानवंशी राजाओं की वंशावली दै है पर ऊपर लिखे समय से कुछ अन्तर है इसका मुख्य कारण उस समय के इतिहास का अभाव है।
चष्टानवंशी क्षत्रिप महाक्षत्रिप के पश्चात श्रावती की गादी पर गुप्तवंशी राजाओं ने भी राज किया है इन गुप्तवंशी राजाओं के भी बहुत से सिक्के मिले हैं जिसको हम सिका प्रकरण में नल्लेख करेंगे कि गुप्तवंशी राजाओं में भी जैनधर्म को अच्छ। स्थान मिला था उन राजाओं की वंशावलियां निम्न लिखित है९६२
क्षत्रपों की वंशावली
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