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वि० सं० ५२०-५५८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
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बहुत प्रमाणों से उस स्तूप को जैन स्तूप साबित किया है इतना ही क्यों पर शाह ने तो यहां तक बतलाया है कि भ० महावीर को केवल ज्ञान इसी स्थान पर उत्पन्न हुआ था और उसकी स्मृति के लिये ही भक्त भावुकों ने यह स्तूप बनाया था राज प्रसेनजित और सम्राट कूणिक ने वहां पर स्तम्भ बना कर शिला लेख खुदवाया था वह आज भी विद्यमान है अतः उस स्तूप को जैन स्तूप मानने में किसी प्रकार की शंका नही रह जाती है इस स्तूप के विषय में हम आगे चलकर स्तूप प्रकरण में विशेष उल्लेख करेंगे।
राजा श्रोणिक ने अपनी राजधानी राजगृह नगर में स्थापन की थी जब राजा. कूणिक मगद पति बना सब उसने अपनी राजधानी चम्पा नगरी में ले आया था इसका कारण राजा कूणिक के जरिये राजा श्रोणिक की मृत्यु बहुत बुरी हालत में हुई थी अतः कूणिक का दिल राजगृह नगर में नहीं लगता था दूसरा चम्पा नगरी एक तीर्थ रूप भी था कारण भ० वासुपूज्य का निर्वाण कल्याणक तो था ही पर नजदीक के समय में भ० महावीर का केवल कल्याणक भी वही हुआ था अतः उसने अपनी राजधानी के लिये चम्पा नगरी को ही पसन्द की पर उस समय चम्पा नगरी एक भग्न नगर के खण्डहर के रूप में थी इसका कारण यह था कि
चन्पा नगरी में राजा दधिवाहन राज करता था उसका विवाह भी वैशाला नगरी के राजा चेटक की पुत्री पद्मावती के साथ हुआ था जब रानी पद्मावती गर्भवती हुई तो उसको दोहला उत्पन्न हुआ कि मैं राजा के साथ हस्ती को अंबाडी पर बैठ कर जंगल की सैर करूं । जब राणी ने अपने दोहला का हाल राजा को कहा तो राजा ने सब तरह से तैयारी करवा कर रानी के साथ हस्ती पर बैठ कर जंगल की सैर करने को गये पर न जाने क्या भवितव्यता थी कि हस्ती मद में श्राकर जंगल में इस प्रकार दौड़ना शुरू किया कि उसने महावत के अंकुश की भी परवाह नहीं की और खूब जोरों से दौड़ने लगा जब एक वृक्ष आया तो राजा ने उसकी शाखा पकड़ कर हरती से उतर गया पर रानी तो हस्ती की अंबाडी में बैठी हो रही और हस्ती ज्यों का त्यों मद में दौड़ता ही रहा
__ जब अंग देश की सीमा को उल्लंघ हस्ती वंशदेश की सीमा में पहुँच गया तो थकावट के मारा हस्ती स्वयं खड़ा रह गया रानी उतर कर नीचे आई तो भयंकर जंगल ही जंगल दीखने लगा थोड़ी दूर गई तो तापसों के आश्रम आये रानी तापसों के पास जाकर अपनी सब हालत सुनाई इस पर तापसों ने रानी को नेक सलाह दी कि माता तुम यहां से वंश देश की राजधानी दान्तीपुर नगर चले जाओ वहां से अंगदेश जाने में आपको सुविधा रहेगी। रानी तापसों के कहने पर उसी रास्ते रवाना हो गई भाग्यवसात रास्ते में साग्वियां मिली रानी ने उनको भक्ति के साथ वन्दन किया बाद रानी को योग्य घराने की जान साध्वी ने उपदेश दिया जिसमें संसार का असारत्व और दीक्षा की उपादयत्व बतलाया जिसका प्रभाव गनी की आत्मा पर इस कदर हुआ कि उसने उसी समय साध्वियों के पास जैन दीक्षा स्वीकार करली
और साध्वियों के साथ बिहार कर दिया पर कुछ समय से साध्वी पद्मावती के शरीर में गर्भ के चिन्ह प्रकट होने लगे तब गुरुणी ने उसे पूछा साध्वी ने अपनी सब हिस्ट्री कह सुनाई इस पर गुरुणी ने कहा कि बहिन ! ऐसा ही था तो हमको पहले कहना था ? पद्मावती ने कहा कि यदि मैं पहले कह देती तो श्राप मुझे दीक्षा कब दे देते यदि मुझे दीक्षा नहीं देते तो मेरे जैसी निराधार रूप सम्पन्न युवा स्त्री का क्या हाल होता इत्यादि । खैर गुरुणी अच्छी समयज्ञ थी कि किसी योग्य गृहस्थ को सूचित कर उसका प्रबन्ध करवा
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चम्पा नगरी का राजा करकंड
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