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________________ वि० सं० ५२०-५५८ वर्ष ] ७ -- उज्जैन नगरी से बाप्पनाग गौ० गोकल ने ८- आघाट नगर से विंचट गौ० पेथा ने ९ - कीटकुंप से श्रेष्ट गौ० शाह सुंघा ने १० - खटकुप से सुचंती गौ० शाह चैना ने ११- वीरपुर नगर से भाद्र गौ० शाह सांकला ने [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास Jain Education International " 27 "" "" " "" "" "" " "" " " " 35 For Private & Personal Use Only "1 19 11 १२ -- स्तम्मनपुर से श्रीमाल शाह पूरण ने 15 37 १३ – उपकेशपुर के श्रेष्ट गौत्रीय रावनारायण ने दुकाल में शत्रुकार दिया १४ -- चन्द्रावती का प्राग्वट काना दुकाल में शत्रुकार दिया १५ - सत्यपुर के भूरि गौ भावडा ने दुकाल में शत्रुकार दिया 7 उसकी स्त्री १६ - भिन्नमाल के श्रीमाल केरा की पुत्री हाला ने एक तालाब खुदाया १७- नागपुर के आदित्यनाग चाहड की स्त्री चहाडी ने एक तालाब बनाया १८ - उपकेशपुर के बाप्पनाग ऊमा युद्ध में काम आया १९ - माडव्यपुर के डिडू गौ देपाल संग्राम में काम आया २० - मुग्धपुर के सुचंती गौ० मंत्री मोकल २१ - कोरंटपुर के प्राग्वट० टावा २२ - भिन्नमाल के चरड़ गौ० लाढ़क २३- चन्द्रावती के भाद्र गौ० जैता २४ - चित्रकोट के कुमट गौ ० भूकार २५ - श्राघाट नगर के बलाह गौ० शाह भादू २६ - जावलीपुर के श्रेष्ठ गौ: शाह नोंधण २७- नारदपुरी के प्राग्वट मंत्री जिनदास 35 इत्यादि पट्टावलीकारो ने अनेक उदार नररत्नों की उदारता और वीर योद्धों की वीरता का पूर्ण परिचय करवाया है इससे पाठक समझ सकेंगे कि पूर्व जमाने का जैनसमाज वर्तमान जैनसमाज के जैसा नही था पर वे जिस काम को हाथ में लेते थे उसको सर्वांग सुन्दर बना देते थे धन में तो वे कुबेरही कहलाते थे तब युद्ध राम लक्ष्मण का कार्य कर बतलाते थे व्यापार में तो वे इतने सिद्ध हस्त थे कि उनकी बराबरी करने वाला संसार भर में खोजने पर भी शायद ही मिला सकता था ? यही कारण है कि उस व्यापार में न्यायोपार्जित द्रव्य को वे सद्कार्य में खुल्ले दिल से व्यय किया करते थे उस समय धर्म कार्यो में मन्दिर बनाना, संघ निकालना, दुकाल आदि में देश वासी भाइयों की सहायता करना ही विशेष समझा जाता था श्रव यहां पर उन उदार पुरुषों की उदारता का थोडा परिचय करवा दिया जाता है । 19 19 " "" 27 "" 27 " "3 "" 39 33 " 29 19 17 "" "" " " 33 प्राचार्य श्री के शासन में मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्टाएँ १ - शाकम्भरी के भाद्रगौत्रीय २ - पोसनपुर के श्रेष्टिगो ० शाह श्रमर के के " सुरजन सूरिजी के शासन में मन्दिरों की प्रतिष्ठा ] " "" " 39 "" 29 22 सती हुई "" "" " 19 33 "1 ラン 39 35 बनाये महावीर की प्रतिष्ठा करवाई बनाये पार्श्व० "" १९ www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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