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________________ वि० सं० ५२०-५५८ वर्ष ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास नारा ने और अपनी विद्या एवं जैनधर्म के सिद्धान्त का उपदेश कर अनेक भव्यों को जैन धर्म की दीक्षा दी सूरिजी के शासन में ऐसे अनेक मुनि रत्न थे वे सदैव शासोन्नति किया करते थे। आचार्य सिद्धसूरि ने अपने ३८ वर्ष के शासन में जैनधर्म की कीमती सेवा की उन्होंने पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक विहार कर जैनधर्म का खूब प्रचार बढ़ाया अनेक भावुकों को दीक्षा दी कई अजैनों को जैन बनाये जिसमें सेठ सालग और राबहुल्ला का वर्णन पाठक पढ़ चुके हैं फिर साधारण जनता की तो संख्या ही कितनी होगी। तथा कई बार यात्रार्थ तीयों के संघ और अनेक मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई इन सब बातों का पट्टावली श्रादि प्रन्थों के विस्तार से वर्णन मिलता है उनके अन्दर से मैं यहाँ कतिपय नामोल्लेख कर देता हूँ जिससे पाठक आसानी से समझ सकेंगे कि पूर्वाचार्य के मन मन्दिर में जैनधर्म का प्रचार एवं उन्नति करने की कितनी लग्न थी क्या वर्तमान के सूरीश्वर उनका थोड़ा भी अनुकरण करेंगे ? प्राचार्य श्री के शासन में भावुकों की दीक्षाएँ । १-उपकेशपुर के श्रष्टिगोत्र शाह जेहल ने सूरिजी. दीक्षा २-माडव्यपुर के विरहटगौ० , खुमाण ने , ३-क्षत्रीपुरा के भूरिगौ० , देशल ४-आसिकादुर्ग के श्रेष्टिगो० , ५-खटकुंप नगर के आदित्यनाग शाह नारद ने ६-मुग्धपुर बाप्पनाग रावल ने ७-नागपुर के चोरलिया. पुग ८-पद्मावती __ के सुचंतिगी० खूमा ने ९-हर्षपुर के मल्लगी० देदा ने १०- कुर्चरपुर चरडगी. नाथा ने ११-शाकम्भरी के बलहागौ० १२-मेदनीपुर के सुघड़ गौ० चोला ने १३-फल वृद्धि के रांका जाति १४-विराटनगर के तप्तभट्टगौ० लाला ने १५-मथुरापुरी के करणादृगौ० कुभा ने १६-बनारस के पोकरणा जाति , काल्हण ने १७-ताकोली के कुलभद्रगो. नागदेव ने १८-जावोसी के श्रीश्रीमाल चाम्पा ने १९-लोहाकोट के श्रेष्टिगौ० , वीरदेव ने २०-शालीपुर के भाद्र गौत्र , कानड़ ने २१-डामरेल के चिचटगी० , नागड़ ने सरिजी के शासन में भावुकों की दीक्षाएं ] ६१७ दुधा ने हीरा ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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