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वि० सं०-५२०-५५८ वर्षे ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
नियुक्त करना चाहिये तब ही राज्य की रक्षा हो सकेगी। बस राजा कानों के कच्चे तो होते ही हैं उन वाममार्गियों के कहने से तमाम महाजनों को हटा कर मांस भोगी अर्थात् वाममार्गियों को उच्च उच्च पदो पर नियुक्त कर दिये बस वाममार्गियों के मनोरथ सफल हो गये। पर महाजनों को इस बात का तनिक भी दुःख नहीं हुआ वे सूरिजी की सेवा में अधिक अवकाश मिलने से अपना अहोभाग्य समझने लगे।
म्लेच्छों की सेना ने नजदीक आकर उपकेशपुर पर धावा बोल दिया इधर रावहुल्ला की ओर से भी सेना तैयार कर म्लेच्छों का सामना किया गया पर वे उसमें सफल न हो सके क्योंकि पहला तो उनमें शिक्षा का अभाव था दूसरे सेना का संचालन करने वाला भी इतना बुद्धिमान नहीं था पहिला दिन तो ज्यों त्यों कर बिताया पर रावहल्ला घबरा गया और उसको विजय की भाशा भी नहीं रही अतः वह हताश होकर विचारने लगा कि अब क्या करना चाहिये जब रावजी ने वाममार्गियों से परामर्श किया तो वे विचारे क्या करने वाले थे फिर भी उनके कहने से उत्साहित हो दूसरे दिन स्वयं रावजी सेना के संचालक बन म्लेच्छों से लड़ने लगे पर उसमें भी म्लेच्छों की पराजय नही हुई जब रावजी रतवास में गये तो उनके चेहरे पर गहरी उदासीनता थी। रानियों ने पूछा तो रावजी ने सब हाल सुनाया इस पर एक रानी जो 'जैनधर्मोपासिका थी उसने कहा कि आपने महाजनों को रजा देकर बड़ी भारी भूल की है जिसका ही परिणाम है कि आज आपको हताश होना पड़ा है मेरा तो खयाल है कि अब भी आप महाजनों को बुलवाकर यह कार्य उनके सुपर्द कर दीजिये ? रावजी ने कहा कि महाजन लोग शाकबाजी के खाने वाले युद्ध में क्या कर सकेंगे वे केवल हुकूमत की बातें कर जानते हैं । रानी ने कहा खावन्दों ! यह तो आप का व्यर्थ भ्रम है महाजन लोग खास तो गजपूत ही हैं साथ में कार्य कुशल भी हैं दूसरे मांस भोजियों में ताकत होना और शाकमोजियों में न होना यह भी भ्रम ही है। समय पर बल काम नहीं देता है उतना काम अकल बुद्धि दे सकती है अतः श्राप महाजनों को बुलाकर यह कार्य उनको सौंप दीजिये इत्यादि । रावजी ने रानी के कहने पर ध्यान देकर महाजनों को बुलाकर कहा कि नगर पर आफत आ पड़ी है इसमें आप लोग क्या मदद कर सकते हो ? महाजनों ने कहा कि हमारी नशों में जैसे राजपूती का खून भरा है वैसे राज का अन्नजल भी हमारी नशों में भरा हुआ है आपने तो हम लोगो को बुलाकर कहा है पर हम लोगों ने कल के लिये तैयारियां कर रखी हैं इत्यादि महाजनों के कथन को सुनकर रावजी को बड़ी खुशी हुई और वामियों के कहने से महाजनों को रजा देने का बड़ा पश्चाताप करना पड़ा खैर रावजी ने कहा आप स्वामी धर्मी है श्राप पर हमारे परम्परा गत पूर्वजों का पूर्ण विश्वास भी था और कईबार आपके पूर्वजों ने रण भूमि में वीरता पूर्वक विजय भी प्राप्त की थी अब आप अपने २ आसन को संभालो और यह राज आपके ही भरोसे है इत्यादि सन्मान पूर्वक महाजनों को पुनः अधिकार सुपुर्द किया। बस फिर तो था ही क्या महाजन मुत्सहियों ने अपनी सेना को सज-धज कर मोरचा बांधा और आप उसके संचालन बन गये सूर्योदय होते ही एक ओर मन्दिरों में रावजी की ओर से स्नात्र महोत्सव शुरू करवा दिया और दूसरी ओर अमल की गीरणिये चढ़ा दी बस सैनिक लोग खूब अमल पान कर केशरिया जामा पहन कर रणभूमि में इस प्रकार टूट पड़े पड़े कि जैसे बाज के ऊपर तीतर टूट पड़ता है इधर रणभेरी और युद्ध के झूमाओं बाजा बाज रहे और उधर चारण भाट जोशीले शब्दों में विरूदावली बोल रहे थे महाजनों के हाथों से जैसी कलम जोर से चलती थी आज रणभूमि में तलवार एवं बाण चल रहे थे बस देखते देखते में दुश्मनों के पैर छुड़ा दिये कितनेक भाग
[ उपकेशपुर पर म्लेच्छों का आक्रमण
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