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________________ आचार्य सिद्धसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् १२०-६५८ सेठ सालग ब्राह्मणों के उपदेश से उस समय एक वृहद् यज्ञ करने वाला था ब्राह्मण लोगों को बड़ी वड़ी आशाएं थी पर जब ब्राह्मणों ने सुना की सेठ सालग आज जैनों के व्याख्यान में गया है तो उनके दिल में कई प्रकार की शंकाएं उद्भव होने लगी कि सेठ जैनों के वहां जाकर कहीं नास्तिक न बन जाय अतः वे चल कर सेठ के वहाँ आये और आशीर्वाद देकर कहने लगे क्यों सेठजी ? आप आज जैनों के वहाँ व्याख्यान सुनने गये थे ? सेठजी-हाँ महाराज ! मैं आज बहुत लोगों के आग्रह से वहाँ गया था--- ब्राह्मण--भला ! आप हमारे धर्म के अग्रेसर होकर उन नास्तिक जैनों के व्याख्यान में चले गये तब साधारण लोग वहाँ जावें इसमें तो कहना ही क्या है ? और वहाँ सिवाय वेदधर्म एवं यज्ञ की निंदाके अलावा है क्या ? जैन एक नास्तिक धर्म है अतः आप जैसे श्रहासम्पन्न अग्रसरों को नास्तिकों के पास जाना उचित नहीं है। सेठजी--मैंने करीब दो घंटे तक महात्माजी का व्याख्यान सुना पर ऐसा एक भी शब्द नहीं सुनाकि जिसको निंदा कही जासके । ब्राह्मण-यज्ञ में दी जाने वाली बलि को हिंसा वतलाकर उनका निषेध तो किया ही होगा १ वह वेद धर्म की निंदा नही तो और क्या है ? इसको ही आप जैसे श्रद्धासम्पन्न ने कानों से सुनी। सेठजी -प्राणियों की हिंसा का तो वेद पुराण भी निषेध करता है और 'अहिंसापरमोधर्म' सब धर्मों का मुख्य सिद्धान्त है इसमें क्या वेद धर्म क्या जैनधर्म सब एकमत हैं। ब्राह्मण- अहिंसा परमोधर्म के लिये कोई इन्कार नहीं करता है पर यज्ञ करना वेदे विहित होने से उसमें जो बलि दी जाती है वह हिंसा नही परन्तु अहिंसा ही कही जाती है। सेठजी--क्या यज्ञ में बलि दिये जाने वाले पशुओंको दुःख नही होता होगा ? तब ही तो उन जीवों की बलि देने पर भी हिंसा नही किन्तु अहिंसा ही कही जाती है ? ब्राह्मण-ऐसी तर्के करने का आप लोगों को अधिकार नहीं है जैसे वेद पाठी ब्राह्मण कहे वैसा आप लोगों को स्वीकार करलेना चाहिये । वतलाइये आपा विचार अश्वमेध यज्ञ करने का था उसके लिये अब क्या देरी है समय जा रहा है जल्दी कीजिये सेठजी-महाराज अभी तो मैंने निश्चय नहीं किया है और भी विचार करूंगा-- ब्राह्मणों को जो पहिले से शंका थी वह प्रायः सत्यसी होगई अतः उन्होंने कहा कि सेठजी श्राप कहते थे कि मैं एक करोड़ रूपये यज्ञ में खर्च करूंगा फिर आप फरमाते हैं कि निश्चय नहीं तथा बिचार करूंगा तो क्या आपको नास्तिक जैनाचार्य से सलाह लेनी है ? सेठजी-क्या जैनाचार्य की सलाह लेना लाच्छन की बात है कि आप ताना दे रहे हैं जैनाचार्य को राजा महाराजा और लाखो करोड़ों मनुष्य पूज्यदृष्टि से देखते हैं और मान रहे हैं। ब्राह्मण -- पर इससे क्या हुआ वे है तो वेद निंदक एवं यज्ञ विध्वंसक; उनकी सलाह लेने पर वे कब कहेंगे कि तुम यज्ञ करवाओ। यदि आपको यज्ञ करवाना हो तो विलम्ब करने की आवश्यकता नहीं हमारे कहने मुताबिक यज्ञ का कार्य प्रारंभ कर देना चाहिये। १०२ . [ सेठ सालग और ब्राह्मणों का संवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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