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________________ वि० सं० ४४०-४८० वर्ष ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास सोमाशाह नाम का श्रद्धा सम्पन्न श्रावक भी बसता था आप धन में कुबेर और कुटम्ब में श्रेणिक ही कहलाते थे। जैन धर्म में तो आपकी हाड़ हाढ़ की मीजी रंगी हुई थी आपने कई बार श्रावक की प्रतिमा का भी आराधन किया अतः आप सिवाय देवगुरु के किसी को शिर नहीं झुकाते थे फिर भी आप संसार में बैठे थे। बहु कुटम्बी भी थे । कहां ही जाता आना पड़ जाय तो अपने हाथ की मुदड़ी में आचार्य कक्कपूरि का छोटासा चित्र बनाकर मंडवा लिया था कभी कहीं शिर झूकाने का काम पड़ता तो उस मुदड़ी को आगे कर अपने गुरु देव को नमस्कार कर लेते थे। इस बात की प्रायः दूसरों को मालुम नहीं थी। कहा है कि कभी कभी सोना की परीक्षा के लिये उसको अग्नि में तपाया जाता हैं ताड़ना पीटना और शूनाक भी लगाई जाती हैं। इसी प्रकार धर्मी पुरुषों की परीक्षा का समय भी उपस्थित होजाता है किसी छेद्रगवेषी ने सोमाशाह की बात को जान ली और इस फिराक में समय देख रहा था कि कभी मोका मिले तो सो शाह को खबर लूँ। मारोट कोट के शासनकर्ता के पुत्र नहीं था जिसका राजा और प्रजा सब को बड़ा भारी फिक्र था कई समय निकल चुका था अन्तराय क्षय होने से एवंकुदरत की कृपा से राजा के पुत्र हुआ जिस बात की गज प्रजा में बड़ी खुशी हुई । नगर के सब लोग राजा के पास गये और राजा को नमस्कार कर अपनी अपनी भेट नजर की उस समय सोमाशाह भी गया उसने राजा को नमस्कार किया पर वह चित्रराली मुंदड़ी उसके हाथ में पहनी हुई थी भाग्यवसात् वह छेद्रगवेषी भी वहां हाजर था सब लोगों के जाने के बाद गजा को कहा कि आपके पुत्र होने की सब नगर वालों को खुशी है और सबने आपको भक्ति के साथ नमस्कार भी किया है पर एक सोमाशाह नाम का सेठ है यों तो वह बड़ा ही धर्मी कहलाता है पर उसके दिल में इतना घमंड है कि वह किसी को नमस्कार नहीं करता है दूसरों को तो क्या पर वह तो आपको भी नमस्कार नहीं करता है ? राजा ने कहा कि तुमारा कहना गलत है कारण अभी सोमाशाह आया था और उसने मुझे नमस्कार भी किया था छेद्रगवेषी ने कहा हजूर यह तो आपको धोखा दिया है नमस्कार आपको नहीं किया पर उसके हाथ में मुदड़ी है उसमें उनके गुरु का चित्र है उनको नमस्कार किया है आपको नहीं १ यह सुनकर राजा को बड़ा ही गुस्सा आया तत्काल ही दूत भेज कर सोमाशाह को बुलाया । सोमाशाह समझ गया परन्तु वह धर्म का पक्का पाबंद था हाथ में मुंदड़ी पहन कर राजा के पास जाकर नमस्कार किया तो राजा ने मुंदड़ी देखी और पुच्छा कि सोमा तु नमस्कार किसको किया ? सोमाने कहा कि परम पूजनीय गुरु देव को । राजाने कहाँ कि क्या तु तेरे गुरु के अलावा दूसरे को नमस्कार नहीं करता है ? सोमा ने कहा नमस्कार करने योग्य एक गुरुदेव ही है । देखता हूँ तुमारे गुरु तुमारी कैसी सहायता करता है गजाने अपने अनुचरो कों हुकम दिया कि इस सोमा को सात शांकलों में जकड़कर बन्ध दो और अंधेरी कोटरी में डालकर पक्का ताला लगादो । बस फिर तो क्या देरं थी अनुचरों ने सोमाशाह को सात शांकलों से बन्ध कर अन्धेरी कोटरी में डाल कर कोटरी के एक बड़ा ताल लगा दिया और चाबी लाकर राजा के सामने रखदी। थोड़ी देर के लिये दुशमनों के मनोरथ सफल हो गये धर्मी लोगों को बड़ा भारी रंज हुआ पर राजा के सामने किसका क्या चलने वाला था कारण उस जमाना के कानून तो उन सत्ताधारियों के मुँह में ही रहते थे अर्थात् वे भला बुरा जो चाहते थे वे व.रगुजरते थे। खैर। सोमाशाह कारापह में बैठा हुआ यह सोच रहा था कि पूर्व भवमें संचित किये हुए शुभाशुभ कर्म भोगवते में तो मुझे तनक भी दुःख नहीं है पर मेरे कारण जैनधर्म की निंदा होगा इस बात का मुझे वडा ही दुःख है गुरुदेव बड़े ही अतिशयवाले है इसमें किसी प्रकार का [ श्रेष्ठिवर्य सोमाशाह की धर्म परीक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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