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वि० सं० ४४०-४८० वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
____ तत्पश्चात् आचार्य नन्नप्रभसूरि ने कोरंटपुर की और विहार किया तब कुंकुंदाचार्य को उपकेशपुर की और विहार का आदेश दिया और आप स्वयं शिवपुरी चन्द्रावती की ओर विहार कर दिया। आसपास के प्रामों में भ्रमन कर शिवपुरी पधार रहे थे यह आपके जन्म भूमि का स्थान था यों ही शिवपुरी शिव (मोक्ष) पुरी ही थी परन्तु आज तो आचार्य कक्कसूरि का शुभागमन हो रहा है ऐसा कौन हृदय शून्य मनुष्य होगा कि जिसको अपने नगरी का गौरव न हो क्या राजा क्या प्रजा क्या जैन और क्या जनेत्तर सब नगरी ही सूरिजी के स्वागत में शामिल होकर महामहोत्सव पूर्वक सूरिजी का नगर प्रवेश करवाया सूरिजी ने मन्दिरों के दर्शन कर धर्मशाला में पधारे और थोड़ी पर सारगर्भित भवभंजनी देशादी मंत्री यशोदित्य और आपके गृहदेवी सेठानी मैना अपने पुत्र का अतिशय प्रभाव देख परमानन्द को प्राप्त हुए । तत्पश्चात् परिषद विसर्जन हुई और मकान पर आने के बाद मंत्री ने अपनी ओरत को कहा देख लिया नी अपने पुत्र को । पुत्र को पूछते तो सही कि आप सुख में हैं या दुःख में । सेठानीजी आपके कुक्ष से इतने पुत्र हुए हैं पर आपकी कुक्ष और हमारा कुलकों एक शोभन ने ही उज्वल बनाया है इत्यादि । जिसको सुनकर सेठानी बड़े ही हर्ष एवं आनन्द में मग्न होगयी । सूरिजी का व्याख्यान हमेशा होता था जिस कों जैन जैनेतर सुनकर सूरिजी नहीं पर मंत्री मंत्री का कुन और शिवपुर नगरों की प्रशंसा कर रहे थे । एक समय मंत्री अपनी स्त्री एवं पुत्रों को लेकर सूरिजी के पास आये वन्दन कर माता भैना ने कहां कि आप हम लोगों को छोड़ गये एवं भूल भी गये । आपके तो नये २ नगर हजारों शिष्य और लाखों भक्त है जहां जाते वहाँ खमा खमा होती है फिर हम लोग आपको याद ही क्यों आवें
खैर, अब थोड़ा बहुत राम्ता हमको भी बतलावे कि जिससे हमारा भी कल्ाण हो ये आपके भाई है और ये इनकी बिनणियां है ये सब आपको वन्दन कर सुख साता पूछती हैं सूरिजी ने सबको धर्मलाभ दिया और धर्म कार्य में उद्यमशील रहने का उपदेश दिया। साथ में माता मैना को कहा कि अब आपकी वृद्धावस्था है घर और कुटुम्ब का मोह छोढ़ दो और आत्म कल्याण करो कारण यह धन माल और कुटुम्ब सब यहीं रह जायगा और अकेला जीव पर भव जायगा इत्यादि सेठानी मैना ने कहा कि उस समय आप अपने माता पिता को भी दीक्षा देदे तो हमारा भी उद्धार हो जाता ? सूरिजी ने कहाँ कि अब भी क्या हुआ है लीजिये दीक्षा मैं आपकी सेवा करने को तैयार हूँ । सेठानी ने कहा अब तो हमारी अवस्था आगई है तथापि आप ऐसा रास्ता बतलाओं कि घर में रह कर भी हम हमारा कल्याण कर सकें खैर सूरिजी ने गृहस्थों के करने काबिल कल्याण का मार्ग बतलाया जिसको मंत्री के कुटुम्ब ने स्वीकार किया। कुछ दिनों के बाद श्राप चंद्रावती पधारे । वह भी कइ अर्सा तक स्थिरता की सरिजी के व्याख्यान का जनता पर बहुत प्रभाव हुआ कई लोगों की इच्छा हुई कि गरमी के दिन एवं जेठ का मास है बार्बुदा लजी की यात्रा कर कुछ समय वहाँ ठहर कर निर्वृति से ज्ञान ध्यान करे अतः उन्होंने सूरिजी से प्रार्थना की और सूरिजी ने स्वीकार भी करलिया चन्द्रावती में जैनों कि लाखों मनुष्यों की आबादी थी शिवपुरी पदमावती वगैरह नगरों में खबर मिलने से वे लोग ऐसा सुवर्ण अवसर हाथों से कब जाने देने वाले थे बस हजारों भावुक गुरु महाराज के साथ छ री पाली यात्रा करने की प्रस्थान कर दिया है आबु का चढ़ाव भी बारह कौस का था रास्ता भी
येनाऽर्बुद गिरोसद्धो, ज्येष्ठ मासि, समारुहन । पिपासितः प्राणतुलाः मारूढ़ मौढ़शक्तिना
[ आचार्य श्री का अपने कुटुम्ब को उपदेश
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