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________________ आचार्य कक्कसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ८४०-८८० आवश्यक सममा अत: आप ने देवी का स्मरण किया और देवी आकर सूरिजी को वन्दन किया सूरिजी ने धर्मलाभ देकर सब हाल देवी को निवेदन किया और अपना विचार भी कह सुनाया तथा आपकी इसमें क्या राय है । देवी ने कहा पूज्यवर ! भवितव्यता को कौन मिटा सकता है पर यह भी अच्छा हुआ कि यह झमेला आपके सामने आया यदि किसी दूसरे के सामने आता तो गच्छ में बड़ा भारी मत्तभेद खड़ा हो जाता पर श्राप भाग्यशाली एवं अतिशय प्रभावशाली है इस झमेला को आसानी से निपटा सकोंगे । यह ही कारण है आप अपने मान अपमान का नयाल न करके भिन्नमाल पधारने का विचार कर लिया है। इस लिये ही शास्त्रकारों ने कहा है कि जातिवान कुलवान दीर्घदर्शी एवं उच्च संस्कार वाले कों आचार्य बनाया जाय । प्रत्येक्ष में देख लीजिये कि यदि मुनि कुंकुन्द थोड़ा भी विचारज्ञ होता तो केवल अपनी थोड़ी सी महिमा के लिये पूर्वाचार्यों की मर्यादा का भंग कर गच्छ एवं शासन में इस प्रकार फूट कुसम्प के बीज कभी नहीं बोते । खैर, पूज्यवर ! आपके इस शुभ विचारों से मैं सर्वथा सहमत्त हूं और मैं आपको कोटीश धन्यवाद भी देती हूँ कि आपने धर्म एवं गच्छ के गौरव की रक्षा के लिये चल कर भिन्नमाल जाने का उत्तम विचार किया है। और आप अपने विचारों में सफलता भी पाओगें। देवी सूरिजी को वन्दन करके चली गई पर देवी को आश्चर्य इस बात का था कि इस युवक व्यय में नूतनाचार्य कितने दीर्घदर्शी है कितने धैर्य एवं गर्भिर्य है ? आचार्य कक्कसूरि अपने शिष्यों के साथ विहार कर विना विलम्ब चलते हुए भिन्नमाल की ओर पधार रहे थे। उस समय कोरंटगच्छ के आचार्य नन्नप्रभसूरि भी भिन्नमाल में विराजते थे जिन्हों को भिन्नमाल का संघ आमन्त्रण करके बुलाये थे शायद् इसमें भी कुंकुन्दाचार्य की ही करामात हो कि कोरंटगच्छ के आचार्यों को अपने पक्ष में ले ले कहा है कि विद्वान जितना उपकार करता है उतना ही अपकार भी कर सकता है खैर भिन्नमाल का संघ एवं कोरंटगच्छ के आचार्य नन्नप्रभसूरि ने सुना कि आचार्य ककसूरि भिन्नमाल पधार रहे है इससे तो प्रत्येक विचारज्ञ के हृदय में नाना प्रकार की कल्पनाएँ ने जन्म लेना शुरू कर दिया। कई विचार कर रहे थे कि कक्कसूरि यहां क्यों आ रहे है ? कइने सोचा कि मुनि कुंकुन्द को आचार्य बना कर पूर्वाचार्यों की मर्यादा का भंग किया इसलिये कक्कसूरि आ रहा है कई यह भी विचार कर रहे थे कि यहां दोनों आचार्यों का बड़ा भारी क्लेश होगा ? इस प्रकार मुण्डे मुण्डे मतिभिन्ना एवं जितने मगज उतने ही विचार और जितने मुंह उतनी बातें कहा है कि घर हानी और दुनियाँ का तमासा जब जैनों का यह हाल था तो जैनेत्तरों के लिये तो कहना ही क्या था पाठक पिछले प्रकरणों में पढ़ आये है कि मरुधर में एक भिन्नमाल ही ऐसा क्षेत्र था कि वहां के ब्राह्मण शुरु से ही जैनों के साथ द्वेष रखते आये हैं जब उनको ऐसी बात मिल गई तब तो कहना ही क्या था। वे लोग भी विचार करने लगे कि ठीक है आज जैनों के विरोध पक्ष के दो आचार्य यहां शामिल हो रहे है । देखते है क्या होगा आचार्य नन्नप्रभसूरि ने संघ को कहा कि आचार्य कक्कसूरि पधार रहे है हम स्वागत के लिये जायेंगे आपको और कुंकुन्दाचार्य को भी सूरिजी का सत्कार एवं स्वागत करना चाहिये । कारण कक्कलरिजी आचार्य होने के बाद आपके यहां पहिले पहिल ही पधार रहे है । इस पर श्री संघ और कुंकुन्दाचार्य ने एकान्त में विचार किया जिसमें दो पार्टी बन गई एक पार्टी में कुंकुन्दाचार्य और कुच्छ उनके दृष्टिरागी भक्त तब दूसरी आचार्य कक्कसरि का भिन्नभाल आना ] ८५७ १०८ Jain Education Interratonal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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