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________________ वि० सं० ४४० - ४८० वर्ष ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास पार्टी में शेष श्री संघ था पर आचार्य नन्नप्रभसूरि का कहना संघ को ठीक लगा अतः सकल श्रीसंघ ने यह निश्चय किया कि आचार्य कक्कसूरि का खूब धूमधाम के साथ नगर प्रवेश का महोत्सव पूर्वक स्वागत करना चाहिये आखिर कुंकुन्दाचार्यको संघ के सहमत होना पड़ा कारण आपके लिये अभी तो केवल एक भिन्नमाल का संघ ही था दूसरे कोरंटगच्छाचार्य का मत स्वागत करने का ही था अतः सकल श्री संघ और आचार्य नन्नप्रभसूरि एवं कुंकुन्दाचार्य मिलकर श्राचार्य कक्कसूरि का महामहोत्सव पूर्वक नगर प्रवेश करवाया श्राचार्य श्री भगवान महावीर की यात्रा कर धर्मशाला में पधारे तीनों आचार्य एक ही पाट पर विराजमान हुए उस समय उपस्थित जनता को यही भाँन हो रहा था कि ये तीनों श्राचार्य ज्ञान दर्शन चारित्र की प्रति मूर्ति ही दीख रहे है। आचार्य कक्कसूरि ने आचार्य नन्नप्रभसूरि से सविनय अर्ज की कि पूज्यवर ! देशना दीरावे । इस पर नन्नप्रभसूरि ने कहा सूरिजी सकल श्री संघ और हम आपके मुखार्विन्द की देशना के पीपा है आप अपने ज्ञान समुद्र से सब लोगों को श्रमृतपान करावे । वक्कसूरि ने कहा कि आप हमारे वृद्ध एवं पूज्याचार्य है अतः आपको ही देशना देनी चाहिये ? मैं आपकी देशना का प्यासा हूँ पुनः नन्नसूरि ने कहां सूरिजी संसारी लोग कहते है कि 'परणी जो सो गाईजे' आज तो सब लोग आपकी ही देशना सुनना चाहते है । इस पर क+कसूरि ने कुंकुन्दाचार्य को कहां सूरिजी आप फरमावे | कुंकुन्दाचार्य लज्जा के मारे मुँह नीचा कर लिया और कहां कि पूज्यवर ! आज की देशना तो आपकी ही होनी चाहिये इत्यादि । इस विनयमय प्रवृति देख दुनियाँ का दील पलटा खागया और उनके जो विचार पहिले थे वे नहीं रहे । श्राचार्य ककसूर ने अपनी ओजस्वी गिरा से देशना देनी प्रारम्भ की जिसमें मंगलाचरण के पश्चात् शासन का महत्व बतलाते हुए कहा कि भगवान महावीर का शासन २१००० वर्ष पर्यन्त चलेगा ! इसमें श्रनेक प्रभावशाली श्राचार्य हुए और होगा आचार्य का चुनाव श्री संघ करता है एक आचार्य की आवश्य कता हो तो एक और अधिक आचार्यों की जरूरत हो तो अधिक आचार्य भी बना सकते हैं इसके लिये व्यवहारादि सूत्र में विस्तार से उल्लेख मिलता है परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं हो सकता है कि किसी ग्राम नगर का संघ स्वच्छदता पूर्व किसी को आचार्य बना कर शासन का संगठन बल काटुकड़ा टुकड़ा कर डाले। पूर्वाचार्यों ने महाजन संघ स्थापन करने में तथा उस महाजन संघ की वृद्धि करने में जो सफलता पाइ थी उसमें मुख्य कारण संगठन का ही था देखिये एक गृहस्थ के चार पुत्र हैं पर एक संगठन में ग्रन्थित है वहाँ तक उनका प्रभाव कुछ और ही है यदि वे चारों पुत्र अलग अलग हो जाय तो उनका उत्तना प्रभाव नहीं रह है यही हाल शासन नायकों का समझ लेना चाहिये । एक समय कोरंट संघ ने पार्श्वनाथ सनातियों में आचार्य रत्नप्रभसूरि जैसे प्रभावशाली आचार्य होते हुए भी बैग में आकर कनकप्रभसूरि को आचार्य बना दिया पर श्राचार्य रत्नप्रभसूरि इतने दीर्घ दर्शा एवं शासन के शुभचिंतक थे कि वे चलकर शीघ्र ही कोरंटपुर पधारे। इस बात की खबर मिलते ही कोरंटसंघ एवं कनकप्रभसूरि ने आपका स्वागत किया इतना ही क्यों पर कनकप्रभसूरिजी इतने योग्य एवं शासन के हितैषी थे कि कोरंटसंघ की दी हुई श्राचार्य पदवी रत्नप्रभसूरि के चरणों में रखदी परन्तु रत्नभसूरि भी इतने दीर्घ दर्शी थे कि अपने हाथों से कनकप्रभसूरि को आचार्य पद देकर कोरंटसंघ एवं कनकप्रभसूरि का मान रखा इस प्रकार दोनों ओर की विनयमय प्रवृति का मधुर फल यह हुआ कि केवल नाम मात्र के ( उपकेशगच्छ- कोरंटगच्छ ) दो गच्छ कहलाते हैं पर वास्तवतः दोनों गच्छ एक ही है उस बात को करीबन ८४० वर्ष ही गुजरा है पर इन दोनों गच्छ में इतना प्रेम स्नेह ऐक्यता ८५८ Jain Education International [ आचार्य श्री का प्रभावशाली व्याख्यान www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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