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वि० सं० ४२४-४४० वर्षे
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
मेहराज ने
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२:-कातरोल के कुलभद्र , शाह । खीमड़ ने सूरि के पास दीक्षा ली २१-जंगालु प्राग्वट वंशी
फूवा ने २२-डामरेल प्राग्वट वंशी
रूपा ने ३-श्रीनगर श्रीमाल वंशी २४-कीराटकुम्प क्षत्रीवीर
रावल ने २५-ॐकारपुर ब्राह्मण
पोकर ने २६-उज्जैन मौरक्ष गौत्रीय शाह
नन्दा ने , इनके अलावा कई जैनेतर जातियों के तथा बहुतसी बहिनोंने भी दीक्षा लेकर स्वपरका उद्धार किया।
प्राचार्यश्री के शासन में तीर्थों के संघादि शुभकार्य१-भरोंच से भाद्र गौत्रीय शाह देपाल ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला २-देलावल से श्रेष्टि गौत्रीय शाह वीरदेव ने , ३-चांदोला से चरड़ गौत्रीय शाह यशोदेव ने , ४-चक्रावती से मल्ल गौत्रीय शाह नागदेव ने , ५-स्तम्भनपुर से मंत्री शाह वरदेव ने ६-भवानीपुर से श्रेष्टिः शाह कानड़ ने ७-नागपुर से सुचंति गौत्रीय शाह केसा ने ४-शाकम्भरी से चिंचट गौत्रीय शाह धर्मा ने ९-वीरपुर से लघु श्रेष्टि शाह पारस ने १०-उकोल से कुमट गौत्रीय शाह लाखण ने ११-सारंगपुर से कनौजिया शाह शांखला ने १२--उचकोट से चोरलिया शाह पाता ने १३--मथुरा से लुंग गीत्रीय शाह गेहराज ने १४--भीयानी से चरड गौत्रीय जैदेव युद्ध काम आया उसकी स्त्री सती हुई। १५--विनोट के तप्तभट्ट मंत्री जोगड़ा १६--चापटपुर के श्रेष्टि सुरजण १७-दांतिपुर के सुचंति गौत्रीय टीलो १८--कोरंटपुर के श्रीमाल सोमा १९--मादड़ी के भूरि गोत्रीय भीम २०--पद्मावती के मल्ल गौत्रीय पेथो २१--हंसावली के बापनाग० पुनड़
२२--रत्नपुर में आदित्यनाग गोत्री मंत्री सालगने दुकाल में शत्रुकार दिया८४६
[ आचार्य श्री के शासन में यात्रार्थ संघ
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