________________
आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ८२४-८४०
और जलती हुई चिता पर पुष्पों की बरसात हुई और आकाश में यह उद्घोषणाहुई कि अब इस भरतक्षेत्र में प्राचार्य रत्नप्रभसूरि और यक्षदेवसूरि जैसे आचार्य नहीं होंगा। जिसको सुनकर श्रीसंघ के शोक में और भी वृद्धि हुई बाद श्रीसंघ चलकर प्राचार्य ककसूरि के पास आये और सूरिजी निरानन्द होते हुए भी श्रीसंघ कों शान्ति का उपदेश देकर मंगलिक सुनाया।
श्राचार्य यक्षदेवसूरीश्वरजी महान प्रभाविक धर्म प्रचारी एवं जिन शासन के षक सुदृढ़ स्तम्भ समान श्राचार्य हुए है आप अपने सोलह वर्ष के शासन में मरुधर मेदपाट आवंति बुलेदखण्ड मत्स्य शूरसेन उड़ीसा बंगाल विहार कुरू पंचाल सिन्धु कच्छ सौराष्ट कांकण लाटादि प्रान्तों में विहार कर अनेक प्रकार से उपकार किये कइ स्थानों पर विधर्मियों के साथ शास्त्रार्थ कर जैनधर्म की विजयपता का फहराई कई विषयों पर अनेक प्रन्थों का निर्माण कर जैन धर्म को चिर स्थायी बनाया कई नर-नारियों को दीक्षा देकर एवं कइएकों के मांस मदिरादि दुर्व्यसन छोड़ा कर जैन धर्म में दीक्षित किये कइ मन्दिर मूत्तियों की प्रतिष्टा करवाई कइ तीर्थों के संघ निकला कर यात्राए की इत्यादि पट्टावलियों वंशावलियों आदि में विस्तार से उल्लेख मिलते है तथापि में यहां पर कतीपय कार्यों की केवल नामावली ही लिख देता हूँ
श्राचार्य श्री के शासन समय भावुकों की दीक्षा-- १- उपकेशपुर के भूरि गौत्रीय शाह नानगदि ने सूरि के पास दीक्षा ली २-भाडव्यपुर के श्रेष्टि , , दूधा ने , ३-सुरपुर के डिडू , , श्रादू ने , ४-शंखपुर के ब्राह्मण ,, , शिवदेव ५ खटकूम्प के गव
, भोत्रा ६ प्रासिका के अदित्य० , शोभण ७-हालोड़ी के श्रेष्टि गौत्र , गुणराज ८-हर्षपुर के भाद्र गौत्रीय शाह भाखर ९-नागपुर के बलाह गौत्रीय , भीमा १०-मुग्धपुर के चण्ड
, नोंधण ११- चापट के चिंचट ,
चाहड़ १२-आधाट के लुंग ,
चणाटे १३--नारायणपुर के कर्णाट ।
फागु १४-बीनाड़ के बोहरा ,
पारस १५-दशपुर के मल्ल ,
पद्मा १६-डूगरील के तप्तभट्ट
धन्ना १७-मथुग के बाप्पनाग
धोकल ने १८-मरजड़ा के लघुश्रीष्टि
पर्वत ने १९-रोली के वीरहट गौत्रीय , खेतसी ने , आचार्य श्री के कर कमलों से दीक्षाएं ]
८४५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org