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वि० सं० २९८-३१० वर्ष ]
भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
जन्म लिया फिर योग मिलने पर भी श्री भगवती सूत्र नहीं सुना उसका जन्म ही व्यर्थ समझा जाता था । || ऐसा अवसर हाथ में आया कौन जाने देने वाले थे 1
शाह काला ने प्रत्येक प्रश्न की सुवर्ण मुद्रिका से पूजा की । तदनुसार और भी कई महानुभावों ने इस प्रकार पूजा कर ज्ञानावर्णिय कर्म का क्षयोपशम करते हुये अनंत पुन्योपार्जन किया । सम्पूर्ण भगवती सूत्र चार छः मास में पूर्ण होने वाला नहीं था। कारण ४१ मूल शतक १९३८ अन्तरशतक १९ वर्ग और पहले तो १०००० उद्देशा और २८८००० पद थे पर जब चारों अनुयोग पृथक् २ कर दिये थे उस समय १९२५ उद्देशा और १५७७२ श्लोक मूल के रह गये थे तथा इस पर नियुक्ति चूर्णी वगैरह विवरण विशेष था परन्तु सूरिजी महाराज के श्रीभगवतीसूत्र हस्तामलक की तरह कण्ठस्थ ही था। अतः आप श्री ने मात्र छः मास में श्रीभगवतीसूत्र सम्पूर्ण बांच दिया अतः शाह काला ने पूर्णाहुति का भी बड़े ही समारोह से महोत्सव कर श्रीभगवतीसूत्र की पुनः वरघोड़ा पूजा प्रभावना और स्वामिवात्सल्य कर ज्ञान पद की आराधना की इतना ही क्यों पर शाह झाला ने अपने १४ साथियों के साथ असार संसार का त्याग कर सूरिजी के पास दीक्षा लेली कारण, 'नाणस्ससारंवृति' ज्ञान का सार व्रत लेना है । प्राग्वट पोमा के बनाये श्री विमलनाथदेव के मंदिर की प्रतिष्ठा भी सूरिजी के कर कमलों से हुई और भी जिनशासन की कई प्रकार से प्रभावना हुई । सूरिजी महाराज के साधुओं में पद्महंस और मंगल कलस ये दो साधु बड़े ही विद्यावली और लब्धिपात्र थे । एक दिन वे दोनों मुनि थडिले जाकर आ रहे थे। उधर से राजॐ वरादि कई क्षत्रीय लोग जीवित शिकार को लेकर नगर की ओर आ रहे थे। जिसको देख उभय मुनियों के कोमल हृदय में दया के भाव उत्पन्न हो गये श्रुतः वे तत्काल ही बोल उठे कि हे महानुभावो ! इन विचारे निरपराधी मूक प्राणियों को क्यों पकड़ लाये हो ! देखिये इनका शरीर कांप रहा है। यदि आप क्षत्री हैं तो इन भय पाते हुये प्राणियों की रक्षा करना आपका धर्म है। अतः इनको अभयदान दीजिये ।
क्षत्रियों ने मुनियों का कहना हँसी हँसी में उड़ा दिया और कहा महात्माजी आप अपने रास्ते जाइये तथा आपको उपदेश ही देना हो तो बाजार में जाकर महाजन लोगों को दीजिये हम तो क्षत्रीय हैं और शिकार करना हमारा धर्म है । मुनियों ने कहा वीर क्षत्रियो ! आपका धर्म गरीब पशुओं को मारने का नहीं पर इनकी रक्षा करने का है । किन्हीं स्वार्थी लोगों ने आपको उल्टा रास्ता बतला दिया है। मैं आपको ठीक कहता हूँ कि इन जीवों को अभयदान दीजिये इसमें आपका इस भव में और पर भव में कल्याण है । यह जघन्य कार्य्य आप जैसे उत्तम क्षत्रियों को शोभा नहीं देता है इत्यादि ! इसपर उन क्षत्रियों को बड़ा गुस्सा आया और तलवार निकाल कर उन मुनियों के सामने उन पशुओं के कोमल कंठ पर चलाने लगे पर मुनियों के विद्यावल से उन क्षत्रियों का हाथ जैसे ऊँचा उठा था वैसा ही रह गया। उन्होंने बहुत कोशिश की पर हाथ टस से मस नहीं हुआ । इस अतिशय प्रभाव को देख कर वे क्षत्रीय लोग मंत्रमुग्ध बन गये और मन ही मन में सोचने लगे कि यह क्या हुआ ? क्या इन साधुओं की करामात तो नही हैं पर इस संकट से बचने के लिये अब दूसरा उपाय ही तो क्या था । अतः उन्होंने साधुओं से विनय की कि महामाजी कृपा कर हमारे अपराध की माफी करावें और हमारे हाथ को छोड़ दीजिये । वीरो ! आपको इतना सा कष्ट हुआ जिसमें ही आप घबरा गये तब दूसरे जीवों के प्राण लेने को आप तैयार हुये हैं। क्या आपकी अधम तलवार देख इन जीवों को भय नहीं होता होगा । खैर आप इस समय समर्थ हैं कि इन मूक प्राणियों
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[ दो जैन मुनियों का राजकुवर को उपदेश
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