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आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ६९८-७१०
इत्यादि रात्रि भोजन का सख्त निषेध किया है परन्तु शास्त्रों के अनभिज्ञ लोग आप स्वयं डूबते हैं और अपने विश्वास पर रहने वाले भद्रिक लोगों को भी डुबाते हैं । कई अज्ञानी लोग एक सूर्य में दो वक्त भोजन नहीं करना कहकर रात्रिभोजन करते हैं और दूसरों को करने का उपदेश करते हैं परन्तु इसका मत. लब रात्रि भोजन करने का नहीं है पर यह उल्लेख तो ब्रह्मचारी एवं ब्राह्मणों के लिये है कि एक सूर्य में दो बार भोजन नहीं करना अर्थात् सदैव एकासना व्रत करना । जिससे ब्रह्म वार्य व्रत सुविधा से पले और एक बार भोजन करने से एक वर्ष में नौ मास की तपश्चर्या भी हो जाय । कारण १२ मास में रात्रि भोजन न करने से छ मास और दिनों में भी एक बार भोजन करने से तीन मास एवं नौ मास का तप हो जाता है। इसलिये ब्रह्मचारी एवं ब्राह्मणों को और साधुओं को एक दिन में एक बार ही भोजन करने की आज्ञा है यदि उससे क्षुधा शान्त न होती हो तो सूर्य के अस्तित्व में एक बार की बजाय दो बार भी भोजन करले पर रात्रि में तो भूल चूक के थोड़ा भी आहार नहीं करे इत्यादि। सूरिजी महाराज के व्याख्यान का जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ा और जनता रात्रि भोजन के पाप एवं अनर्थ से भयभ्रान्त हो कर प्रायः सबने रात्रि भोजन का त्याग कर दिया ! इसका मुख्य कारण एक तो सूरिजी का व्याख्यात दूसरा राजकुवर गंगदेव का रात्रि भोजन के लिये उदाहरण तीसरा जनता का भाग्य ही अच्छा था इत्यादि सूरिजी के विराजने से जनता का बड़ा भारी उपकार हुआ !
इस प्रकार महान उपकार करते हुये सूरिजी भिन्नमाल से बिहार कर आसपास के ग्राम नगरों में भ्रमण करते हुए जावलीपुर पधार रहे थे वहां के अदित्यनाग गोत्रिय शाह झाला ने सूरिजी का बड़ा हीशानदार नगर प्रवेश का महोत्सव किया । सूरिजी का व्याख्यान हमेशा होता था शाह माला ने कहा पूज्यवर ! मेरी अवस्था वृद्ध है और मेरे दिल में महा प्रभाविक श्री भगवतीजी सूत्र सुनने की अभिलाषा लग रही है । अतः आप चतुर्मास करके मुझे और यहाँ के श्रीसंघ को आगम सुनावें तो महान उपकार होगा ! सूरिजी ने कहा माला क्षेत्र स्पर्शन होगा वही काम आवेगी । तत्पश्चात् वहां के श्रीसंघ ने साग्रह विनती की और लाभा-लाभ का कारण जान सूरिजी ने चतुर्मास की स्वीकृति देदी । वस झाला का मनोरथ सफल होगया । उसने भगवती सूत्र के महोत्सव के लिये बड़ी भारी तैयारिये करनी शुरू करदी। माला के मन में कई अर्सा से उत्साह था पर साधारण साधु तो श्री भगवतीजी सूत्र वाच नहीं सकता था और गीतार्थों का योग नहीं मिला था पर कहा है कि जिसके सच्चे दिल की भक्ति होती है वह कार्य बन ही जाता है । शाह माला ने बड़े ही समारोह के साथ महाप्रभाविक श्री पंचमाग अपने घर पर लाया । रात्रि में जागरणा पूजाप्रभावना सुबह साधर्मी वात्यल्य करके आलीशान जुलूस के साथ सूत्रजी को सूरिजी के करकमलों में अर्पण करके हीरा पन्ना माणिक मोती एवं सुवर्ण के पुष्पों से सबसे पहिले शाह माला ने ज्ञान पूजा की तत्पश्चत् श्रीसंघ ने भी पूजा की जिसमें करीब एक करोड़ रुपयों का द्रव्य ज्ञान में जमा हुआ जिस द्रव्य से आगम लिखवा कर भंडारों में अर्पण कर देने का निश्चय हुआ। तत्पश्चात् पूज्य आचार्यदेव ने व्याख्यान में महा प्रभाविक ज्ञान समुद्र शास्त्रजी को वाचना प्रारंभ किया । पहिले जमाने में इस प्रकार श्री भगवतीजी सूत्र की वाचना कभी-कभी हुआ करती थी । जनता की ज्ञानरुचि ज्ञानभक्ति इतनी थी कि कई नगरों के लोगों ने तो आगम सुनने के लिये जावलीपुर में आकर अपनी छावनिये ही डाल दी। कारण कि मनुष्य भव और श्रावक के कुल में
श्री भगवतीजी सूत्र का महोत्सव ]
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