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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ६८२-६९८
( स्वभाव के कारण ) मगद में फली हुई शिथिलता को सब से पहले दूर की। इसका महा मंत्री शकडाल था जो पहले नंद का मंत्री कल्पक की वंश परम्परा पर महा बुद्धिमान मंत्री था राजा ने मंत्री की बुद्धि चातुर्य से पंजाब, कम्बोज प्रान्तों को विजय कर अपने अधिकार में कर लिया। पहले से बहुत असें इतनी शहन शाहियत के श्राधीन थे महानंद ने उसर हिन्द में त्रिपुटी यानि पाणिनी-चाणक्य--वररुचि तीन रत्नों को ले आया था।
जब कम्बोज कश्मीर की सत्ता महानन्द की हाथ में आई तो वहां की स्वर्गसदृश तक्षशिला भी इनकी हकूमत में आ गई । वहां पर एक महा विद्यालय भी चलता था। इधर मगद में भी नालंदा नामका महा विद्यालय भी चलता था । महानन्द इन दोनों विद्यालयों का सहायक एवं प्राणदाता था। हम पहले लिख
आये हैं कि राजा महानंद धन लोभी था । उसने सुवर्ण एकत्र कर ५ बड़े स्तूप बनवाये थे। कई लोग कहते हैं कि भूमि में पहाड़ जितना खोद कर उसमें सुवर्ण भर दिया था। उसके ऊपर स्तूप बनवाये थे । जो नन्दों के अन्दर सबसे अधिक समय इस महा-वीर का राज चला था और इसने अपनी राज सीमा उत्तर से दक्षिण भारत में फैला दी थी यह भी कहा गया है कि सूर्य उदय होकर अस्त भी हो जाता है । यही हाल भूमि के राजा चक्रवतियों का हुआ है । एक दिन नंद वंश का उदय होने का दिन था आज अस्त होने की तैयारियां हो रही हैं इसके लिये निमित्त कारण भी ऐसे ही बन जाते हैं। जिस चाणक्य को पूज्यभाव से मगद में लाये थे वह उसके राज के अस्त का जरिया बन गया। जिसको मौर्यवंश की शुरुआत में लिखा जायगा।
श्रीमान् त्रिभुवनदास लेहरचंद बड़ौदा बाले ने 'प्राचीन भारत वर्ष' नामक ग्रन्थ में राजाओं की वंशावलियों तथा उसका समय लिखा है । पाठकों की जानकारी के लिये यहां लिखा दिया जाता है । शिशुनाग वंश के १० राजा
नंद बंश के ९ राजा (वि० सं० पू० ८०५ से )
(ई० सं० पूर्व ४७२ से) १-शिशुनाग राजा
६० १-नंदवर्धन राजा २-काकवर्ण ,
२-महापद्म , ३-क्षेमवर्द्धन,
३-अश्वबोध ,, ४ - क्षेमजित ,
४-ज्येष्ठवर्थन ,, ५-प्रसेनजित ,
४३ ५-सुदेव , ६-श्रोणिक
६-धनदेव , ७-कूणिक
३२ ७-वृहद्रथ , ८-उदाई ,
१६ | ८-वृहस्पती मित्र ,, ९-अनुरुद्ध
८९-महानन्द, १०-मुंदा
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१००
+ इन बंशावलियों में ओ वर्ष लिखे गये हैं वह अनुमान से ही लिखा मालुम होता है । शिशुनंग तथा नंद वंशी राजा
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