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वि० सं० २८२-२९८]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
की श्रमण दीक्षा ली थी। जिस राजा के ९ पीढ़ी तक जैन धर्मोपासक मन्त्री होते आये हैं वे राजा दूसरे धर्मावलम्बी कैसे हो सकते हैं ? प्रमाणों के लिए निम्न लिखित प्रमाण पढ़ें।
नन्दवंशी राजा जैनधी होने के कारण ब्राह्मण हमेशा उनके खिलाफ रहते थे । इतना ही नहीं बल्कि ब्रामणधर्म के पुराणों में नन्द राजाओं को शूद्र वर्ण के नाम से लिखा है। जिसको हमने ऊपर लिख दिया है कि नन्द वंश का मूल पुरुष नागदशक शिशु नागवंशी राजाओं का दसवां पुरुष था अतः वे विशुद्ध क्षत्रिय वर्ण के ही थे । और इनका लग्न शादी भी क्षत्रियों के साथ हुए थे जैसे नागदशा का विवाह वत्सपति राजा उदई की पुत्री के साथ हुआ था समझ में नहीं आता कि पुगणकारों ने नन्दवंशी राजाओं को शुरू से ही शूद्र वर्ण क्यों लिख दिया है।
राजा नन्दवर्धन के शासनकाल में कुछ जबरदस्त घटनायें घटी थी। एक अनावृष्टि और दूसरी अतिवृष्टि, अनावृष्टि के समय राजा नन्द वर्धन एक नहर मगध में लाया था जो राजा खारबेल के हस्तीगुफा के शिलालेख से पाया जाता है क्योंकि इसी नहर से राजा खारबेल एक नहर अपने कलिंग में ले गया था। दूसरे अतिवृष्टि की घटना जो शोण गंगा नदी के अन्दर ऐसी बाढ़ आ गई थी कि पाटली पुत्र की खैर नहीं थी यदि जैन मन्त्रों द्वारा शान्ति नहीं करवाई होती। श्रीमान् शाह के लेखानुसार अति वृष्टि का समय भगवान महावीर के निर्वाण के बाद ५९ वर्ष के और अनावृष्टि का समय मह वीर के ६४ वर्ष बाद का था राजाओं के सिक्का भी मिले हैं जिससे पता चलता है कि वे कट्टर जैनधर्मी थे।
२-महापद्मानन्द-यह नन्दवर्धन राजा का पुत्र था आपका उत्तराधिकारी भी था। उसके शासन समय में बौद्धधर्म की महासभा वैशाला नगर में हुई थी जिसमें महाराज पद्मानंद की विशेष मदद थी
दूसरा एक सामाजिक परिवर्तन भी इसके राज के समय में हुआ। राजा श्रेणिक के समय में चारों वर्गों में बेटी लेन देन का रिवाज था पर श्रेणिक ने धंधा रुजगार के पोछे पृथक २ श्रेणियें बना दी थी। इससे उच्च श्रेणी वाला अपने से हलकी श्रेणी वाले को पुत्री देने में संकोच करने लगे। और ब्राह्मणों के प्रयत्न से यह प्रथा दिन ब दिन मजबूत बनती श्राई पर, इधर जैनों एवं बौद्धों ने शुरु से वर्ण जाति बन्धनों को तोड़ कर सब के लिये मार्ग साफ कर दिया था तथापि ब्राह्मण रुढ़ि थोड़ी बहुत चलती ही थी। इधर राना पद्मानंद जैन था । उसने ब्राह्मणों की अनुचित प्रथा को उन्मूलन करने के लिये कई शुद्र जाति की कन्याओं के साथ लग्न करके जनता पर अपना प्रभाव डाला। राजा महापद्म की क्षत्राणियों से ६ पुत्र और शूद्रानियों से ३ पुत्र हुए जिनमें क्षत्राणी से पैदा हुए ६ पुत्र क्रमशः मगद की गद्दी पर राजा, हुए परन्तु उनका मन बहुत ही कम चला बाद क्षत्रियाणी का कोई पुत्र नहीं था अतः नवमे पट्ट पर महानन्द शुद्राणी से पैदा हुए पुत्र को राज गद्दी पर बिठाया इसलिये उन ६ गजाओं के शासन में ऐसी कोई जानने योग्य घटना नहीं हुई थी अतः महानंद राजा के समय का हाल ही लिखना शेष रह जाता है।
९ वा महानंद गजा-यह महापद्म दूसरे नंद की शुद्राणी का पुत्र था और हस्तनि की वर माला से मगद पति बना था इसके कई नाम थे । नौवां नंद, महानंद धनानंद (धनलोभी) प्रसेन, प्रचण्डानंद
-म• ऋषभदेव की मूर्ति- पट्टावलियों से पता मिलता है कि इस मूर्ति को मगदेश्वर बिंबसार ( श्रेणिक ) राजा ने बना कर प्रतिष्ठा करवाई थी।
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नंदवंशी राजा जैनी थे
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