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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ६८२-६९८
___ जैसे शिशु नाग वंश के राजा जैनधर्मी थे वैसे ही नंदवंशी राजा भी जैन धर्मोपासक ही थे । इस विषय में अब अधिक लिखने की आवश्यकपा नहीं रही है क्योंकि इतिहासकारों ने यह स्पष्ट कर दिया कि नंदवंशी राजा ब्राह्मण धर्म के खिलाफ थे । जब ब्राह्मणों के खिलाफ थे तो वे जैनधर्मी ही थे । इसका विशेष प्रमाण यह है कि नंदवंशी राजा ने कलिंग पर चढ़ाई की और वहाँ के धन माल के साथ कलिंग जिन अर्थात् खंड गिरी पहाड़ी (कुमार-कुमारी पर्वत जो शत्रुजय गिरनार अवतार के नाम से उस प्रान्त में मशहूर था) पर के जैन मन्दिर से भगवान ऋषभदेव की मूर्ति उठा कर ले गया था इससे स्पष्ट सिद्ध है कि वे नंदवंशी राजा जैन थे दूसरा एक यह भी प्रमाण मिलता है कि नंदवंशी राजा सब के सब जैनधर्मोपासक थे। प्रमाण के लिये देखिये-Smith's Early History of India Page 114. में और डाक्टर शेषागिरिराव ए. ए. एण्ड आदि मगध के नन्द राजाओं को जैन होना लिखते हैं, क्योंकि जैनधीं होने से वे आदीश्वर भगवान की मूर्ति को कलिङ्ग से अपनी राजधानी में ले गये थे। देखिये South India Jainism Vol. 11 Page 82.
___ महाराजा खारवेल के शिलालेख से स्पष्ट पाया जाता है कि नंदवंशीय नृप जैनी थे । क्योंकि उन्होंने जैन मूर्ति को बलजोरी ले जा कर मगध देश में स्थापित की थी। इससे यही सिद्ध होता है कि यह घराना जैनधर्मोपासक था ये राजा सेवा तथा दर्शन श्रादि के लिए ही जैन मूर्ति ला कर मन्दिर बनवाते होंगे । जैन इतिहासवेत्ताओं ने विश्वासपूर्वक लिखा है कि नन्दवंशीय राजा जैनी थे।
"पारस मे च वसे ... 'सेहि वितासयति उतरपथराजानो..... 'मगधानं च बहुलं भयं जनेतो हथि सुगंगाय पाययति [0] मागधंच राजानां वहसतिमितं पादे वंदापयति [1] नंदराज नीतंच कलिंग जिन संनिवेस' । गहरतनान पडिहारेहिं अंगमागध वसुंच नेयाति [1]
"कलिंग की हाथों गुफा का शिलालेख" यह शिलालेख स्पष्ट बतला रहा है कि नंदवंशी राजा जैनी थे । इनके अलावा तित्थोगाली पइन्ना में उल्लेख मिलता है कि पुष्पमित्र ने नंदों के करवाये पांच स्तूप देख कर लोगों से पूछा कि यह स्तूप किसके हैं और किसने बनाये ? इस पर लोगों ने कहा महा बलवान नन्द गजाओं ने यह स्तूप बनाये तथा इनके अन्दर बहुतसा धन है, अतः पुष्पमित्र ने उन स्तूपों को खुदवा कर धन निकाल लिया । देखिये निम्न लिखित गाथाए। "सो अविणय पज्जतो, अण्णनरिन्दे तणं पिंव गणंतो, नगरं अहिडंतो पेच्छीहि पंच थूभेउ ॥ पुढायवेंतिभणुझा नंदोराया चिरं इहं आसि, बलितो अत्थसमिद्धा स्वसमिद्धा जससमिद्धा ।। तेण उइहं हिरणं निखितंसि बहुबल पमत्तणं, नयणं तरांति अण्णे रायाणो दाणि धित्त जे ॥ तं वयणं सोउणं खणे होति समंत तो ततो थूभं, नंदस्य संतियं तंपरिवज्जइ सो अह हिरण्णं ॥
नन्दवंशी राजा नन्दवर्धन का मन्त्री कल्पक ब्राह्मण जाति का होता हुआ भी जैन धर्मोपासक था उसकी परम्परा में जैन धर्म का पालन करते हुए अन्तिम नन्द राजा के समय शकडाल नाम का मंत्री हुआ बह भी करनेन था। इसके दो पुत्र और सात पुत्रियां थी जिनमें बड़ा पुत्र स्थूलिभद्र और सात पुत्रियों ने जैनधर्म नन्दवंशी राजा जैनी थे
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