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________________ वि० पू० २८२-२९८ वर्ष ] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास के हस्ती हुआ है और तेरे तपस्वी के भव में सहायता करने वाला मर कर राजा श्रेणिक के पुत्र बदल कुमार हुश्रा है अतः तुझे राजा श्रेणिक के यहाँ रहना अच्छा है आदि २ सब बातें सुन कर हस्ती को जातिस्मरण ज्ञान हो आया । अतः वह स्वयं राजा के राज में आ गया । आगे चलकर इन हार एवं हस्ती के लिये ही गजा चेटक और राजा कूणिक के आपस में बड़ा मारी युद्ध हुआ था वह कूणिक के जीवन में बतलाया जायगा। राजा श्रेणिक ने जैन धर्म स्वीकार करने के बाद जैन धर्म का खूब प्रचार किया था वह भी केवल भारत में ही नहीं बल्कि भारत के बाहर पाश्चात्य देशों में भी जैन धर्म का काफी प्रचार किया था। राजा श्रेणिक ने एक समय तीर्थ श्री शर्बुजय की यात्रार्थ संघ भी निकला था । कलिंग देश की उदयगिरि खण्डगिरि पहाड़ों पर के मन्दिरों की अनेक बार यात्रा की थी वहाँ पर आपने एक विशाल जैन मन्दिर बनाकर सुवर्णमय श्री ऋषभदेव तीर्थंकर की मूर्ति की स्थापना करवाई थी बह बात जैनशास्त्रों में और भी प्रसिद्ध है कि राजा श्रेणिक हमेशा १०८ सुवर्ण के तंदुल ( जो के बराबर ) बनाकर जैन प्रतिमा के सामने स्वस्तिक किया करता था राजा श्रेणिक के पहली मृगली की शिकार के समय नरक का आयुष्य बंद होगया था। अतः आप स्वयं व्रत नियम नहीं कर सकते थे । परन्तु व्रत नियम एवं दीक्ष लेने वाले को मदद करते थे। यदि राजा के कुटुम्ब के अन्दर से कोई भी दीक्षा लेने वाला हो तो इन्कार न करके, बड़े ही महोत्सब के साय दीक्षा दिला देता था। इस प्रकार धर्म प्रचार, धर्मोन्नति, धर्म दलाली करने से वह तीर्थकर नाम कर्मोपार्जन कर लिया था कि भविष्य की उत्सर्पिणी में पहला पद्मनाभ नामक तीर्थकर होगा। इसका विस्तार पूर्वक वर्णन स्थानायांग सूत्र के नौंवा स्थान में उल्लेख किया है राजा श्रेणिक ने अपनी पिछली अवस्था धर्मकार्य में व्यतीत की थी, गजा के कई गनियाँ एवं पुत्रादि कुटम्ब राजा की मौजूदगी में भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेली थी। राजा श्रेणिक का मुख्य मंत्री अभयकुमार था जिसका वर्णन जैन शास्त्रों में इस प्रकार से किया है:राजा श्रेणिक वनातट नगर में सेठ धम्ना की पुत्री नंदा के साथ विवाह किया था और नंदा को गर्भवती छोड़. कर श्रेणिक मगद में श्राकर राजा बन गया था परन्तु श्रेणिक राजा बन जाने के वाद नंदा को याद तक नहीं की। नंदा के पुत्र हुआ जिसका नाम अभयकुवार रखा। अब अभयकुमार बड़ा हुआ तो किसी लड़के के ताना मारने से अपनी माता से पूछा कि मेरे पिता कहाँ है ? और आप अपने पिता के घर क्यों रहती हो ? इस पर नंदा ने सब हाल कहा और राजा के दिये हुए मुद्राकादि चिन्ह बतलाये । इस पर अभयकुवार अपनी माता को लेकर मगद की ओर प्रस्थान कर दिया । क्रमशः राजगृह के एक उद्यान में आकर ठहर गये माता को उद्यान में ठहरा कर आप नगर में गया और वहां के जौहरियों के यहाँ बाजार में धन गेहना देखकर अभय कुमार चकित हो गया । वह एक रथशाला में जाकर बढ़िया राजशाही रथ किराये पर तैयार करवाया, दो चार दासियों को साथ लेकर जौहरी बाजार के पास एक गली में पाया । व्यापारियों से कहा कि महारानीजी पधारी हैं और कुछ जेवर खरीदेंगी । आप अपना बदिया जेबर दिखायें, जो पसंद होगा उसका मूल्य चुका दिया जा. यगा। जौहरी लोग अपने अपने बदिया कीमती जेवर कुमारको दे दिये । वह लेकर रफूचक्कर हुश्रा । स्थवाला और दासियें बाजार के नाके पर खड़ी थीं। जब घंटा दो घंटा व्यतीत हो गये तब जौहरी लोगों ने रथ के पास जाकर पूछा कि मंत्रीश्वर कहां हैं । हमाग जेवर वापिस नहीं आया। रथ वाले ने कहा कि हम तो किराये ७२० मन्त्री अभयकुमार की कथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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