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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ६८२-६९८
प्रकट खाते हैं इस पर राजाने कहा अरे पापात्मान् ! तेरे जैसा चण्डाल कर्म करने वाला एक तू ही है। हमारे प्रभु महावीर के पास १४००० मुनि अहिंसा धर्म का पालन करने वाले मन करके भी मांस खाना तो क्या पर मांस खाने वाले को भी अच्छा तक नहीं समझते हैं इत्यादि । देवता ने राजा को दृढ़व्रति जान कर दूसरा रूप एक साध्वी का किया और लोगों को दिखाया कि यह साध्वो गर्भवती है राजा के सामने पंसारी की दूकान पर सोंठ-अजवान मांगती हुई फिरती थी । जिसको देखकर राजा श्रेणिक ने कहा रे दुष्टा ! तू जैन धर्म को कलंकित क्यों कर रही है ? इस पर साध्वी ने कहा-राजा महावीर के पास ३६००० युवा स्त्रियां दीक्षित हुई हैं क्या वे सब ब्रह्मचर्य पालन कर सकती हैं ? हाँ कई गुप्ताचार करती हैं । मैं ऐसा करना नहीं चाहती इयादि । राजा ने कहा अरे पापात्मा ! तेरे जैसे काले कर्म तेरे ही हैं। हमारे भगवान महा. वीर की ३६००० साध्वियां मुक्ति की मुक्तामाल हैं वे सदैव नौवाड़ विशुद्ध ब्रह्मचर्य व्रत पालन करती हैं । जब देवता ने राजा के दिल को हर तरह से मजबूत और निशंक धर्म पर देखा तो वह असली रूप बनाकर राजा के चरणों में नमस्कार कर कहा राजन् ! तुझे कोटिशः धन्यवाद है इन्द्रराज ने जैसी आपकी प्रशंसा की वैसे ही श्राप दृढ़ धर्मी हैं । देवता ने रत्नमय कानों के दो कुण्डल और एक मिट्टी का गोला राजा को देकर अपने अपराध की क्षमा मांगकर स्वर्ग की ओर चला गया। राजा ने कानों का कुन्डल तो रानी नंदा को दिये
और मिट्टी का गोला गनी चेलना को दिया । इस पर चेलना को गुस्सा आया कि मिट्टी के गोले को दूर फेंक दिया। जब वह टूटा तो उसमें से १८ लड़ (सर) वाला दिव्य हार निकला जिसको देख रानी बहुत खुश हुई ।
राजा श्रेणिक के राज में एक सींचाना हस्ती भी था जिसकी कथा इस प्रकार बनी थी कि-एक हस्तियों का यूथ था। उसमें एक हस्ती और १००० हस्तिनियाँ थीं जब कभी हस्तिनी के बच्चा होता है तो हस्ती उसे मार डालता । कारण सब पर श्राप ही सत्ता रखना चाहता था। इस कारण कोई भी बच्चा जीवित नहीं रहने देता । तब हस्तिनियों ने सोचा कि इस प्रकार करने से अपना सर्वनाश हो जायगा क्योंकि एक दिन यह इस्ती भी मरने का है । इस हालत में एक हस्तिनी गर्भवती हुई; वह कभी कभी यूथ के पीछे २ रहकर तपस्वियों के आश्रम में जाकर बच्चे को जन्म दिया फिर यूथ से मिल गई तब उस हस्तिनी के बच्चे का तापसी ने अच्छा पालन पोषण किया और उसकी सूड में एक बालटी एवं डालची जैसा वरतन दिया ताकि वह नदी से पानी लाकर बगीचे को सींच दिया करे । इसलिये उसका नाम सींचाना हस्ती पड़ गया। जब इस्ती बड़ा हुश्रा और मद में आया तो एक समय तपस्वियों के बगीचे को उखाड़ कर साफ कर दिया । इस पर तपस्वियों को बड़ा गुस्सा आया । और उन्होंने राजा श्रेणिक को कहा कि यह हस्ती आपके पट्ट हस्ती करने योग्य है। इस पर राजा ने हस्ती को पकड़वाकर जंजीरों से बंधवा दिया । एक समय उसी रास्ते तपस्वी निकले । हस्ती को देख तपस्वी अपनी नाक पर उंगली लगाकर हस्ती को ताना मार कर कहने लगे अरे पापी ! हमाग नुकसान करने का फल मिल गया न ! यह सुन कर हस्ती को गुस्सा आया कि जंजीरों को तुड़ाकर जंगल में भाग गया। जिससे राजा को बहुत दुख हुआ । उस समय अभयकुमार, राजा को नमः स्कार करने आया था। राजा को चिन्ता में देख दुःख का कारण पूछा। राजा ने हस्ती का हाल कहा । अभयकुमार ने राजा को विश्वास दिलाया और हस्ती को लाने का नपाय सोचा पर ऐसा कोई उपाय उसको नहीं सूझा । आखिर तीन दिन उपवास करके देवता की आराधना की देवता आया और अभयकुमार को साथ लेकर हस्ती के पास गये, हस्ती को कहा-कि तू पूर्व भव में तपस्वी था। अज्ञान तप कर वहां से मर सींचानक हस्ती की कथा
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