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प्राचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ६८२-६६८
पर आये हैं । हमें क्या मालूम हम तो खुद ही किराये की राह देख रहे हैं। जौहरियों ने कहा कि रथ में महारानीजी बतलायी जाती हैं । इतने में दासियों ने कहा कि हमारी मजूरी कोन देगा ? पर्दा दूर करके रथ में देखा तो रथ में कोई नहीं । बस ! अब तो हाहाकार मच गया। जौहरियों के करोड़ों का जेबर चले जाने से वे लोग कोतवाल के पास गये और सब हाल कहा । कोतवाल ने जौहरियों को विश्वास दिलाकर स्वयं पहरा देने और ठग को पकड़ने के लिये भीषण प्रतिज्ञा की और रात्रि के समय की गश्त देने लग गयो ।
नब अभयकुमार को इस बात का पता लगा कि आज कोतवाल पहरा देगा तो उमने लाखों रुपये के वस्त्र भूषण पहन कर औरत का रूप बना आधी रात्रि में एक रास्ते से जाने लगा। वहाँ कोतवाल पहरा दे रहा था। कोतवाल ने औरत से पूछा कि तू कौन है ? गत्रि में कहां जाती है ? औरत ने उत्तर दिया कि मैं पति से अपमानित हो कुवां में पड़ कर मरने को जारही हूँ। कोतवाल ने औरत के रूप पर मोहित होकर कहा कि तू मरती क्यों है ? तू मेरे घर पर चल मैं तुमको अच्छे मान से रक्तूंगा। औरत ने कहा मैं किसी पुरुष का विश्वास नहीं करती हूँ। मुझे जाने दो, मैं मरूँगी हो । कोतवाल ने खूब विश्वास दिलाकर औरत को अपने घर पर लेगया । जब औरत घर पर पहुँची तो देखा कि द्वार पर बहुत से खोड़े पड़े हैं। ( जो चोरों के पैरों को डाल कर, खोली ठोक कर कैद में बन्द कर दिये जाते हैं) औरत ने पूछा कि यह क्या है ? कोतवाल ने कहा यह खोड़े हैं औरत ने पूछा कि इसका क्या किया जाता है ? कोतवाल ने जवाव दिया कि इसमें चोरों के पैर डालकर बंध कर दिये जाते हैं ? देखें, मैं पैर डालती हूँ ! कोतवाल ने कहा- आप नहीं, मैं पेर डालकर बतला देता हूँ। कोतवाल ने खोड़ा में पैर डाला तो औरत ने कहा कि ऐसे तो पैर निकल जाता है। कोतवाल ने कहा कि नहीं ये मेघचा पड़ा है इससे खीलो जोर से ठोक दी जाती है। उसने मेघचा लेकर खूब जोर से खीली ठोक दी और कोतवाल के ही जूतों से पांच दस जूता लगा कर पुकार दिया कि हे लोगों मैंने ठग को पकड़ लिया है। एवं खोड़ा में बंद कर दिया है। दोड़ो-दौड़ो जल्दी दौड़ों इतना कह औरत तो भाग गई । जब पुकार सुनकर लोग आये तो रात्रि में हा-हो को हुनड़ में कोतवाल को न पहचानने के कारण, जो आये वही कोतवाल को जूते लकड़ी से मारने लगे कोतवाल बहुत चिल्ला २ कर कहा, मगर सुने कोन ? जब सूर्योदय हुआ तब जाकर मालूम हुआ कि, ठग, कोतवाल को भी ठग गया है। इसके लिये गजा श्रेणिक की सभा में सब लोग एकत्र हुए । तब उस सभा में दीवान ने बीड़ा उठाया कि आज मैं ठग को पकडूंगा । बस ! दीवन सा.ब ने रात्रि के समय पेहरा देने लगे । इस बात की खबर पाकर अभयकुमार एक अवधूत योगी का रूप धारण कर बाजार के बीच में लकड़ा जलाकर जाप करने बैठ गया। दीवान साहब फिरते २ योगी के पास आ गये । कुछ सिद्धियों के बारे में पूछने लगे। योगी ने कहा कि तुम महान पापी हो । तुमको कोई भी सिद्धि नहीं बतलाई जायगी जब दीवान ने बहत आग्रह किया तो योगी ने कहा कि तुम व्यर्थ मुझे क्यो छेड़ते हो कारण इस कार्य के लिये सत्र से पहले तो लोक लज्जा जीतनी पड़ती है। तुमसे जीती नहीं जायगी अतः सीघे चले जाओ। दीवान ने कहा महात्माजी आप कहोगे मैं सव कुछ करूंगा। श्राप मुझे सिद्धि बतलाइये योगी ने कहा देख इसके लिये पहले तो शिर मुंडाना पड़ेगा, कोपीन लगा कर, एवं शरीर पर भस्म रमाकर, कल दुपहर तक जप करना होगा। जाप करना साधारण नहीं है किंतु आपका जप राजा भी नहीं छुडवा सकता है। तब फिर जाकर सिद्धि होगी। दीवान ने सव स्वीकार कर लिया। शिर के बाल कटा डाले, नग्न हो
मन्त्री अभयकुमार की बुद्धि
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