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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन
[ ओसवाल सं० ६८२-६९८
से हुआ था बात यह बनी थी कि-विदहदेश एवं वैशालनगरी के राजा चेटक के सात पुत्रियाँ थी गजा कट्टर जैनधर्मानुयायी था और उनकी प्रतिज्ञा भी ऐसी थी कि मैं मेरी किसी पुत्री को अजैन को नहीं ब्याहूँगा।
- राजा श्रेणिक ने कुँवरी चेलना के रूप लावण्य की प्रशंसा सुनी । अतः श्राप की इच्छा चेलना के साथ लग्न करने की हुई । पर राजा श्रेणिक उस समय जैन धर्मानुगामी नहीं था। अतः संदेश भेजने पर भी चेटक राजा अपनी प्रतिज्ञा भंग कर अपनी पुत्री जेनेतर के साथ कैसे परणा सकता था ? इसके लिये राजा श्रेणिक यह भी जानना चाहता था कि कुवरी चेलना मेरे साथ विवाह करने में खुश है या नहीं ? पर इसकी खबर कौन लावे ? मंत्री अभयकुवार को राजा ने सब हाल कहा अतः अभयकुवार इत्र का व्यापारी बनकर कुवरी चेलना और सुजेष्ठा के पास गया और दोनों राजकुवरियों को राजा श्रेणिक की ओर आकर्षित कर लग्न की बात पक्की कर आया । इसके बाद उसने एक सुरंग तैयार कराई कि जिससे दोनों कुवरियों का विवाह राजा श्रेणिक के साथ हो सके। सब राजवीज हो गई तो ठीक समय पर चेलना सुजेष्टा रथ पर बैठकर
आ तो गई पर सुजेष्ठा इस प्रकार बिना पिता की आज्ञा विवाह करना ठीक नहीं समझ कुछ बहाना कर वापिस लौट गई । आखिर में चेलना का विवाह राजा श्रेणिक के साथ होगया और सुज्येष्ठा आजन्म ब्रह्मचारिणी रही और समय पाकर भगवान महावीर के पास दीक्षा ले ली । राजा श्रेणिक के साथ चेलना का विवाह तो होगया पर आपस में धर्मभेद होने से धार्मिक विषय में उनके आपस में वाद-विवाद हमेशा चलता ही रहता था।
गजा श्रेणिक का घराना जैनधर्मोपासक ही था पर राजा के एक क्षेमा नाम की रानी बुद्धदेव के धर्म की उपासका थी अत: राज श्रेणिक का दिल भी बुद्ध धर्म की ओर भुक गया था अतः वह बुद्ध धर्म को श्रेष्ठ और जैन धर्म की हय समझता था तब रानी चेलन जैन धर्म को सर्वोत्तम और बुद्ध धर्म को हय समझती थी।
__ राजा भेणिक और रानी चेलना के कभी २ आपस में धर्मवाद भी हुआ करता था । इतना ही क्यों पर कभी कभी तो गजा जैन श्रमणों के आचार व्यवहार पर भी हस्तक्षेप किया करता था पर रानी चेलना भी कम नहीं थी। वह भी बौद्ध भिक्षुओं को आडे हाय लिया करती थी कि उनको पीछा छुडाना मुश्किल हो जाता था । एक समय राजा भेणिक ने एक जैन साधु जहाँ ठहरे थे वहां रात्रि के समय उस निर्ग्रन्थ के पास एक वेश्या को भेजदी इस गर्ज से कि जनता को यह बतलादें कि जैन साधु अपने मकान में रात्रि के समय वेश्याओं को रखते हैं। पर रानी चेलना ने साधारण साधुओं को नगर में आने की पहले ही से मनाई कर रखी थी। जो मुनि नगर में आये थे उनके पास कई लब्धियां थी । जब उनके पास रात्रि में बेश्या
आई तो अपनी लब्धी से वस्त्र पात्रादि जला कर राख कर दिये और राजा के गुरु का वेष धारण कर लिया। पुनः राजा ने रानी से कहा कि क्या तुम्हारे साधु गत्रि को वैश्या भी रखते हैं ? रानी ने कहा कि पतिदेव ! हमारे साधु नौवाड़ विशुद्ध ब्रह्मचर्य प्रत का पालन करते हैं, वैश्या रखने वाले हमारे नहीं पर आपके ही गुरु होते हैं । इस वाद-विवाद में सूर्योदय हो गया तब राजा-रानी और नगर के हजारों लोग साधु के स्थान पर गये और द्वार खोल कर देखा तो एक पोर थरथर कांपती हुई वैश्या खड़ी है और दूसरी ओर बौद्ध भिक्षु एवं अवधूत बाबा बड़ा है । जिसको देख कर राजा शरमिन्दा हो गया। खैर एक समय रानी चेलना ने राजा राजा और राणी के धर्मवाद
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