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________________ वि० पू० २८२-२९८ वर्ष ] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास (अनुसंधान इसी पुस्तक के पृष्ठ २५७ (ग) में देखो) उनका आदर कर आने का हाल पूँछा, सब व्यापारियों ने सब हाल कहा । सब बातें सुनकर गजा ने बड़ा ही अफसोस किया कि इससे तो मेरी अपकीर्ति होगा कि इतना बड़ा नगर में कोई विदेशी व्यपारियों का माल खरीदने वाला नहीं है इत्यादि सोचकर राजा ने सब व्यापारियों को बुलाया । उसमें धन्ना सेठ भी देवदत्त को साथ लेकर राज सभा में आये । राजा ने अफसोस के साथ व्यापारियों को कहा-क्या इन व्यापारियों का माल खरीदने वाला कोई व्यापारी हमारे नगर में नहीं है ? इसपर देवदत्त बोला कि क्यों नहीं ? हमारे सेठजी अकेले ही इन व्यापारियों का सब माल खरीद कर सकते हैं और बदले में तेजमतुरी * दे सकते हैं । परन्तु पास में बैठा हुआ धन्ना सेठ बड़ी ही चिंता करने लगा कि यह कैसा मूर्ख है ? इतना माल कैसे खरीद कर सकेगा ? कारण सेठ तेजमजरी के मूल्य एवं गुणों को समझता भी नहीं था। खैर ! व्यापारियों का माल लेकर बदले में देवदत्त ने तेजमतुरी देकर व्यापारियों को रवाना कर दिया । बाद में सेठ तेजमजरी के मूल्य एवं चमत्कार को सुन कर बहुत खुशी हुआ। और अपनी पुत्री नन्दा का विवाह मुसाफिर देवदरा के साथ कर दिया अब तो देवदत्त अर्थात् राजकुंवर श्रेणिक निन्दा के साथ सुख से भोग-विलास करता हुआ सेठ के यहां जमाइ होकर सुख से रहने लगा । समयान्तर नन्दा ने गर्भ धारण किया और उसका सुख से पालन करने लगी। इधर मगद में राजा प्रसेनजित बीमार होकर पुत्र श्रेणिक की प्रतीक्षा करने लगा ? बहुत आदमियों अथवा व्यापारियों को श्रेणिक का पता लगाने को भेजा मगर कहीं पर उसका पता नहीं लगा। दत्त नाम का विनजारा एक समय विदेश में जाकर वापिस मगद में पाया और भेंट लेकर राजा के पास गया । राजा ने श्रेणिक के विषय में पूछा । दत्त ने कहा कुंवर श्रेणिक बेनातट नगर में है। अतः राजा ने अपने मन्त्रियों को बेनातट नगर में भेजा । मंत्रियों ने श्रेणिक से मिल कर मगद चलने की प्रार्थना की। इस पर श्रेणिक मगद चलने को तैयार हुआ, पर नन्दा उस समय गर्भवती थी। मस्त्रियों ने नन्दा को साथ ले चलने के लिए आग्रह किया मगर श्रेणिक ने साथ ले चलना उचित नहीं सममा । अतः नन्दा को नामंकित मुद्रिकादि स्मृति चिन्ह देकर राजकुवर श्रेणिक वहाँ से रवाना होगये। सेठ धन्ना ने श्रेणिक को रवाना होते समय बहुत द्रव्य दिया था। कारण तेजमतुरी से श्रेणिक ने सेठ का खजाना धन से भर दिया था । श्रेणिक ने चलते २. रास्ते में थोड़ी बहुत क्रोज (सेना) भी बन ली थी। और क्रमशः चलते हुए मगद की राजधानी में पहुँचे । अपने पिता प्रसेनजित से मिले । राजा ने श्रेणिक का मगद की गद्दी पर गज्याभिषेक कर दिया बाद थोड़ा ही समय में प्रसेनजित राजा का देहान्त हो गया और भेणिक मगद का सम्राट बन गया। राजा श्रेणिक एक राजनीजिकुशल राजा था । आपने अपने पिता का राज की सीमा बढ़ाई। आपने अपना राज का सम्बन्ध आयों के अलावा अनार्यों के साथ भी जोड़ दिया था । राजा श्रेणिक के नन्दारानी के अलावा धारणी, काली, महाकाली, नन्दा, सुनन्द, भद्रा व सुभद्रादि बहुत सी रानियाँ थी। इनके अलावा एक चैलना नाम की रानी भी थी। और चेलना के साथ श्रेणिक का विवाह मंत्री अभयकुवार की बुद्धि चतुर्य उस समय प्रायः सिक्का का चलन नहीं था माल के बदले माल दिया जाता था । देखो-भागे सिक्का प्रकरण को wwwwwwwwwwwwwwww.vinyainnovruiremenre...] राजा श्रेणिक का जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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