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वि० सं० २८२-२९८ वष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
स स्नेह अपमान किया कि वह रुष्टमान होकर अपने पिता के घर पर चली गइ। बाण उसको मनाने के लिये गया पर स्त्री हट के कारण वह बाण के कहने पर खुशी नहीं हुई तब उसकी सखियों ने भी बहुत समझाया पर उसका कोप शान्त नहीं हुआ तब सखियों के कहने से बाण अपनी पत्नि के महल पर जाकर बहुत कुछ सममाया यहां तक कि रात्रि का शेष भाग रह गया अर्थात दिन उगने कि तैयारी हो गई तब भी वह नहीं समझी अतः बाण ने कहा कि हे ! सुन्दरी
“गत प्रायः रात्रिः कृशतनु शशी शीर्य द्व । प्रदीपोयं निद्रावस मुपगतो धूर्णत इब ॥
प्रणमान्तो मानस्तदपि न जहासि क्रुधमहो । कुच प्रत्यासत्या हृदयमपि ते सुभ्र कठिनम् ॥ १ ॥
हे कृशोदरी ? चन्द्र का प्रकाश मन्द पड़ गया है दीपक निस्तेज हो रहा है तथापि तुं अपना हट नहीं छोड़ती है इससे मालुम होता है कि कठीन स्तनों के पास में रहने से तेरा हृदय भी कठोर बन गया है ।
इस समय भींत के अन्तर में मयूर सुत्ता वह जगृत हो अपने जमाई के बचन सुना और उसने बाण को कहा है भद्र ? सुभ्र के स्थान चंडी शब्द का प्रयोग कर क्यों कि दृढ़ कोप करने वाली के लिये यह शब्द प्रयुक्त है । अपने पिता के शब्द सुनकर कन्या लज्जित होगई उसने सोचा कि मेरा सब वृन्तात पिता ने सुन लिया होगा उसे अपने अकृत्य पर बड़ा ही पश्चाताप हुआ और शान्त चित्तसे अपने पति का कहना स्वीकार कर संतुष्ट हो गई परन्तु भ्रांति के कारण अपने पिता पर उसको क्रोध हो आया और उसने श्राप दिया कि मेरे शील का प्रभाव हो तो मेरा पिता कुष्टि हो जाय । बस शील के प्रभाव से मयूर कुष्ठी हो गया। वाद वह मयूर पुत्री अपने पति बाण के साथ सुसराल चली गई।
मयूर कुष्ठी होने के कारण लज्जा के मारा राजसभा में जा नहीं सका जब कई दिन हो गया तो राजाने सभा को मयूर न आने का कारण पूछा तो बाण ने मयूर की निन्दा करता हुआ सकेत में कहा कि उसके शरीर में कोढ़ का रोग हुआ है इस को सुन राजा को बढ़ा ही दुखः हुआ अतः अपने मनुष्यों को भेज कर मयूर को राज सभा में बुलाया । मयूर की इच्छा नहीं थी पर राजा के बुलाने पर वह शरीर को कपड़ा से अच्छांदित कर राज सभा में आया। तब भी बाण ने मस्करी की कि शीत निवारण के लिये मयूर ने वस्त्र से शरीर अच्छांदित किया है कहा भी है कि 'जाट जमाई भाजा' अपने नहीं होते है । इत्यादि ।
जब मयूर राज सभा से लौट कर वापिस अपने घर पर आरहा था तो इच्छा हुई कि इस प्रकार कोढ़ सहित जीवन की बजाय तो मरना ही अच्छा है अतः उसने कोढ़ निवरिणार्थ सूर्य देव की आराधना करनी शुरु की सौ श्लोक से सूर्य की स्तुति की जिससे मयूर का कोढ़ चला गया और शरीर कंचन जैसा हो गया सुबह राज सभा में गया तो राजा ने पुच्छा की मयूर तेरा शरीर निरोग कैसे हुआ मयूर ने कहा कि मैने सूर्य देव की आराधना की है अतः राजा ने मयूर की प्रशंसा की जिसको बाण या बाण के पक्षकार पण्डित सहन
१ -- बाणोन्यदा संमपन्या स्नहतः कलहायितः । सिता हि मरिचक्षोदाइते भवति दुर्जरा ॥ ५२
पितुर्गृह मग्ग द्रुष्टा बाण पत्नी मदो द्धरा । सांय तद्गृह मागत्य भर्ता प्राहानुनीतये ॥ ५३ 28 शशाप कोपाटोपेन पितरप्रकटाक्षरम् । कुष्ठीभव क्रियाभ्रष्टावज्ञातो रस नात्रक ॥ ६७
*तस्याः शील प्रभावेण सद्यःश्वेतांग चंद्रकैः । कलाप्यने मयूरोग्रे तदा जज्ञस चन्द्रकी ॥ ६८ ५-बाणेनोचेस्फुटंदृष्दा मयूरं प्राकृताइथ | शीतरक्षांगसव्यान वर कोटिति संसदि ॥ ७६ ६-छिंदतः शेषपांद च मात डोक्त तेजसा । आगत्यास्य ददौ देहं मा बिध्या पितोऽनलः॥ ८४
[पण्डित मयूर और बाण का संबाद
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