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वि० सं० २८२-२९८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
की छाया देख मुनि थोड़ी देर के लिये ठहर गये। किसान हल को छोड़ कर मुनि के पास आया और पूछा कि हम तो गृहस्थ हैं कि दोपहर की धूप में भी काम करते हैं पर आपके सिर कौनसा कार्य है कि इस धूप में भी आप कहीं पर जारहे हैं ? मुनि ने उत्तर दिया कि हे भद्र ! मेरे आज एक मास की तपस्या का पारणा है मैं नगर में भिक्षा के लिये जारहा था। यहां वृक्ष की छाया देख विश्राम लिया है। किसान की भावना हुई कि यदि मुनि भिक्षा लें तो मेरे पास मौजूद है । किसान ने प्रार्थना की। मुनि ने कहा कि निर्वद्य भिक्षा हो तो मैं ले सकता हूँ पर किसान की रोटियें एक झाड़ पर लटक रही थी, मुनि नहीं लेसके । किसान निराश होगया। जब मुनि नगर की ओर जाने लगे तो किसान मुनि को सीधा रास्ता बतलाने को साथ गया कि मुनि को अधिक चक्र काटना न पड़े। रास्ता बतला कर किसान वापिस लौट रहा था तो मुनि ने सोचा कि इसने मुझे रास्ता बतलाया है तो मैं भी इसे रास्ता बतलाऊं। मुनि ने कहा भव्य तू मनुष्य है तो कुछ नियम व्रत ले कि तेरा कल्याण हो। किसान ने सोचा कि मेरे किसानी धंधा है मैं क्या प्रत लूं। आखिर उसने सोच विचार कर मुनि से कहा कि 'मन चाहे वह नहीं करना' मुझे नियम दिलादो । मुनि ने सोचा कि यह कोई पागल तो नहीं है। अतः किसान को कहा कि यह व्रत बहुत कठिन है योगी महात्माओं से भी पलना मुश्किल है। देख मेरा मन हुआ कि भिक्षा को जाना तो मैं चल कर यहां आया हूँ। अतः तू सोचले क्या तेरे से ऐसा भीषण व्रत पल सकेगा ? किसान ने कहा कि मैंने खूब सोच समझ कर ही प्रार्थना की है आप तो व्रत दिला दीजिये । मुनि को विचार तो बहुत हुआ पर उपका आग्रह देखकर नियम करवा दिया और मुनि नगर की ओर चले गये। किसान जहां था वहीं खड़ा रहा उसका मन हुआ कि हल के बैल जुड़े हुए खड़े हैं जाकर खेत जोतूं पर सोचा कि मैंने तो व्रत लिया है कि मन कहे वैसा नहीं करना। जब खड़ा रहने में थकावट मालूम हुई तो विचार किया कि बैठ जाऊँ पर फिर सोचा कि मन चाहे वह नहीं करना मेरा व्रत है वह नहीं बैठा। इतने में उसके कुटुंब वाले आये और उन्होंने कहा कि अरे पागल ! क्या किसो ने तुझे मंत्र से कील दिया है कि तू वहाँ से थोड़ा भी नहीं चलता है ? चल हल खड़ रोटी खा यहाँ खड़ा रहने से क्या होगा ? किसान ने कहा मैंने तो ब्रत लिया है कि मन कहे वैसा नहीं करना। मुनि भिक्षा लेकर उसी रास्ते से वापिस आये तो किसान वहाँ ही खड़ा पाया कि जहाँ वे छोड़ गये थे । किसान अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहा कि एक दिन दो दिन तीन दिन व्यतीत हो गये । ज्यों २ समय जाता था त्यों २ इसकी आत्मा से कर्म मल हट कर विशुद्ध ता बढ़ती जा रही थी। बस, चतुर्थ दिन सूर्य का उदय होते ही किसान को केवल ज्ञान होगया और थोड़ी देर में तो उसकी मोक्ष ही हो गई। इस दृष्टांत से आप समझ सकते हो कि मन को वश में करना कितना कठिन है और मन को वश में करने के बाद मुक्ति कितनी नजदीक है ।
श्रोताओ ! जैनधर्म में कारण से कार्य की सिद्धि मानी है। मुनि धर्म, गृहस्थ धर्म, तप संयम, पूजा प्रभावना तीर्थयात्रादि जितने धर्म कृत्य हैं वे सब कारण हैं और उन कारणों द्वारा मन को वश कर मोक्ष प्राप्त करना यह कार्य है।
____एक कार्य के अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे जिसका क्षयोपशम हो जैसी जिसकी रुचि हो उसी कारण से कार्य की सिद्धि कर सकता है इत्यादि सूरिजी ने विद्वत्तापूर्ण खूब विस्तार से व्याख्यान दिया जिसका प्रभाव श्रोताओं पर बहुत ही अच्छा हुआ और प्रत्येक कारण पर जनता की रुचि बढ़ती गई। इस प्रकार प्रत्येक विषय पर सूरिजी का विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान हमेशा होता था। जिससे जनता में
[ मन कब्जे पर किसान का दृष्टान्त Jain Education International
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