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________________ आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ६८२-६९८ ऐसे साधुओं से तो उल्टा कर्मबन्ध का ही कारण होता है अतः साधु ऐसे होने चाहिये कि राअवश्यं चरेज्ज लाढे, विरए वेदवियाऽऽ यरक्खिए । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, जे कम्हि वि णमुच्छिए स भिक्खू ॥ अकोसवहं वित्तु धीरे, मुणी चरे लाढे णिच्चमायगुत्त े । अन्वग्गमणे असंपहिट्ठे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ पंतं सयणासणं भत्ता, सीउन्हं विविहं च दंसमसगं । अन्वग्गमणे असंपहिट्ठे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू || अच्चणं रयणं चेव, वंदणं पूयणं तहा । इढीसकारसम्माणं, मणसा वि न पत्थए । सुक्कं झाणं झियाइज्जा, अणियाणे अकिंचणे । वोसट्ठकार विहरिज्जा, जाव कालस्स पज्जओ || इनके अलावा जैनेतर प्रन्थों में भी साधुओं के विषय में कहा है कि समः शत्रौ च मित्रेच, तथा मानपमानयोः । शीतोष्ण सुखदुःखेषु, समः सङ्ग विवर्जितः ॥ F श्रीमदभगवद् गीता श्र० १३ श्लो० १४ येन हृष्यन्ति लामेषु, नालामेषु व्यथन्ति च । निर्ममा निरहङ्काराः, सत्त्वस्थाः समदर्शिनः ॥ अष्टा सर्वभूतानां, मैत्र करुण एव च । निर्ममो निरहङ्कारः, महाभारत, शांतिपर्व, अ० १५६ श्लो० ३२ समदुखः सुखः क्षमी ॥ श्री० भगवद्गीता श्र० १२ श्लोक० ३२ राग द्वेषवियुक्तात्मा, समलोष्टाश्मकांचनः । प्राणिहिंसानिवृतश्च, मौनी स्यात् सर्व निःस्पृहः ॥ पद्मपुराण, अ० ५६. श्लो० १८ सज्जनो ! दुःख गर्भित, मोह भिंत और देखा देखी घर छोड़ने वाले तो सैकड़ों नहीं पर हजारों मनुष्य मौजूद होंगे पर मुनि पद में रमणता करने वाले थोड़े ही मिलेंगे । श्रात्म कल्याण करना कोई साधारण बात नहीं है। यहां तो मोहनी रूप पिशाच को पराजय करना है जैसे कर्मबन्धन में मुख्य कारण मन है वैसे कर्म तोड़ने में भी मुख्य मन ही कारण है देखिये - ऐलापुत्र वंस और डोर पर नाटक कर रहा था पर उसका मन विशुद्ध हुआ तो केवल ज्ञान हो गया । २ - कुर्मा पुत्र को दुकान पर बैठे को केवल ज्ञान हो आया । ३ - माता मरुदेवी को हस्ती पर केवल ज्ञान हुआ । १ ४ - पृथ्वीचन्द राजा को चवरी में नव वधु के हस्त मिलाप के स्थान केवल ज्ञान होगया । ज्ञान हो गया । ५ - गुणसागर को राज अभिषेक के समय केवल ६ - प्रश्नचन्द्र मुनि ने मन ही से सातवीं नरक के इत्यादि अनेक उदाहरण हैं इतना ही क्यों पर गृहस्थलिंग सिद्धा भी कहा है । अतः इसका कारण भी मन दलिये और मन ही से केवल ज्ञान हो गया । शास्त्रों में स्वलिंगसिद्धा, अन्यलिंगसिद्धा, और ही की विशुद्धता है । जिस मनुष्य ने मन को अपने वश में कर लिया है वह मिनटों में मोक्ष प्राप्त कर सकता है देखियेजंगल में एक किसान खेत खोड़ रहा था दोपहर के समय एक तपस्वी मुनि वहां आ निकले । वृक्ष मुनिपद की योग्यता और दीक्षा ] Jain Education International For Private & Personal Use Only ६९३ www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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