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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ६८२-६९८
आत्म कल्याण की अच्छी जागृति हुई। कई लोग तो संसार से मुक्त होकर सूरिजी के चरण कमलों में दीक्षा लेने को भी तैयार हो गये।
चतुर्मास समाप्त होने के पश्चात् जिन महानुभावों की इच्छा थी उनको दीक्षा और श्रावकवत प्रदान किये और भी कई शुभ कार्य हुये । बाद सूरिजी महाराज अपने पूर्वजों की पद्धति अनुसार मरुधर के प्रत्येक ग्राम नगर में आप एवं आपके साधुओं का विहार हुआ पुनः लाट सौराष्ट्र कच्छ सिन्ध पांचाल शुरसेन और पूर्व में अंग बंग मगध कलिंग आदि प्रान्तों में भ्रमण कर साधु साध्वियों की सार सँभाल श्रावकवर्ग को धर्मोपदेश तीर्थों की यात्रा और जैनधर्म का प्रचार एवं खूब ही उन्नति की।।
पावली में लिखा है कि एक समय आप विहार करते हुये मथुरा में पधारे। वहाँ के रहने वाले कुलभद्र गोत्रीय कोटाधिपति शाह ढढर श्रावक के बनाये श्रीपार्श्वनाथ के मंदिर के लिये एक स्फटिक रत्न की
और तीन सौ पाषाण एवं सर्वधातु की मूर्तियों की अंजनसिलाका एवं प्रतिष्ठा करवाई जिसमें शाह ढडर ने नो लक्ष द्रव्य व्यय किया तथा उसी सुअवसर पर देवी सच्चायिका की सम्मति से आपने अपने अन्ते वासी शिष्य गुणतिलक को सूरि पद अर्पण कर दिया और पट्टा क्रमानुसार आपका नाम रत्नप्रभसूरि रख दिया।
और आपने अपनी शेष जीवन यात्रा मथुरा में ही समाप्त की जब आपने अपना आयुष्य नजदीक जाना नो चतुर्विध श्रीसंघ के समक्ष अनशनव्रत ले लिया और पंचपरमेष्टि महामंत्र के स्मरण पूर्वक समाधि से स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर दिये।
आपके स्वर्गवास से श्रीसंघ का दिल व्याकुल होरहा था शोक के काले बादल सर्वत्र छागये थे फिर भी निरानन्द होते हुये भी आपके निर्वाण का महोत्सव बड़े ही समारोह से किया तथा आपके मृत शरीर के अग्नि-संस्कार के स्थान प्रापकी पुन्य स्मृति के लिये एक विशाल स्थूभ बनबाया।
श्राचार्य श्री के शासन में भावुकों की दीक्षाएँ १-राजपुर के भरिगोत्रीय शाहबाला ने सूरिजी के पास दीक्षा ली २-माण्डलपुर के ब्राह्मण दाहिर अपने दो पुत्रों के साथ ३-खटोली के बलाह गौ. शाह जैता ने सूरीजी के पास दीक्षा ली ४-षटकुंप के श्रेष्ठिगोत्रीय मंत्रीदेवा ने ५-मेथलीपुर के वाप्पनागगौ- रुघनाथ ने ६-पद्मावती के क्षत्रीवीर सुरजा ७- शालीपुर के करणाटगी.
चूड़ा ८--सावत्थी के भाद्रागोत्री० नैना ९-तक्षिला के श्रादित्यनाग० हरदेव १०-साहापुरा के गाथापति भोजा ११-मालपुरा के चोरलिया० चनुरा ने १२-मेदनीपुर के सुचंतिगौः खंगार ने
१३-- नागपुर के श्री श्री माल माला ने सरिजी के शासन में भावुकों की दीक्षा ]
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