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________________ आचार्य देवगुप्तसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ६६०-६८२ For TE TERE ITE TEETr १९ कीराटपुर के श्री श्रीमाल शाह सणा दीक्षाली २० वर्धमान० के श्रेष्टि गौ० , हेमा २१ सोपार० के कुमट गौ. , माना २२ उज्जैन के कनौरिजया , २३ माडव्यपुर के चिंचट , जौधा २४ आघाट के चरड़ गौ० , कुमार २५ मध्यमिका के अदित्यनाग , खीवसी ने २६ चंदेरी के संचेती गौ० , चांचा २७ मथुरा के सुघड़ गौ० , चहाड़ ने , २८ लोहाकीट के चोरलिया० , देवा ने , २९ वीरपुर के ब्राह्मण , जगदेव ने , ३० रानकपुर के राव , हप्पा ने , इनके अलावा आपश्री के जीवन में कई स्थानों पर मुमुक्षुओं को दीक्षा दी थी और कई बहिनों ने भी दीक्षा ग्रहण कर अपना कल्याण किया था । तथा आपके आज्ञावृत्ति मुनियों ने भी बहुत से भव्यों को दीक्षा देकर श्रमण संघ में आशातिता वृद्धि की थी आपका शासन समय जैनधर्म की उन्नति का समय था प्राचार्यश्री के शासन समय तीर्थों के संघ१-नागपुर नगरसे अदित्यनाग गौत्रीय शाह फुवा ने श्रीशचॅजय का संघ निकाला-साधर्मी भाइयों को सोना मुहरों की पहरामणि दी सात यज्ञ किये । आपके एक पुत्र और दो पुत्रियां दीक्षा भी ली । २-चन्द्रावती नगरी से प्राग्वटवंशीय शाह कर्मा ने श्री शत्रुजय गिरनारादि तीर्थों का संघ निकाला जिसमें ८४ देरासर और एक लक्ष से अधिक यात्रु लोग थे शाह कर्मा ने साधर्मी भाइयों ने सोना मुहरों की पहरामणी दी और तीन बड़े यज्ञ किये । इन शुभ कार्यों में कई पन्द्रह लक्ष द्रव्य व्यय किया। ___३-उज्जैन से श्रीष्टि नारा ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला जिसमें श्रेष्टिवर्य्यनारा ने नौ लक्ष रूपयें व्यय कर अनन्त पुन्योपार्जन किया । और साधर्मी भाइयों को पहरामणी दी ४-शिव नगर से भद्र गौत्रीय मंत्री लाखण ने श्री सम्मेता शिखरजी तीर्थ का संघ निकाला जिसमें ११ हस्ती १२० देरासर तीन हजार साधु साधियों और करीबन एक लक्ष यात्रुओं की संख्या थी मंत्री ने वड़े ही उदार चित से पुष्कल द्रव्य व्यय किया ओर पूर्व की तमाम यात्राएँ की धन्य है ऐसे नर रत्नों को । ५-कोरंटपुर से श्रीमाल हाला ने श्री शत्रंजय का संघ निकाला६-सोपारपट्टन से वलाह गौत्रीय शाह मघा गोपाल ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला७-टेलीपुर मे प्राग्वट जालण ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला८- शंखपुर से तप्तभट्ट गोत्रीय मंत्री नागदेव ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला९-दान्तीपुरा से बापनाग गौत्रीय शाह लाधा ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला १८-स्तम्भनपुर से प्राग्वट रघुवीर ने श्री शत्रुजय का विराट संघ निकालासरिजी के शासन में तीर्थों के संघ ] ६८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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