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________________ वि० सं० २६०-२८२ वष ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास प्राचार्य देवगुप्तसरिजी ने अपने २२ वर्ष के शासन में जैनधर्म की खूब ही कीमती सेवा की । अन्त में देवी सच्चायिका की प्रेरणा से आप तीर्थ श्री शत्रुजय पधारे । आपश्री का शुभागमन शत्रुजय का सुनकर चारों तरफ से संघ आपके दर्शनार्थ आये तीर्थ स्पर्शन और गुरुसेवा फिर तो कहना ही क्या था। सरिजी ने अपना शेष अल्प आयुष्य जानकर श्रीसंघ के महा महोत्सव के साथ उपाध्याय सोभाग्यकीर्ति को अपने पद पर आचार्य बनाकर उनका नाम सिद्धसूरि रक्खा दया बाद में आप एक मास के अनशनपूर्वक समाधि मरण के साथ स्वर्ग पधार गये। आपके स्वर्गवास से मनुष्यों को तो क्या पर देवियां भी निरानन्द होगइ थीं । देवियों ने महाविदेह क्षेत्र में जाकर पूछा कि हे प्रभो ! भरत क्षेत्र में प्राचार्य देवगुप्तसूरि का देहान्त होगया वे किस स्थान में गये होंगे । तीर्थकरदेव ने फरमाया कि देवगुप्तसूरि आठवें स्वर्ग में महाऋद्धि वाला देव हुआ है और वहाँ से चवकर महाविदेह क्षेत्र में एक राज कुँवर होगा और दीक्षा लेकर मोक्ष जायगा । देवियों ने पुनः सिद्धिगिरि पर पाकर चतुर्विध श्रीसंघ को सव हाल कह सुनाया । श्रीसंघ ने उन महाविभूती की यादगारी के लिये अर्थात् आचार्य देवगुप्तसूरि का एक स्तुम्भ बनाकर उनकी पादुका स्थापन की। पट्टावलियों वंशावलियों आदि चरित्र ग्रन्थों में आचार्यश्री के जीवन के साथ अनेक व्याख्याएँ मिलती है। पर प्रन्थ बढ़ जाने के भयसे यहाँ पर थोड़े से केवल नामोल्लेख ही कर दिया जाता है । प्राचार्य श्री के शासन समय भावुकों की दीक्षाएं । १ उपकेशपुर के भद्रगोत्रीय शाह कुम्भा ने सूरिके पास दीक्षाली २ शवस्वपुर के श्रेष्टिगौत्रीय , नारायण ने , ३ नागपुर के बाप्पनाग गौ० ,, हरपाल ने , ४ पद्मावती के आदित्य नाग०,, काला । ५ हर्षपुर के भूरिगोत्री० , दैपाल ६ नागपुर के सुघड़ गौ. ७ हंसावली के चोरलिया जाति,, ८ विराटपुर के मल्ल गो , कल्हण ९ आसिका के चंडालिया , यशबीर १० शाकम्भरी के तप्तभट्ट , माथुर ११ कातण के करणाट , सहरण १२ पाल्हिका० के श्री श्रीयाल , करमण १३ कोरंटापुर के प्राग्वट १४ चन्द्रावती के श्रीमाल मेहराज १५ मुग्धपुर के प्राग्वट मुकन्द १६ खकुंप के बलाह. भाखर १७ डामरेल के कुलभद्र , भारथ ने १८ उच्चकोट के वीरहट० , भीमा ने ६८० [ सिद्धगिरि पर सूरि-गवास रामा T TT TT " मुसल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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