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प्रभु से प्रश्न किये और अन्त में श्रमण दीक्षा स्वीकार की वहाँ से श्रावस्ति में पधार वहाँ सुमनोभद्र सुप्रतिष्ठित ने दीक्षा ली वहाँ से वाणिज्यग्राम में पधारे और गाथापति आनन्द तथा उसकी स्त्री सेवानन्दा को हस्थ धर्म की दीक्षा दी इनके अलावा आपके बिहार के अन्दर बहुत से लोग आपके परमोपासक बन गये । ३- तीसरा चतुर्मास वाणिज्य प्राम नगर में बिताया प्रचार कार्य बढ़ा बाद वहाँ से विहार कर भगवान् पुनः राजगृह में पधारे वहाँ गोतम ने काल विषय के प्रश्न किये तथा धना शालिभद्र को दीक्षादी और भी बहुत लोगों ने भगवान् के उपदेश को स्वीकार किया ।
४ - चतुर्थ चतुर्मास भगवान् ने राजगृह नगर में किया बाद विहार कर चम्पानगर में पधारे वहाँ के राजदत्त का पुत्र महचन्द्र कुवार को दीक्षा दी बाद सिन्धु सौवीर के वीतभय पहन जाकर राजा उदाई को दीक्षा दी।
५ - पांचवा चतुर्मास भगवान् ने वाणियाप्राम नगर में बिताया वहाँ से विहार कर बनारसी नगरी आये वहाँ के राजा ने प्रभु का सत्कार किया आपका धर्मोपदेश से वहाँ के गाथापति चूलनीपिता तथा उसकी स्त्री श्यामा और सुरादेव तथा उनकी भार्या धना ने गृहस्थ धर्म ( श्रावक ) स्वीकार किया तत्पश्चात् श्रालम्बिया नगर में आये वहाँ पोगल सन्यासी को समझा कर श्रमण दीक्षा दी वहाँ चूलशतक गाथापति तथा उसकी पत्नि बहुलाने गृहस्थ धर्म स्वीकार किया बाद भगवान् राजगृह पधारे वहाँ भी मंकाती किंकम अर्जुन और काश्यपादि ने श्रमण दीक्षा ली ।
६- छटा चतुर्मास राजगृह में किया श्रापका प्रवचन होता रहा बाद प्रभु राजगृह में ही ठहरे वहीँ राजा श्रेणिक ने दीक्षा के लिये उद्घोषणा करदी कोई भी दीक्षा ले मेरी श्राज्ञा है तथा मैं सब तरह की सहायता करुगा जिससे श्रेणिक के पुत्र जाली मयाली वाली श्रादि २३ पुत्र और नंदा सुनंदादि तेरह राणियो दीक्षा ली और भी नागरिकों ने भी दीक्षा ली ।
श्रार्द्रकुमार और गौसालों श्रादिकों के साथ संबाद बाद श्रार्द्र कुमार की दीक्षा ।
७ - सातवां चतुर्मास राजगृह नगर में व्यतीत किया, बाद आलंभिया नगर में पधारे वहाँ ऋषिभद्र पुत्र श्रावक तथा अन्य श्रावकों का संबाद का समाधन भगवान ने किया रांणी मृगावती तथा उज्जैन के राजा प्रद्योतन की रांगी ने प्रभु पासे दीक्षाली बाद पुनः विदेह में पधारे ।
८ - श्रात्रचतुर्मास वैशाली में ही किया वहाँ से विहार कर काकन्दी में पधारे वहां धन्ना सुनक्षादि को दीक्षा दी वाद काम्पिलपुर पधारे वहीँ कुण्डकोलिक को श्रावक के व्रत दिये फिर पोलासपुर पधारे वहाँ गौसाल का भक्त सकडालपुत्र कुम्हकार रहता था उसको श्रावक बनाया उसकी स्त्री अग्निमित्र ने भी भावक के व्रत लिये।
९ - नोवा चतुर्मास वाणिज्य ग्रामनगर में बिताया वहाँ से विहारकर राजगृह नगर में पधारे वहाँ पर महाशतक को श्रावक व्रत दिये वही पार्श्वनाथ के संतानियों ने प्रश्न किया प्रभु ने समाधान कर उनको चार के पांच महाव्रत दिये रोहा मुनि के प्रश्न भगवान् के उत्तर ।
१० - दुरावा चतुर्मास भगवान् ने राजमह नगर में किया वहां से कंयगला नगर में पधारे रंकद सन्यासी की दीक्षा श्रागे विहार कर श्रावस्ति नगरी में धर्मोपदेश दिया वहां नन्दनीपिता सालनीपिता तथा इन दोनों की स्त्रियों ने श्रावक के व्रत धारण किया ।
११ – ग्यारवा चतुर्मास वाणिज्य ग्राम नगर में किया जमाली ५०० साधुओं को विहार किया कोसुंबी में सूर्य चन्द्र मूल रूप से आये प्रभु राजगृह में बेहास अभय का अनसन
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लेकर अलग त स्वर्ग ।
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