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________________ [ ५६ ] भगवान् महावीर का विहार क्षेत्र भगवान् महावीर के श्रमण जीवन में छद्मस्थावस्था के १२ वर्ष का हाल तो कल्पसूत्रादि अनेक थानों पर दृष्टि गोचर होता है। पर केवलावस्था में भगवान् ने ३० वर्षों में कहाँ कहाँ विहार किया श्रीर विहार के अन्दर किस किस स्थान पर क्या क्या धर्म कार्य हुआ इत्यादि सिलसिलेवार वर्णन आज पन्त कहीं पर भी देखने में नहीं आया था परन्तु हाल ही में पूज्य पन्यासजी श्री कल्याणविजयजी महाराज ने कई वर्षों तक बड़ा भारी परिश्रम कर " श्रमण भगवान् महावीर” नाम का प्रन्थ लिखा तथा वह मुद्रित भी हो चुका है इस प्रन्थ को लिखकर पन्यासजी महाराज ने जैन समाज पर महान उपकार किया है। उसी प्रन्थ के आधार पर मैं भगवान् महावीर के तीर्थङ्कर जीवन के विषय में यहाँ पर संक्षिप्त से हाल लिख देता हूँ । भगवान् महावीर ३० वर्ष गृहस्थावास में रहे बाद श्रमण दीक्षा स्वीकार कर बारह चतुर्मास छद्मस्था वस्था में बिताये। जैसे १ - श्रस्थिप्राम २ - राजगृहनगर ३ - चम्पापुरी ४ - पृष्ठचम्पा ५ -- महिला नगरी ६ - महिलानगरी ७ - श्रालंमियानगरी ८- राजगृहनगर ९ - अनार्यदेश में १० - श्रादस्ति नगरी ११ - विशालानगरी ११ - चम्पानगरी उपरोक्त स्थानों में भगवान् ने बारह चतुर्मास किये । तीर्थङ्कर अवस्था में भगवान के ३० चतुर्मासों का वर्णन : जब भगवान को केवल ज्ञानोत्पन्न हुआ पहली देशना में किसी ने व्रत नहीं लिया तब रात्रि में ४८ कोस चलकर मध्यमा नगरी के महासनोधन में पधारे देवो ने समवसरण की रचना की । वहाँ पर सोमल ब्राह्मण के वहाँ एक वृहद् यज्ञ का आयोजन हो रहा था और बहुत दूर दूर से पण्डित भी आये थे उनमें इन्द्रभूति आदि ११ पण्डित तथा ४४०० उनके शिष्य भी थे जब उन्होंने भगवान का समवसरणादि की महिमा सुनी तो इर्षा के मारे एक एक भगवान के पास गये भगवान उनके दिल की शंका का समाधान कर क्रमशः ११ आचार्य और उनके ४४०० शिष्यों को श्रमण दीक्षा दे उन ११ को गणधर पद दिया जिसके लिये जैन शास्त्रों में गणधर बाद के नाम से बहुत विस्तार से वर्णन है भगवान ने वहीं पर चतुर्विध श्री संघ की स्थापना की बाद वहाँ से विहार कर क्रमशः राजगृह नगर में पधारे वहाँ भी आपका धर्मोपदेश हुआ। जिसके फल स्वरूप - १ - राजा श्रेणिक का पुत्र मेघकुमार तथा नन्दोषेण ने श्रमण दीक्षा ली । २ - राजकुमार अभय तथा सुलसाने श्रावक धर्म स्वीकार किया । भावुक ३ - राजा श्रेणिक ने प्रवचन पर श्रद्धा यानि सम्यक्त्व धारण की इनके अलावा भी बहुत से भगवान के भक्त बन गये । १ - पहला चतुर्मास राजगृहनगर में हुआ वहाँ प्रवचन का प्रचार हुआ बाद वहाँ से विहार कर क्षत्रीकुण्ड महाकुण्ड नगर की ओर पधारे वहाँ भी आपका प्रवचन हुआ जिससे -- १ - जमाली क्षत्रियकुमार ५०० के साथ तथा उनकी पत्नी १००० के साथ प्रभु पास दीक्षाली । २ - ब्राह्मण ऋषभदता तथा देवानन्द ने भी दीक्षा ली इनके अलावा भी बहुत लोग भगवान के उपासक बन गये । २ - दूसरा चतुर्मास बैशालानगर में व्यतीत किया बाद वहाँ से विहार कर कौशाम्बीनगर में पधारे वहाँ पर राजा दाई की माता मृगावती तथा भुश्रा जयंति भगवान को वन्दन किया भगवान ने देशनादी ज 'ति ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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