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________________ राजा की ज्वाला देवी राणि के विष्णुकुमार और महापद्म नाम के दो पुत्र हुए इस समय अवंती नगरी का श्रीधर्म नामक, राजा के राज्य में नमूची जिसका दूसरा नाम बलमंत्री था जाति का वह ब्राह्मण था उस समय मुनिसुव्रत भगवान के शिष्य सुव्रताचार्य वहां पधारे नमुचिबल उनके साथ शास्त्रार्थ कर पराजय हुआ तब रात्रि में तलवार ले प्राचार्य को मारने को चला प्राचार्य के अतिशय से वह रास्ता में स्थंभित हो गया सुबह उसको बहुत निंदा हुई तब वहां से मुक्त हो हस्तनापुर में जाकर युगराजा महापद्म की सेवा करने लगा एक समय महापद्म किसी कार्य से संतुष्ट हो 'यथेच्छा" वर दे दिया था कालान्तर पद्मोतर राजा और विष्णुकुमार ने तो सुव्रताचार्य के पास दीक्षा ग्रहण कर ली और महापद्म राजा हो क्रमशः छे खण्डाधिपति चक्रवर्ती राजा हो गया बाद सुव्रताचार्य फिर से हस्तनापुर आये नमुचि-बलने सोचा कि इस समय इस आचार्य से वैर लेना चाहिये तब महापा से अर्ज करी कि वेदों में कहा माफिक मेरे एक महायज्ञ करना है वास्ते मुझे पूर्व दिया हुश्रा वर-वचन मिलना चाहिये राजा ने कहा मांगो तब नमुचिने यज्ञ हो वहां तक सर्व राज मांगा वचन के बंधा राजा ने नमुचि को राज दे आप अन्तेवर घर में चला गया बाद नमुचि ने नगर कर बाहर एक मंडप तैयार करवाय के श्राप गजा बन गया एक जैन साधुओं के सिवा सब लोक भेट ले के नमुचि के पास आये नमस्कारादि किया नमुचि ने पुछा कि सब लोगों की भेट आगई व कोई रहा भी है ब्राह्मणों ने कहा एक जैनाचार्य नहीं आये है। इस पर नमुचिने गुस्से हो कहला भेजा कि जैनाचार्य तुमको यहां आना चाहिये आचार्य ने कहलाया कि संसार से विरक्त को ऐसे कार्यों से प्रयोजन नहीं है इस पर नमूचि क्रोधित हो हुक्म दिया हमारे राज से सात दिनों में शीघ्र चले जावो नहीं तो कतल करवा दिया जावेगा यह सुन आचार्य को बड़ी चिंता हुई कि चक्रवर्ती का राज छः खण्ड में है तो इनके बाहर केसे जा सके प्राचार्य श्री सब साधुओं को पूछा कि तुम्हारे अन्दर कोई शक्तिशाली है कि इस धर्म निंदक को योग सजा दे इसपर मुनियों ने अर्ज करी ऐसा मुनि विष्णुकुमार है पर वह सुमेरूगिरि पर तप कर रहा है प्राचार्यश्री ने कहा कि जावो कोई मुनि उसको यह समाचार कहो । एक मुनिने कहा वहां जाने कि शक्ति तो मेरे में है पर पीछे आने को नहीं सूरिजी ने कहा तुम जावो विष्णुकुमार को सब हाल कहके यहां ले आवो वह तुमको भी ले आवेगा इस माफिक बिष्णु मुनि गुरु के पास आया बाद विष्णुमुनि राजसभा में गया नमूचि के सिवाय सबने उठके वन्दन करी बाद धर्मदेसना दी और नमूचि से कहा हे विप्र । क्षणिक राज के लिये तू अनिति क्यों करता है चक्रवर्ती का राज छे खण्ड में है तो तब साधु सात दिन में कहां जा सके इत्यादि नमूचिने कहा कि तुम राजा के बड़े भाई हो वास्ते तुमको तीन कदम जगह देता हूँ बाकी कोई मुनि मेरे राज्य में रहेगा उसे मैं तत्काल ही मरवादूंगा : इस पर विष्णु मुनिने सोचा कि यह मधुर वचनों से मानने वाला नहीं है तब वैक्रयलब्धि से लक्ष योजन का शरीर बनाके एक पग भरतक्षेत्र दूसरा समुद्र और तीसरा पग नमूचि-बल के सिर पर रखा कि उसको पागल में घुसा दिया वह मरके नरक में गया और विष्णुमुनि अपने गुरु के पास जा आलोचना कर क्रमशः कर्म क्षयकर मोक्ष गया। भ० ऋषभदेव से भगवान महावीर तक २४ तीर्थंकरों का विस्तृत हाल कोष्टक में दिया गया है पर बीच बीच में जो विशेष घटना घटित हुई वे कोष्टक में तो पा नहीं सके और जाननी भी जरूर थी अतः मैंने उन विशेष घटनाएँ को संक्षित रूप से यहाँ लिखदी है। विशेष भ० महावीर का छद्मस्थ जीवन तो कल्पसूत्रादि कई स्थान पर मिलता है और हम प्रति वर्ष पढ़ते भी है पर तीर्थकर जीवन सिल सिलेवार कहीं पर दृष्टि गोचर नहीं हुआ था अतः यह बिल्कुल _dain E लुगा साहित्य है पाठकों के अवलोकनार्थ यहाँ दे दिया जाता है www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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