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[ ५७ 1 हसवा यमदग्नितापस जो ज्यान लगा के तपस्या करता था उसकी दाढी म चाड़ा चाडाका रूप बना कर बठ र चीड़ा कहने लगा कि मैं हेमाचल पर जाऊंगा-चीडी बोली तुम वहां जाके किसी दूसरी चीडी से यारि कर लोगे ? चीडा ने कहा नहीं करूगा भगर में ऐसा करूं तो मुझे गौ हत्या का पाप लगे। चीड़ी ने कहा ऐसे मैं नहीं मानूं ऐसे कहो कि मैं किसी दूसरी चीडी से यारि करूं तो इस यमदग्नि का पाप मुझे लगे यह सुनते ही तापस को खूब गुस्सा आया और पुच्छा कि क्या मेरा पाप गौहत्या से भी ज्यादा है चीड़ी ने कहा कि तुमको मालूम नहीं है कि शास्त्र कहता है "अपुत्रस्य गति स्ति" यह सुनके तापस को पुत्र की पिपासा लगी तब एक नजिक नगरी में गया वहां का जयशत्रु राजा ने आदर दिया बाबाजी ने राजा के १०० पुत्रियों में एक पुत्री की याचना करी । राजा ने कहा जो श्रापको चाहे उसको आप ले लीजिये । तापस ने सबसे
आमन्त्रण किया पर ऐसी भाग्यहीन कौन कि उस तापस को वर करे । एक छाटी लड़की रेतमें खेलती थी उसे ललचा के तापस अपने आश्रम में ले आया बाद युवा होने पर उसके साथ लग्न किया । रेणुका ऋतु धर्म हुई सब तापस बरु (पुत्रविद्या) साधन करने लगा रेणुका ने कहा कि मेरी बहिन हस्तनापुरका राजा अनंतवीर्य को परणाई है उसके लिये भी एक चरू साधन करना । तापस ने एक ब्राह्मण दूसरा क्षत्रिय होने की विद्या साधन करी रेणुकाने क्षत्रिवाला और उसकी बहिन को ब्राह्मणवाला चरू खिलाने से दोनों के दो पुत्र हुये रेणुका के पुत्र का नाम राम, बहिन के पुत्र का नाम कृतवीर्य-राम ने एक वैमार विद्याधर की सेवा करी जिससे संतुष्ट हो उसने परशुविधा प्रदान करी । तब से राम का नाम परशुराम हुआ । एकदा अनंतवीर्य राजा अपनी साली रेणुका को अपने वहां लाया परिचय विशेष होने से रेणुका से भोगविलास करते हुए को एक पुत्र भी हो गया बाद यमदाग्नि स्त्री मोह में अन्ध हो सपुत्र रेणुका को अपने आश्रम में लाये परन्तु परशुराम ने उसका व्यभि. चार जान माता और भाई का सिर काट दिया बाद अनंतवीर्य ने यह बात सुनी तत्काल फौज ले आया वापस का पाश्रम भस्म कर दिया यह परशुराम को ज्ञात हुआ तब परशू लेके हस्तनापुर जाकर राजा को मारडाला कुतवीर्य क्रोधित हो यमदग्नि को मारा तब परशुगम कृतवीर्य को मारडाला तब कृतवीर्य की तारा राणी सगर्मा वहां से भाग के किन्हीं तापसों के सरणे गई परशुराम हस्तनापुरका राजा बन गया-ताराराणी भूमिग्रह में छिपके रही थी वहां चौदह स्वप्नसूचक पुत्र जन्मा जिसका नाम सुभूम रखा गया। परशूगम ने सातवार निःक्षत्रियपृथ्वी कर दी उन क्षत्रियों की दाड़ों से एक स्थल भरा। परशूगम किसी निमितिये को पुच्छा कि मेरा मरणा किसके हाथ से होगा तब उसने कहा कि जिसके देखते ही दाढ़ों का थाल खीर बन जावेगा उस खोरको खाने वाला निश्चय तुमको मारेगा। परशुरामने एक दानशाला खोली और दाढ़ोंवाला थाल वहां सिंहासन पर रख दिया इधर एक मेघ नामका विद्याधर निमित्तिया के कहने से अपनी पद्मश्री नामकी पुत्री सुभम को परणा दी थी बाद माता के कहने से सुभम पिछली बात और परशुराम का अत्याचार जान कर वहाँ से हस्तनापुर में गया दाढ़ी को देखते ही खीर बन गई उसको सुभूम खा गया उसी थाल का चक्र बना परशराम का सिर काट आप एक नगर का ही नहीं पर सार्वभौम्य राज करने वाला, चक्रवर्ती हुआ।
पुरांण वालों ने लिखा है कि परशुराम परशु ले क्षत्रियों को काटता हुआ रामचंद्रजी के पास पाया जब रामचन्द्रजी ने परशुराम की पग चंपी कर उसका तेज हर लिया सब परश नीचा पड गया फिर उठा नहीं सके । कैसी असंभव बात है कि एक अवतार दूसरा अववार को मारने को आवे फिर भी तुर्रा यह कि एक अवतार दूसरा का तेज को भी हरण कर लिया क्या बात हैं ? सत्य तो यह है कि वह रामचन्द्रजी नहीं पर सुभम चक्रवर्ती ही था, इति अष्टमा चक्री____ आपके शासन में महापद्म नाम का नौवा चक्रवर्ती हुआ जिसका संबन्ध-हस्वनापुर नगर में पद्मोत्तर
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