________________
[ ५६ ] यादुराजा
शौरी (नागपुर में राज किया
सुवीर (मथुरामें)
अधिक विष्णु
भोजक विष्णु
। । । । । । । समुद्रविजय प्रक्षोभ स्तिमत सागर हेमवात अचल धरण पूर्ण अभि० वसुदेव
उग्र सेन
नेमिनाथ
श्रीकृष्ण
११-पीपलाद द्वारा यज्ञादि की उत्पतिःकाशीपुरी में दो संन्यासिनियां रहती थीं जिसमें एक का नाम सुलसा दूसरी का नाम सुभद्रा था वे दोनों अच्छी लिखी पढ़ी धर्म शास्त्रों की भी जानकार थीं बहुतसे पण्डितों को वादमें परास्त भी किये उस समय याज्ञवल्क्य नामक परिव्राजक यह हाल सुन कर उन दोनों संन्यासिनियों के साथ वाद करने को प्राया और ऐसी शर्त रखी कि हारजाने वाला जीतजाने वाले की जन्म भर सेवा करे । जब वाद हुआ तो याज्ञवल्यक्य ने सुलसा को पराजय कर अपनी सेवा करने वाली बनाली । पर दोनों के युवक वय में वे कामदेव के गुलाम बन आपस में भोग-विलास करने लग गये। जिससे सुलसा के गर्भ रह गया जब पुत्र का जन्म हुआ तो लोकापवाद के कारण नवजात पुत्र को एक पीपल के वृक्ष का कोटर में छोड़कर वे दोनों वहाँ से रफ्फूचक्कर होगये । सुभद्रा को मालूम हुआ तो उसने पीपल के माड़ के पास जाकर देखा तो नवजात बच्चा के मुंह में स्वयं पीपल का फल पड़ा जिसको चाब रहा था सुभद्रा अपनी बहिन सुलसा का बच्चा जानकर अपने आश्रम में लेगई उसका पालन पोषण किया और बड़ा होने पर उसको वेद वेदांग पढ़ा कर धूरंधर बना दिया और वाद विवाद में कई पण्डितों को परास्त कर बहुत विख्यात होगया । एक समय याज्ञवल्क्य और सुलसा पुनः काशी में आये और पीपलाद से बाद किया जिसमें वे दोनों हार गये एवं पीपलाद की विजय हुई जब सुभद्रा द्वारा पीपलाद को ज्ञान हुआ कि सुलसा याज्ञवल्क्य मेरे माता पिता हैं और जन्म के साथ ही निर्दयता से मुझे पीपल के झाड की कोटर में डालकर पलायन होगये थे अतः पीपलाद ने कुपित हो अपना बदला लेने के लिए मातृमेघ पितृमेघ नामके यज्ञ करने की स्थापना की और मातृमेघ में सुलसा तथा पितृमेघमें याज्ञवल्क्य को होम दिया अर्थात् पीपलादने अपने माता पिता का बलिदान कर अपना बदला लिया और उपनिषधादि प्रन्थों में इसका विधिविधान भी रचहाला कि भविष्य में यह प्रथा अमर बन जाय इत्यादि इन मांस प्रचारकों की लीला कहां तक लिखी जाय ।
१२-वसंतपुर नगर में एक नाबालक लड़का था वह किसी सथवाड़ा के साथ देशान्तर जाता हुआ रास्ते में एक तापस के आश्रम में ठेर गया । वह बड़ा भारी तप करा वास्ते लोकोने यमदग्नि नाम रखा दीया उस समय एक विश्वानर नामका जैनदेव दूसरा धनंतरी तापसभक्त देव इन दोनों के आपस में धर्म संबंधि विवाद हुआ अपना २ धर्म को अच्छा बताते हुए परीक्षा करने को मृत्यु लोक में आये उस समय मिथिला
नगरी का पद्मरथ राजा भाव यति बन चम्पा नगरी में विराजमान जैन मुनि के पास दीक्षा लेने को जा Jain Educ रहा था दोनों देवों ने उसे अनुकुल प्रतिकुल बहुत उपसर्ग किया पर वह तनक भी नहीं चला बात दोलो.org