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[ ५५ ] का बलिदान करना तब मैंने कहा पर्वत तू ऐसा अनर्थ क्यों करता है गुरूजी ने तो अजा शब्द का अर्थ तीन
की शाल अर्थात बोया हुआ न ऊगे वैसा धान किया था पर्वत ने हट पकड़ लिया नारद ने कहा कि सुराज अपने साथ पढ़े हैं उनसे निर्णय करलें पर इस शर्त पर कि जो झूठा हो वह अपनी जुवान निकाल कर के दे दे । पर्वत ने इसको स्वीकार कर लिाय बाद पर्वत अपनी माता के पास आया और सब हाल माता को कहा इस पर माता ने कहा बेटा तेरा बाप अजा शब्द का अर्थ पुराणा धान ही करता था पर्वत ने कहा मैंने तो शर्त करली है इस पर माता रात्रि में चल कर राजा बसुके पास आई। राजाने गुरुजी की पत्नी समझ सत्कार कर गत्रिमें आने का कारण पुच्छा इस पर मावाने सब हाल कहकर पुत्र रूपी भिक्षा की याचना की - लोगों में यह बात प्रचलित थी कि राजा वसु सत्यवादी है और सत्य से ही इसका सिंहासन पृथ्वी से अधर रहता है इस हालत में राजा असत्य कैसे बोल सकता । राजा ने कहा माता मैं ही क्यों पर श्राप भी जानती हो कि गुरुजी ने अजा शब्द का अर्थ पुराणी शाल ही किया था अतः में मिथ्या अर्थ करना नहीं चाहता हूँ । माता ने कहा गजन् । मैं जानती हूँ और मैंने पर्वत से कहा भी था कि तेरा पिता अजा शब्द का अर्थ पुराणा धान जो बोने पर न ऊगे किया करते थे । पर पर्वत मेरे एक ही पुत्र है अत: कुछ भी हो पर मेरे पुत्र को जीवन दाना देने की मेरी प्रार्थना स्वीकार करावें । मेरी जिन्दगी में यह पहली ही प्रार्थना है यदि आप अपने गुरुजी का थोड़ा भी उपकार समझते हैं, तब तो मेरा यह कार्य आपको करना ही होगा ? राजा वसुने गुराणी की लिहाज में श्राकर कह दिया कि आप निश्चित हो घर पर पधारे मैं किसी प्रकार से आपके पुत्र को वचादूगा।
दूसरे दिन राज सभा के समय में (नारद ) और पर्वत राजसभा में आये और सब हाल कहा इस समय एक व्यक्ति राजासे कहने लगा कि राजन् ! आप सत्य, सत्य ही कहना क्योंकि सत्यसे पृथ्वी स्थिर है श्राकाश स्थिर है इत्यादि । पर राजा ने इस पर कुछ भी विचार नहीं किया और ग्राम सभा में कह दिया कि हाँ गुरुजी अजा शब्द का अर्थ कभी पुराणी शाल और कभी छगा-बकरा भी किया करते थे ( कहीं पर केवल बकरा ही कहा लिखा है ) वस । इस मिश्र एवं झूट बोलने के कारण देवता वसुराजा को पथ्वी पर पिछाट करके सिंहासन के साथ भूमिमें घुसा दिया जिससे वसु राजा मरकर सातवीं नरकमें जाकर घोर दुःखों का अनुभव करने लगा इससे पर्वत की बहुत निंदाहुई इतना ही क्यों पर नगरीके लोगोंने पर्वत को मारपीट कर नगरी से निकाल दिया पर भवितव्यता बलवान होती है पर्वतने जंगल में जाकर एक महाकाल देव की आराधना की । देवने अधर्म पर्वत को सहायता देकर पशुवध यज्ञ का प्रचार करवाया । देवता विक्रय से यज्ञ में बलिदान होने वाले करों को स्वर्गमें जाते हुए दिखाये तथा पुनः जीवित करके दिखाये इससे मांस लोलुपी लोगोंने यज्ञ का काफी प्रचार कर दिया पर्वत ने भी लोगों को कहा कि यज्ञ से देव संतुष्ट होते हैं लोगो में सुख शान्ति रहती है और बलिदान में पशु होंमे जाते हैं वे स्वर्ग में जाते हैं इत्यादि नारदजी ने रावण को पर्वत की कथा सुनाई ।
र सम्राट् रावणने हिंसामय यज्ञ करने का निषेध किया जहाँ यज्ञ होता देखा तो अपनी सत्ता से ध्वंस भी
पर कलिकाल की कुटलगति से यज्ञ कर्म सर्वथा बन्ध न हो सका। । बसुराजके क्रमशः आठ पुश्त राजा होते गये और मरते गये तब नवमें सुवसु वहाँ से भाग कर नागचला गया और दशवां वृहद्ध्वज नाम का पुत्र भाग कर मथुरा चलागया उसकी संतान से एक यादुनाम
पना हुआ वह महान् प्रतापी हुआ जिससे हरिवंश के स्थान यादुवंश नाम प्रसिद्ध हो गया-जिस यादु. Jain Educapr.वंश वृक्ष
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