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________________ वि० सं० २६०-२८२ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास स्वात्मा के साथ अनेकों का कल्याण करने में भाग्यशाली बन जायगा। अर्थात् अपने नाम को सार्थक बना देगा अर्थात् कल्याण तु एक कल्याण की ही मूर्ति बन जायगा । इनके अलावा सूरिजी ने और भी कहा कि कल्याण अनुकूल सामग्री में कुछ कर लेना अच्छा है और उसका ही जीवन सफल समझा जाता है । शास्त्रकारों ने तो स्पष्ट शब्दों में फरमाया है किः-- "जाजा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई, अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जंति राईओ।" "जाजा वच्चइ रयणी न सा पडि नियत्तई, धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ" अधर्म में जो समय जाता है वह व्यर्थ जाता है तब धर्म कार्य में समय जाता है उसका समय सफल जाता है । कल्याण ! काल का विश्वास नहीं है बड़े-बड़े अवतारी पुरुष भी चले गये हैं तो साधारण जन की तो गिनती ही क्या है ? "तीर्थङ्करा गणधारिणः सुरपत्तयश्चक्रि केशवा रामाः । संहक्त हत विधिना शेषेषु नरेषु का गणना?" __इत्यादि हितकारी उपदेश दिया । कल्याण था लघुकर्मी कि सूरिजी के वचन सिद्ध पुरुष की औषधी की तरह रुच गये और उसने कहा पूज्यवर ! आपका कहना सोलह आना सत्य है । हजारों कोशिश करने पर भी इस प्रकार की अनुकूल सामग्री मिलनी दुष्कर है। अतः मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं जल्दी से जल्दी आपकी सेवा में दीक्षा लूंगा । बस, सूरिजी को वन्दन कर कल्याण अपने घर पर आया । पर आज तो कल्याण का रंग ढंग कुछ दूसरा ही था। उसके चेहरे पर उदासीनता एवं वैराग्य का रंग झलक रहा था। माता पन्ना ने पूछा बेटा ! आज तू उदास क्यों है ? क्या तेरे पिता ने तुझे कुछ कहा है । कल्याण ने कहा नहीं माता पिताजी ने कुछ भी नहीं कहा है। "माता--फिर तू उदास क्यों है ? "बेटा-माता मैंने संसार में जन्म लेकर इतने दिन यों ही गफलत में खो दिये जिसकी मुझे उदासीनता है। "माता एक दम चौंक उठी और कहा बेटा ! तू क्या कार्य करना चाहता है । आज अपने घर में सब साधन है तू चाहे सो कार्य कर सकता है। "बेटा-माता मैं सूरिजी महाराज के पास दीक्षा लेना चाहता हूँ। माता-बेटा ये तुझे किसने सिखाया है, तू जानता है कि तेरी सगाई कब से ही करदी है अब २-४ मास में तेरा विवाह करना है । देख अपने घर में विवाह की सब तैयारियें हो रही हैं। बेटा-माता मैं ऐसा अचिरकाल का विवाह करना नहीं चाहता हूँ कि जिसके लिये भवान्तर में दुःख सहन करना पड़े । मैं तो ऐसा विवाह करूंगा कि जिसके जरिये सदैव के लिये सुखी बन जाऊं। __ माता तो बेटा के शब्द सुनकर महान दुखी बन गई और उसी समय शाह डाबर को बुला कर कहा कि आपका बेटा क्या कहता है जिसको सुन लीजिये ? डाबर ने पूछा कि बेटा तेरी मां क्या कहती है । कल्याण ने कहा आप ही पूछ लीजिये । पन्ना रोती हुई कहने लगी कि बेटा कहता है कि मैं दीक्षा लूंगा इस बात को मैं कैसे बरदास्त कर सकती हूँ ? आप अपने बेटे को समझा दीजिये वरना मेरी मृत्यु नजदीक ही है । "शाह डावर ने कहा कल्याण क्या बात है तेरी मां क्या कहती है ? वैिरागी कल्याण और मातापिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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