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आचार्य ककसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ६३५-६६०
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राणा
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११-स्तम्भनपुर के बलाहागौ० शाह देपाल के बनाया महावीर० प्र० १२-बटपुर के कर्णाटगो० , मांझण के , १३-शंखपुर के तप्तभटगो० ॥ दाप्पा
" " १४-भासिल के प्राग्वट
महादेव १५-कानपुर के श्रीमाल
जैता १६--करोट के श्रीमाल
नन्दा १७.-पालिकपुर के कनौजिया ,
नागा १८-कीराटकुप के डिडूगौ. १९-नागपुर के लघुश्रेष्ठिगो० ॥ राजसी २०-उज्जैन के मोरक्षगी० , आखा
पार्श्वनाथ , २१-- मण्डव के कुलभद्रगौ० , वीरदेव के ऋषभदेव , २२-महन्दपुर के बिरहटगौ , मोथा
अजीतनाथ, २३--बेनातट के पुष्करणा जाति ,, खेता के महावीर , इनके अलावा कई छोटे बड़े मन्दिर और घर देशान्तर की प्रतिष्ठा हुई।
वंशावली में एक चमत्कारी घटना लिखि हैं वीरपुर [सिन्ध में एक सोमरूद्र वामयर्णियों का नेत आया था वह था मंत्र बली जनता को चमत्कार वतलाने को शाम के समय जैन मन्दिर से एक मूर्ति को मंत्र बल से तालाब पर लेजा कर वापिस मन्दिर में ले आया और लोगों को कहने लगा कि जैन लोग अपने देव की मूर्ति को पानी नहीं पीलाते है अतः मूर्ति स्वयं तालाब पर पानी पीने को जाया करती हैं इस प्रकार आठ दिन गुज़र गये। इससे जैनों को बड़ा ही दुःख हुआ वे लोग किसी विद्याबली साधु को लाना चाहते थे इधर उधर मनुष्यों को भेजे भी थे पर उनकी आशा सफल नहीं हुई। एक दिन सुना कि डमरेल नगर में पण्डित आनन्द मुनि विराजते हैं और वे अच्छे विद्याबली भी है संघ अग्रेश्वर डामरेल जाकर सब हाल कहा और वीरपुर पधारने की प्रार्थना की अतः पं० आनन्दमुनि विहार कर वीरपुर पधारे श्रीसंघ ने बड़े ही समारोह से आपका स्वागत किया। सोमन्द्र ने हमेशा की तरह मूर्ति को मन्दिर से निकाल कर तालाब पर लेजा रहा था पर मूर्ति बजार के बीच भाइ तो रुक गई आगे चल नहीं सकी। इधर पं० आनन्द मुनि ने नगर के अन्दर जितने शिवलिंगादि देवी देवता थे उन सब को मंत्र बल से बजार में ले आया कि जहां जैन मूर्ति रुकी हुई थी। बजार में एक ओर सोमरुद्र खड़ा था दूसरी और पं. आनन्दमुनि । इस चमत्कार को देखने के लिये जैन जैनेत्तर हजारों लोग एकत्र होगये। पं० आनन्दमुनि ने कहा महात्माजी यदि आप इन सब मूर्तियों को तलाब की ओर ले जावें तो मैं आपका शिष्य बन जाउ और मैं मन्दिर की ओर ले जाउ तो आप मेरा शिष्य बन जावे । जनता के समक्ष सोमरूद्र ने स्वीकार कर लिया पर पंडितजी के सामने उनका मंत्र कुच्छ काम नहीं कर सका तब पं० आनन्द ने हुक्य दिया कि अहो देवी देवताओं तुम इस जैनमूति को जैन मन्दिर में पहुँचा दो। बस आगे जैन मूर्ति और पिच्छे सब देबी देवता चल कर जैन मन्दिर में आये। बससोमरूद्र पण्डितजी का शिष्य बनगया-इस चमत्कार से जैन धर्म का बहुत प्रभावना हुई वंशावली कार लिखते है कि वे सब देवी देवता आज तक भी जैन मन्दिर में मौजूद है। पट्ट तेवीसवें ककसूरिजी, आदित्य नाग कुल भूषण थे ।
जिनकी तुलना करके देखो, चन्द्र में भी दूषण थे। पट दर्शन के थे वे ज्ञाता, बादी लज्जित हो जाते थे।
अजैनों को जैन बनाकर, नाम कमाल कमाते थे। ॥ इति श्री भगवान् पार्श्वनाथ के २३ वें पट्ट पर श्राचार्य ककसूरि महान् प्रभाविक आचार्य हुये ।।
एक चमत्कारी घटना]
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