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________________ वि० सं० २३५-२६० वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास में दी याचकों को खूब दान दिया। संघपति सुरजन अपार सम्पति का धनी था श्रापकी कइ नगरों में दुकानों थी पश्चात्य प्रदेशों के साथ जहाजों द्वारा व्यापार चलता था चीन जावा वगैरह में आपकी कोटिये भी थी इतना होने पर भी धर्म करने में दृढ़ चित और खूब रुची वाला था साधी भाइयों की और आपका अधिक लक्ष था व्यापार में भी साधर्मी भाइयों को विशेष स्थान दिया करता था ऐसे नर रत्नों से ही जैन धर्म की उन्नति एवं प्रभावना होती थी। ३-नागपुर का आदित्यनाग गौत्रीय शाह लाखण ने श्रीशत्रुञ्जय तीर्थ का संघ निकाला जिसमें आपने बारह लक्ष द्रव्य व्यय किया साधर्मी भाइयों को पेहरामणि दी और पांच बड़े यज्ञ किये । ४.-- कोरंटपुर का श्रेष्टि गौत्रीय मंत्री अर्जुन ने उपकेशपुर स्थित भगवान महावीर की यात्रार्थ संघ निकाला जिसमें मंत्रीश्वर ने तीन लक्ष द्रव्य व्यय किया । साधर्मियों को लेन दी। ५-आलोट नगर से रावनारायण ने श्री शत्रुञ्जय का संघ निकाला जिसमें पन्द्रहसौ मुनि साध्वियों और कइ पचास हजार गृहस्थ थे इस संघ में १९ हस्ती भी थे रावजी ने अपनी वृद्धावस्था में जबर्दस्त पुन्योपार्जन कर श्री श@जय की शीतल छाया में दीक्षा ग्रहण कर केवल तेरह दिनों में पुनीत तीर्थ भूमि पर देह त्याग कर स्वर्ग चले गये। ६-उपकेशपुर से भाद्र गौत्रीय शाह गोपाल ने श्री सम्मेतशिखरजी का संघ निकाला इस संघ में एक लक्ष से भी अधिक नर नारी थे संघ लोटते समय ऋतु प्रष्म आगई थी रास्ते में पानी का स्थान नहीं आने से संघ बहुत व्याकुल होगया अतः वाचनाचार्य गुणविलास के पास आकर अर्ज की अतः वाचनाचार्य ने स्वरोदय वली थे ध्यान लगा कर ऐसा संकेत किया कि पुष्कल जल मिल गया जिससे संघ ने अपने प्राण वचा लिया और सकुशाल उपकेशपुर पहुँच गये शाह गोपाल ने सांत यज्ञ किये और स्वाधर्मी भाइयों ने पेहरामणी दी तथा यचकों को इच्छित दान देकर अपनी कीर्ति को अमर बनादी। इत्यादि और भी कई छोटे बड़े संघ निकले जिन्हों का पट्टावलियों में विस्तार से वर्णन है । सूरिजी के शासन में मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठाएं भी बहुत हुई १-श्रासलपुर के प्राग्वट - शाह बागा के बनाया महावीर० प्र० २-उखलान के प्राग्वट , भीमा के, ३-इंदावटी के भरिंगी० , हंसा के ,, ४-आघाट के चिंचटगौ० ,, करमण के , , करमण पाश्वनाथ , ५-बिराट के मलगौत्रीय , धीरा ६-ममाणिया के चरडगौत्रीय , कानड के ,, ज्ञान्तिनाथ ७-धौलपुर के आदित्यनागगौ० ,, रूपणसी के ,, नेमिनाथ ८-पलवृद्धि के बापनागगौ० ,, लाखणसी के ,, मुनिसुव्रत , ९-नागपुर के श्रेष्ठगोत्रीय , पुनड़ा के ,, महावीर , १०-हर्षपुर के सुचंतिगोत्रीय , पौमा के, ६६४ [सरिजी के शासन में प्रतिष्ठाएं 市市市市弟弟 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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