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________________ वि० सं० २३५-२६० वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास उद्धार किया था। उनकी संतान परम्परा में श्राप हैं । अतः आप शीघ्र ही सावधान हो जाइये । श्राप समझदार के लिये इतना ही कहना पर्याप्त है । बस, आत्मा निमित्त वासी होता है । उपादान कारण मंत्रीजी का सुधरा हुआ था निमित्त मिल गया सूरिजी का मंत्री ने कहा अच्छा गुरु महाराज मैं इसका विचार अवश्य करूंगा। जब मंत्री संस्तारा पौरषी पढ़ रहा था तो उसमें निम्न गाथा आई कि: ' एगोsहं नत्थि में कोइ नाहमन्नस्स कस्सई । एवं अदीणमणसो आप्पाण मणु सासई || एगो मे सासओ आप्पा नाथ दंसण संजु । सेसा में बाहरा भावा सव्य संजोग लक्खणा ॥ संजोग मूला जीवाणं पत्ता दुक्ख परंपरा । तम्हा संजोग संबंधं सव्वंतिविहेण बोसिरिअं ||" इन गाथानों पर मंत्री ने खूब विचार किया कि मैं अकेला हूँ । *सार में मेरा कोई नहीं है । संसार दुःख का घर है और इस संसार के कारण ही जीव दुख परम्परा का संचय कर दुःखी बनता है । मेरा तो केबल ज्ञानदर्शन ही है इत्यादि भावना के साथ शयन किया तो अर्द्ध निद्रा के अन्दर मंत्री क्या देखता है कि आप सूरिजी के कर कमलों से दीक्षित ही नहीं पर सूरिपद प्रतिष्ठत हुआ है जब मनुष्य का कल्याण का समय आता है तब सर्व निमित्त कारण अच्छे मिल जाते हैं । मंत्री नागसैन ने सुबह पारणा भी नहीं किया और सबसे पहले राजा के पास जाकर अपना इस्तीफा दे दिया। राजा ने कहा नागसैन ऐसा क्यों ? मंत्री ने कहा हजूर मुझे बड़ा भारी भय लगता है । दरबार कहा मेरे राज्य में तुझे क्या भय है ? मंत्री ने कहा हुजूरभय मोह रूपी पिशाच का है । राजा ने कहा क्या तू संसार से डरता है ? हाँ हुजूर । राजा ने कई तो फिर क्या करेगा ? मंत्री - मुरुदेव के चरणों की सेवा करूंगा । राजा - यह तो संसार में रहकर भी कर सकता है ? मंत्री - संसार में रहकर पूर्ण सेवा नहीं हो सकती है ? राजा -- - तो क्या तू सदैव के लिए गुरु की सेवा में रहना चाहता है ? मंत्री -- हाँ, हुजूर मेरी इच्छा तो ऐसी ही है। 1 राजा-मंत्री ! इसके लिए इतनी जल्दी क्या है, ठहर जाओ । वृद्धावस्था आने दो ? मंत्री - हजूर ! काल का क्या भरोसा है कि वह कब उठा कर ले जाय । राजा तो एक दम मंत्र मुग्ध बन गया कि श्राज मंत्री क्या बात कह रहा है ? एक ही रात्रि में इसको क्या भ्रम हो गया है । अतः राजा ने कहा मंत्री ! तुमने अपने कुटुम्बियों को तो पूँछ लिया है न ? मंत्री - इसमें कुटुम्ब को पूछने की क्या जरूरत और कुटुम्ब तो स्वार्थ का है वह कब कहेगा कि आप हमको छोड़ कर सदैव के लिये अलग हो जाय । राजा-मंत्री ! यह यकायक तुम को कैसे रंग लग गया ? मंत्री - गुरु महाराज की कृपा 1 राजा और मंत्री की बातें हो रही थीं उसी समय मंत्री का पुत्र बुलाने को श्राया और कहने लगा कि पारणा की तैयारी हो गई है, पधारिये । आप पारणा करावें माता वगैरह सब राय देख रहे हैं ६५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only [ राजा और मंत्री नागसेन www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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