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आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५९९-६१८
___ इस लेख में जिस गौत्र का नाम आइच्चणाग लिखा है यह प्राकृत रूप है और इसी आइच्चणाग का रूपान्तर संस्कृत आदित्यनाग नाम लिखा है । इसके लिये निम्न शिला लेख
"सं० १५१४ वर्षे मार्ग शीर्ष सुद १० शुक्र उपकेश ज्ञाती आदित्यनाग गौत्र सा• गुणधर पुत्र सा डालण भा० कपुरी पुत्र सा० क्षेमपाल भ० जिणदेवाइ पु० मा सोहिलेन भ्रात पासदत देवदत्त भार्य नानू युगतेन पित्रोः पुण्यार्थ श्री चन्द्रप्रभ चतुर्विशति पट्टकारितः प्रतिष्ठितः श्री उपकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने श्री कक्कसूरिभिः श्रीभट्ठ नगरे
बाबू पूर्ण चन्दजी सं . शि० प्र० पृष्ट १३ लेखांक ५० उपरोक्त आइच्चणाग और आदित्यनाग गौत्र लिखा है ये दोनों एक ही हैं इन गौत्रों की एक शाखा चोरडिया-चोरवेडिया है और निम्नलिखित शिलालेखों में भी ऐसा ही लिखा है देखिये शिलालेख -
"सं० १५६२ ब. वै० सु० १० र वौ उकेश ज्ञाती श्री आदित्यनाग गौत्र चोरवेडिया शाखायां व० डालण पुत्र रत्नपालेन सं० श्रीवत व. धधुमल्ल युक्त न मातृ पितृ श्रेय श्रीसंभवनाथ विवं का० प्र० उपकेश गच्छे कुकुदार्चाये० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः
___बा० पू० सं० शि० प्र० पृष्ठ ११७ लेखांक ४६६ आगे आदित्यनाग गौत्र और चोरडिया शाखा किस गच्छ के उपासक हैं वह भी देखिये
“सं० १५१९ वर्षे ज्येष्ट वद ११ शुक्रे उपकेश ज्ञातीय चोरवेडिया गौत्रे उएशगच्छे सा० सोमा भा. धनाइ० पु० साधु सोहागदे सुत ईसा सहितेन स्व श्रेयले श्री सुमतिनाथ विंबंकारिता प्रतिष्टितं श्री कक्कसूरिभिः सीणिरा वास्तव्यं
लेखांक ५५७ इस लेख में चोरडिया जाति उएस-उपकेश गच्छ की बतलाई है ___ उपरोक्त चार शिलालेख स्पष्ट बतला रहे हैं कि चोरडिया जाति का मूलगौत्र आदित्यनाग है और आदित्यनाग गौत्र की उत्पत्ति नागवंशीय क्षत्रीवीर श्रादित्यनाग के नाम से हुई है आदित्यनाग को श्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपदेश देकर जैन बनाया था तत्पश्चात् आदित्यनाग ने श्रीशत्रु जयतीर्थ की यात्रार्थ विराट संघ निकाला तथा और भी अनेक धर्म कार्य करने से आदित्यनाग की संतान आदित्यनाग के नाम से कहलाने लगी आगे चल कर उन लोगों का आदित्यनाग गौत्र बन गया और इस गौत्र की इतनी उन्नति एवं आबादी हुई कि चोरडिया गुलेच्छा पारख गादियादि ८४ जातियें बन गई जिसका वर्णन आप आगे चल कर इसी ग्रन्थ में पढ़ सकोगे
आदित्यनाग गोत्र श्राचार्य रत्नप्रभसूरि स्थापित महाजन संघ के १८ गोत्रों में से एक है। प्राकृत के लेखकों ने आदित्यनाग को, अइच्चणाग' भी लिखा है जो ऊपर के शिलालेखों में दोनों शब्दों का प्रयोग किया गया है । आदित्यनाग गोत्रिय अामदेव निवदेव के लघु भ्राता भैंशाशाह हुआ जिसने वि० सं० २०९ में श्रीशत्रुजय का विराट् संघ निकाल के यात्रा की थी ! हाँ, इस अदित्यनाग गोत्र की चोरडिया शाखा में भैंसा नाम के चार पुरुष हुये हैं और चारों ही धर्मज्ञ एवं दानेश्वरी हुये हैं पर कितनेक वंशावलिकारों ने एवंलेखकों ने तीसरे भैंशाशाह के साथ घटी घटना को पहिले भैंसाशाह के साथ जोड़ देने की भूल की है और
चोरडिया जाति की उत्पति ]
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