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वि० सं० १९९-२१८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
११ -- कुणहरी के डिडु गौ , देसल ने , मन्दिर० प्र० १२ · धौरापुर केलघुष्ठि गौ०, सारंग ने , १३-सेसलाना के कुमटगौ० , लूडा ने पार्श्वनाथ १४-भट्टपुर के चरड़ गौत्रीय ,, लल्ल ने , १५-लोहापुर के मल गौत्रीय ,, टोडा ने , १६-उज्जैन के विरहट गौ. , भोला ने मुनिसुव्रत १७-मंडपाचल के भाद्र गौ० ,, नानग ने नेमिनाथ १८- खलखेड़ा के नाग गौ० , कुलधर ने चंद्रप्रभ १९-सेदहरा के बप्पनागगौ० ,, अर्जुन ने महावीर २०-बरासणी के कनोजियागी०,, खीवशी ने , २१ --- पद्मावती के विरहटगो. ,, पोमा ने , २२-अकलाणी के भूरिगौ. ,, सुजा ने , २३-मालपुर के बलाह गौ० ,, हरदेव ने , २४-भवानीपुर के श्रीश्रीमालगौ०,, कल्हण न , २५-- कालुर के ,,,,, डुगाने पार्श्वनाथ ,, २६--रावपुरा के अदित्यनाग ,, मालाने चन्द्रवाल २७--हस्तीपुर के प्राग्वट , फरसाने मल्लिनाथ २८--प्राशुपुर के प्राग्वट , कानड़ने महावीर २९---जावलीपुर के श्री माल , हरलाने पार्श्वनाथ ३०-उपकेशपुर के श्रष्टगोत्रियाराव जगदेवने चन्द्रप्रभ ३१--क्षत्रीपुर के तप्तभदृगौत्री शाह नोढाने पार्श्वनाथ ३२--विजयपहन के बाप्प नाग मंत्री सज्जन ने मह वीर
इनके अलावा भी कई मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई थी वह जमाना मूर्ति बाद का ही था दुसरा लोगों के पास द्रव्य बहुत था तीसरा शायद् आचार्यों ने भी यही सोचा होगा कि अब जमाना ऐसा आवेगा कि
आत्म भावना की अपेक्षा मन्दिर मूर्तियों के आलम्बन से धर्म करने वाले विशेष लोग होंगे अतः उन्होंने इस ओर अधिक लक्ष दिया हो ? कुच्छ भी हो पर यह बात तो निर्विवाद सिद्ध है कि जैन मन्दिरों से जैन धर्म जीवित रह सका है जबसे म्लेच्छ लोगों ने मन्दिरों को तोड़ फोड़ नष्ट करने का दुःसाहस किया तब से ही कई प्रान्तों जैनधर्म से निर्वास्ति होगई
जिस प्रकार जैन गृहस्थ मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाते थे इसी प्रकार जैन तीर्थों की यात्रार्थ बड़े बड़े संघ निकाल कर तीर्थों की यात्रा भी किया करते थे और धनाढ्य लोग यात्रा निमित लाखों करोड़ों द्रव्य व्यय कर अपने जीवन की सफलता सममते थे और वे संघ एक प्रान्त से नहीं पर प्र येक प्रान्तों से निकलते थे श्री शत्रुजय का संघ निकालते तब गिरनारादि तीर्थों की यात्रा कर लेते और श्री सम्मेतशिखर का
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