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________________ वि० सं० १९९-२१८ वर्ष ] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास नजदीक पधारे तो श्रीसंघ ने बड़े ही समारोह से नगर प्रवेश का महोत्सव किया। और बड़े ही धाम धूम से नगर प्रवेश करवाया। सूरिजी का व्याख्यान हमेशा होता था । राणा ने संघ निकालने की बात कही पर ऋतु गरमी की श्रागई थी । श्रीसंघ और विशेष राणा की विनती से सूरिजी ने चतुर्मास हंसावली में करने का निश्चय कर लिया । बस फिर तो था ही क्या राणा के मनोरथ सफल होगये राणा सूरिजी की सेवा भक्ति करता हुआ ज्ञानाभ्यास करने में इस प्रकार तत्पर होगया कि मानों सूरिजी का एक लघु शिष्य ही हो । बालकुमार राण को तो निकालना था संघ इसलिये ही तो विनती कर सूरिजी को लाया था। राणाने अपने माता पिता को कहा कि गुरुदयाल पधार गये हैं अब निकालो संघ ? शाह जसा ने कहा बेटा संघ चतुर्मास में नहीं निकलता है चतुर्मास समाप्त होने के बाद निकाला जायगा। शाह जसा ने सूरिजी एवं श्रीसंघ की आज्ञा लेकर पहले से ही संघ की तैयारियां कराना शुरु कर दिया। क्योंकि जसा ने जैसे श्रीभगवतीजी सूत्र तथा मंदिर प्रतिष्ठा का धाम धूम से महोत्सव किया था वैसे ही संघ के लिये करना था। और संघपति बनाना था राणा को फिर इस संघ में कमी ही किस बात की रह सके । खूब दूर दूर के प्रदेश में आमंत्रण पत्रिकायें भिजवादीं। शाह जसा कोई साधारण व्यक्ति नहीं था जसा की और से सोने के थाल की पहरावणी सर्वत्र प्रसिद्ध थी अतः खूब गहरी तादाद में साधर्मी भाई एकत्र हुये इधर साधु साध्वियों की संख्या बहुत थी जिसमें कई पद प्रतिष्ठित-पदवीधर भी थे। सूरिजी के दिये हुये शुभ मुहूर्त में बालकुमार राणा को संघपति पद से विभूषित किया। राणा के दो वृद्ध भ्राता और चार लघु बान्धव भी थे अतः सात पुत्र का पिता शाह जसा और माता पातोली संघ की सेवा में अपने जीवन की सफलता समझ रहे थे। सूरिजी महाराज की अध्यक्षता में संघ प्रस्थान कर क्रमशः चलता हुआ उपकेशपुर आया भगवान महावीर की यात्रा ध्वजमहोत्सव और देवी सच्चायिका के दर्शन किये । वहाँ से श्रीसिद्धगिरी के लिये रवाना हुये रास्ते में जहाँ जहाँ मंदिर आये वहाँ वहाँ दर्शन कर आवश्यकतानुसार द्रव्य दिया इतना ही क्यों पर गरीबों का उद्धार याचकों को दान जीवदयादि अनेक पुन्य कार्य करते हुये पहला गिरनारादि सब तीर्थों की यात्रा करते हुये जब संघ तीर्थाधिगज श्री शत्रुजय पहुँचा तो तीर्थराज के दर्शन करते ही आनंद की लहर में कई भवों के किये हुये पातक नष्ट हो गये । उस पुनीत तीर्थ के प्रभाव को तो वहां जाने वाले भुक्त भोगी ही जान सकते हैं । वहां के परमाणु इतने स्वच्छ होते हैं कि भावुकों के अन्तःकरण को साफ निर्मल बना देते हैं । संघपति राणा था तो बालक पर उनके पूर्व जन्म के ऐसे संस्कार थे कि वह तीर्थयात्रा कर बड़े ही आनन्द को प्राप्त हो गया । शाह जसा ने अष्टान्हिकमहोत्सव, ध्वजारोपण महोत्सव और स्वामीवात्सल्यादि सब कार्य बड़े ही उत्साह से किया और इन शुभकार्यों में खुल्ले दिल से द्रव्य व्यय किया जिसको अपना अहोभाग्य समझा । जब संघ ने वापिस लोटने का विचार किया तो सूरिजी ने कहा कि मैं अब यहां रह कर अन्तिम आराधना करूंगा और मेरे बहुत से साधु आपके साथ संघ में चलेंगे। इससे संघ के लोगों ने निराश होकर अर्ज की कि प्रभो ! आप जैसे संघ लाये हैं वैसे पहुँचा दें। सूरिजी ने कहा कि इसमें मुझे कोई एतराज नहीं है पर जब मेरी वृद्धावस्था है और यह शरीर यहीं छूटे तो अच्छा है इत्यादि समझाने से श्रीसंघ तो समझ गया पर संघपति राणा ने कह दिया कि सूरिजी चलें तो ही मैं चलंगा वरना मैं सूरिजी के पास ही रहूँगा । सूरिजी ने मजाक में कहा राणा तेरी तीर्थयात्रा तो हो गई है For Private & Pers. आचार्य ककसरि का चतर्मास और राणा .. ६२० Jain Edition International
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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