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आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन
[ओसवाल संवत् ५९९-६१८
पास बैठे हुए राणा ने भी सब बातें सुनी और उसने कहा माता ! दो कार्य आपने किये तो एक कार्य तो मुझे करने दीजिये माता ने कहा बेटा तू बड़ा ही पुण्यशाली है जब तू गर्भ में आया था उस दिन से ही हन लोग इस प्रकार का अनुभव करने लगे हैं और तेरे पिता और मैंने जो कार्य कर पाये हैं वह तेरी पुण्यवानी का ही कारण है और संघ निकालने का कार्य शेष रहा है वह शायद तेरे लिये ही रहा होगा वरना इतने दिनों का बिलम्ब होने का कारण ही क्या था । कारण तेरे पिता के पास सब साधन था पर कुदरत ने यह कायं खास तौर पर तेरे लिये ही रखा है। अतः बेटा ! तू संघपति बनकर अवश्य संघ निकाल मैं भी तेरे संघ में साथ चलकर तीर्थों की यात्रा करके अपना जन्म को सफल बनाऊंगी। ___माता की बात सुनकर राणा को हर्ष हुआ। इधर राणा के पिता जसा ने भी राणा को कहा बेटा ! एक संघ ही क्या पर तेरे से जितना धर्म कार्य बन सके तू खुल्ले दिल से कर लक्ष्मी चञ्चल है, इसका जिसना शुभकार्यों में उपयोग हो उतना ही अच्छ है राणा था तो एक बारह वर्ष का बच्चा पर पूर्व भव के संस्कारों के कारण उसकी प्रज्ञा एवं धर्म भावना अच्छे २ समझदारों से भी बढ़ चढ़ के थी । राणा ने अपनी माता से पूछा कि अपने गुरु महाराज का पधारेंगे ? माता ने कहा बेटा वे महात्मा अतिथि हैं । उनको आने का निश्चय नहीं है । यदि बेटा तू चाहे तो गुरुदेव को जल्दी भी लासकता है। राणा ने कहा माता मैं तो चाह. ता हूँ कि प्राचार्य श्री जल्दी से पधारें और मैं संघ तिकाल कर तीर्थों की यात्रा करूँ। अतः तू यह बतला कि वे गुरु महाराज कै जल्दी पधार सकें जिसका मैं प्रयत्न करूँ ? माताने कहा गुरु महाराज परोपकारी हैं जहाँ उकार के कार्य होता हो वहाँ जल्दी पधार जाते हैं अतः तूं जाकर गुरु महाराज की विनती कर कि वे जल्दी पधारें । बेटाने कहा कि तूं यह तो बतला कि गुरु महाराज विराजरो कहाँ हैं ? कि मैं वहाँ जाकर विनती करूं । माता ने कहा कि तेरे पिता से मैंने सुना है कि आचार्यश्री अभी मथुग में विराजते हैं : बेटा ने कहा ठीक है तब मैं मथुरा जाकर विनती करूंगा । माता ने कहा बेटा मथुरा यहाँ से नजदीक नहीं पर बहुत दूर है। बेटा ने कहा कि दूर हो तो क्या हुआ जरूरी काम होतो दूर भी जाना पड़ता है । देखिये व्यापारी लोग व्यापाराथ कितनी दूर जाते हैं । माता ने कहा तूं जाता है तो तुम्हारे पिता को भी साथ ले जा राणा ने कहा ठीक है आने दे पिताजी को इत्यादि मां बेटे बातें करते थे । इतने में शाह जसा घर पर आगया। तुरंत ही राणा ने कहा पिताजी मैं गुरु महाराज को लेने के लिए जाता हूँ आप भी मेरे साथ चले पिता ने कहा कि क्या तूं गुरु "हाराज का चेला बनेगा ? राणा ने कहा मुझे तो तीर्थयात्रा का संघ निकालना है क्यों कि श्रीभागवती सूत्र मां ने बँचाया आपने मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई तो अब तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकामना मेरा काम है इसलिए मैं गुरु महाराज को बुलाने के लिये जाता हूँ सेठ जी बहुत खुश हुये और कहा कि अच्छा बेटा मैं तेरे साथ चलूँगा । शाह जसा के कहने से और भी बहुतसे धर्म प्रेमी तैयार होगये क्योंकि खर्चा तो सव जसा का ही लगता था अतः वे सब चलकर मथुरा पहुंचे और सूरिजी को हंसावली पधारने की विनती की । जब राणा और सूरिजी के वार्तालाप हुआ तो सूरिजी को बड़ा ही आनन्द आया। राणा एक होनहार बालक था । सूरिजीने तो राणा के जन्म समय ही धरणा करली थी कि यह बालक भविष्य में शासन का प्रभारिक पुरुष होगा। वे ही चिन्ह आज नजर आरहे हैं। सूरिजी ने लाभालाभ का कारण जानकर बालकुंवर राणा की विनती स्वीकार करली । बस, आये हुये हंसावली के लोग खुश होकर वापिस लौट गये और सूरिजी मथुरा से विहार कर मरुधर की ओर आने लगे । जब सूरिजी हसावली के
बालकुमार राणा मथुरा आकर ]
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