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________________ आचार्य रत्नप्रभसूरि ( चतुर्थ ) का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५९९-६१८ नहीं चाहता हो। जसा तुम बड़े ही भाग्यशाली हो कि श्रीसंघ को इस प्रकार लाभ पहुँचाने की प्रेरणा की है । हम बहुत खुशी हैं और विनती के लिये साथ चलने को भी तैयार हैं और आशा है कि सूरिजी महाराज अपने पर अवश्य कृपा करेंगे इत्यादि जयध्वनि के साथ निश्चय कर लिया कि आज ही रवाना हो जाना चाहिये । श्रीसंघ के अन्दर से कई २५ श्रावक तैयार हो गये।। उस समय आचार्य ककसूरि नागपुर नगर में विराजमान थे। हंसावली के श्रावक चल कर शीघ्न ही नागपुर श्राये और श्रीसंघ की विनती सूरिजी के सामने रखी। सूरिजी ने लाभालाभ का कारण जान कर विननी स्वीकार करली । बस, हंसावली के श्रीसंघ के एवं शाह जसा और आपकी पत्नी पातोली के मनोरथ सिद्ध हो गये । आचार्य श्रीकक सूरिजी आपने शिष्य मंडल के साथ विहार करते हुए क्रमशः हंसावली पधार गये । श्रीसंघ ने सूरिजी महाराज का बड़ा ही शानदार स्वागत किया। । शाह जसादि श्रीसंघ ने सूरिजी से प्रार्थना की कि पूज्यवर ! यहां के श्रीसंघ की इच्छा है कि आपश्रीजी के मुखाविन्द से परम प्रभाविक पंचमाङ्ग श्रीभगवतीजी सूत्र सुनें । सूरिजी ने कहा बहुत खुशी की बात है । बस, फिर तो था ही क्या, शाह जसादी श्रीसूत्रजी के महोत्सव की तैयारी करने में लग ही गया और भाग्यशालिनी पातोली देवी का दोहला पूर्ण होने से उसके हर्ष का पार भी न रहा । शाह जसा बाजे गाजे एवं बड़ी ही धामधूम पूर्वक सूत्रजी को अपने मकान पर लाया और रात्रि जागरण पूजा प्रभा. वना की दूसरे दिन स्वामिवात्सल्य किया बाद बरघोड़ा चढ़ाया जिसमें केवल जैन ही नहीं पर जैनेतर एवं सम्पूर्ण नगर निवासी एवं राजा राजकर्मचारी लोग शामिल थे। श्रेष्टिवयं जसा एवं पातोली देवी ने इस महोत्सव एवं ज्ञानपूजा में सवा करोड़ द्रव्य व्यय किया जिसके पास पारस है वहां द्रव्य की क्या कमती है। जब श्रीसूत्रजी बचना प्रारम्भ हुआ तो प्रत्येक प्रश्न को सेठानी पातोली सुवर्ण मुद्रिका से पूजन करती थी एवं ३६००० प्रश्नों की छत्तीस हजार सुवर्ण मुद्रिका से पूजा की और उस द्रव्य से जैनागमों को लिखा कर भंडारों में रखवा दिये । धन्य है उन दानवीरों को कि जिनशासन के उत्थान के लिये अपनी लक्ष्मी व्यय करने में खूब ही उदारता रखते थे। यद्यपि शाह जसा के पास पारस होने से उसके धन की कमी नहीं थी परन्तु इसमें भी उदारता की आवश्यकता है कारण हम ऐसे मनुष्यों को भी देखते हैं कि जिन्हों के पास बहुत द्रव्य है पर उदारता न होने से उनका लाभ नहीं उठा सकते हैं। प्राचार्य कवकसूरिजी के चतुर्मास के अन्दर ही माता पातोली ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया। जिसका अनेक महोत्सव के साथ राणा नाम रक्खा । क्रमशः गणा चम्पकलता की भांति बड़ा हो रहा था आचार्य श्री ने गणा की हस्त रेखा या अन्य लक्षणों से कहा था कि श्राविका ! यह तेरा पुत्र जैनधर्म में महा प्रभाविक होगा । माता ने कहा पृज्यवर ! आपके वचनों को मैं बंधा कर लेती हूँ। इधर तो श्रीभगवती सूत्र बच रहा था उधर जसा के मंदिरजी का काम चल रहा था फिर भी जसा बहुत से कारीगरों को रख कर जहां तक बन सके मंदिर जल्दी से तैयार कराने की कोशिश में था। जहां द्रव्य की छूट हो वहां क्या नहीं हो सकता है। केवल दिन को ही नहीं परन्तु रात्रि में भी काम होता था और कारीगरों को मनमानी तनख्वाह दी जाती थी और साथ में इनाम देने की भी घोषणा करदी थी। बस, फिर तो देरी ही क्या थी थोड़े ही दिनों में मूल गंभारा शिखर और रंगमंडप तैयार हो गया। ___ शाह जसा ने सोचा कि आयुष्य का क्या विश्वास है। जब जैन मंदिर मूलगम्भारा और रंगमंडप महा प्रभाविक पंचमांग की याचना ] ६१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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