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________________ वि० सं० १७७-१९९ वर्ष [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास २५-सत्यपुर के प्राग्वट० भीमा ने " महावीर " " २६-श्रीनगर के श्रीमाल भोलाने " २५-उपकेशपुरके कनौजिया० दोलाने वंशावलियों में कई दुकालों में द्रव्य व्यय कर देश की सेवा करने वाले उदार पुरुषों के नामों का भी उल्लेख किया है वैसे ही विदेशियों के साथ युद्ध कर देश की रक्षा करने वाले वीरों के नामों का भी उल्लेख किया है । उस समय के उपकेशवंशी लोग सवके सब ब्यापार नहीं करते थे पर बहुत से लोग राज करते थे सथा राज के मंत्री महामंत्री वगैरह उच्चपद पर नियुक्त हो राजतंत्र भी चलाते थे और आज की भांति उनका वैवाहिक क्षेत्र संकुचितभी नहीं था पर उन जैन क्षत्रियों का विवाह शादी अजैन क्षत्रियों के साथ भी होता था और उन्हें समय समय प्रतिपक्षियों के साथ युद्ध भी करना पड़ता था तथा जो लोग व्यापार करते थे वे भी आज की भांति कमजोर नहीं थे। पर बड़ी भारी वीरता रखते थे पूर्व प्रकरणों में आर पढ़ आये है कि भारतीय व्यापारी अन्य प्रदेशों में जा जा कर उपनिवेश स्थापन किये थे वे व्यापार करते थे पर दल बल क्षत्रियोंके सदृश ही रखते थे। इत्यादि आचार्य सिद्धसूरि का शासन जैन समाज की उन्नति का समय था आपके शासन में जैन समाज मन धन व्यवसाय और धर्म से सम्रद्धशाली था आचार्य सिद्धसूरि अपने २२ वर्ष के शासन में जैन समाज की बड़ी कीमती सेवा बजाई थी अन्त में विक्रय संवत १९९ में आप स्वर्ग धाम को पधार गये बीसवें पट्टधर सिद्धसूरीश्वर विद्यागुण भंडारी थे शासन के हित सब कुच्छ करते चमत्कार सुचारी थे ज्ञान दिवाकर लब्धि धारक अहिंसाधर्म प्रचारी थे उनके गुणों का पार न पाया सुर गुरु जिभ्या हजारी थे इति भगवान पार्श्वनाथ के बीसवें पट्ट पर प्राचार्य सिद्धसूरि परम प्रभाविक आचार्य हुए" SANDARAMyaraAawaraP ENIRewan Jain E GS international For Private & Personal use only [ आचार्य सिद्धसरि का स्वर्गवास ary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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