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________________ आचार्य सिद्धहरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५७७-५९९ स्वीकार होनी चाहिए ? सूरिजी ने संघ अप्रेश्वरों की ओर इसारा करके कहाकि क्यों मन्त्रीश्वर क्या कह रहा है इसके लिये आपलोगों की क्या इच्छा है ? संघ अप्रेश्वरों ने कहाकि पूज्यवर ! मंत्रीश्वर भाग्यशाली हैं जो एक महान कल्याण कारी कार्य करने को प्रस्तुत हुआ है फिर श्राप जैसे प्रतापीक पुरुषों का सहयोग फिर इस लाभ का तो कहना ही क्या है संघ के ऐसा भाग्य ही कहां है कि एक तीर्थ भूमि की यात्राकर आत्मकल्याण कर सकें। हम मन्त्रीश्वर के कार्य की अनुमोदना करते हैं और सब लोग यात्रा के लिए चलने को तैयार हैं। बाद सूरिजी ने भी अपनी स्वीकृति फरमादी अतः मन्त्रेश्वर के सब मनोरथ सफल हो गये वस जयध्वनि के साथ सभा विसर्जन हुई। संघ की बात विद्यद्वेग की भाँति नगर भर में फैल गई और लोग तीर्थयात्रा के लिये तैयारियाँ करने लग गए मन्त्रीश्वर ने आसपास के प्रदेशों में आमन्त्रण पत्रिकाएँ भेजवादी चतुर्मास समाप्त होते ही आस पास में चतुर्मास करने वाले 'साधु सानियां' तथा खूब गेहरी तादाद में संघ भी एकत्र होगया शुभ मुहूर्त मार्गशर्ष शुक्ल पंचमी के दिन मन्त्री मुकन्द के संघपतित्व में संघने प्रस्थान कर दिया पट्टावली कर लिखते है कि कइ पांचसो साधु साधियों और दश हजार नरनारी संघ में थे क्रमशः छरी पाली चलता हुआ संघ उपकेशपुर पहुंचा तो वहाँका श्रीसंघ ने आचार्य श्रीसिद्धसूरि के साथ श्रीसंघ का श्रादर सत्कार किया ओर संघने भी अपनी जन्मभूमि एवं भगवान महावीर की यात्रा की मन्दिर में अष्टान्हिका महोत्सव पूजा प्रभावना स्वामीवात्सल्य और ध्वज महोत्सव कर अपने जीवन को सफल बनाया तत्पश्चात मेदपाट में विहार करने वालों के साथ संघ वपिस लौट गया और सूरिजी महाराज वहां के राजा प्रजा के आग्रह कुछ अर्सा की स्थिरता कर वहाँ की जनता को धर्मोपदेश देकर धर्म की जगृति एवं उन्नति की जब सूरिजी महाराज विहार का इरादा कियातो रात्रि के समय देवी सच्चायिका सूरिजी की सेवामें उपस्थित हो प्रार्थना की कि प्रभो! आपका यह चतुर्मास उपके रापुर में ही होना चाहिये उप केशगच्छाचार्यों का कमसे कम एक चतुर्मास तो उपकेशपुर में अवश्य होना ही चाहिये पूज्यवर ! यह आपके पूर्वज रत्नप्रभसरि के उपकार की भूमिका हैं इत्यादि देवीने खूब आग्रह से विनती की इस पर सूरिजी ने फरमाया देवी अभी तो बहुत समय है देवीने कहा हाँ समय बहुत है पर आप आस पास के क्षेत्रों में विहार कर पुनः यहाँ पधार कर चतुर्मास तो यहाँ ही करावे आपकों बहुत लाभ होगा ? सूरिजी ने कहा ठीक है देवीजी आपकी विनति कों हमारे पूर्वजोंने स्वीकार कर लाभ उठाया था अतः क्षेत्र स्पर्शना होगी तो मेरी भी ना नहीं है। दूसरे दिन वहां के राजादि श्रीसंघ को मालूम हुआ कि सूरिजी महाराज विहार करने वाले हैं अतः सकल श्रीसंघ एकत्र होकर चतुर्मास के लिये बहुत अाग्रह से प्रार्थना की इस पर सूरिजी महाराज ने वही उत्तर दिया जो देवी को दिया था सूरिजी महाराज उपकेशपुर से विहार कर माण्डव्यपुर शेखपुर श्रासिका दुर्ग खटकुंपपुर मुग्धपुर नागपुर मेदनीपुर पद्मावती हंसावली शाकम्भरी आदि क्षेत्रों में भ्रमन कर एवं जनता को खूब धर्मोपदेश देकर धर्म की प्रभावना की और पुनः उपकेशपुर पधार कर वह चतुर्मास उपकेशपुर में ही करदिया जिससे देवी के एवं श्री संघ के हर्ष का पार नहीं था। भाग्यवशात् उपकेशपुर और उसके आसपास के प्रदेश नहीं पर सर्वत्र ऐसा भयंकर दुकाल पड़ा कि अन्न के अभाव दुनिया में हाहाकार एवं त्राहि-त्राहि मच गई इस प्रकार जनता का दुःख सूरिजी से देखा एवं सुना नहीं गया आपने अपने व्याख्यान में ऐसा उपदेश दिया कि उपकेशपुर के साहूकार लोगों ने एक एक दिन मुकर्रर कर ३६० दिन लिख लिया कि देश भर में अपने योग्य पुरुषों को भेजकर मनुष्यों को अन्न और आघट नगर से तीर्थों का संघ ] Jain Education interno For Private & Personal Use Only ६०५ www.janelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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