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________________ वि० सं० १७७–१९९ वर्ष । [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास पशुओं को घास वगैरह का माकूली इन्तजाम करवा दिया इस कार्य में करोड़ों रुपये व्यय कर जहां जिस भाव में मिला अन्न और घास मंगवा कर अपने देशवासी भाइयों के प्राण बचाये पट्टावलिकारों ने लिखा है कि विक्रम सं० १९५ का दुःकाल तो केवल उपकेशपुरवासियों ने करोड़ों द्रव्य व्यय कर निकाल दिया पर अशुभ कर्मोदय दूसरे वर्ष अर्थात् वि० सं० १९५ के वर्ष भी दुःकाल पड़ गया जिसको निकालना तो एक कठिन समस्या खड़ी हो गई कारण द्रव्य के लिये तो कमी नहीं थी पर अन्न एवं घास मिलना मुश्किल हो गया तथापि सूरिजी के उपदेश से लोगों ने देश के हित खूब उद्यम किया देश और विदेश में जहां जिस भाव से मिल सका वहां से अन्न और घास मंगवा कर जनता को मरती हुई को बचाई। उस समय एक तो उपकेशवंशियों के पास द्रव्य बहुत था दूसरे उनके उपदेशक जैनाचार्य दया के अवतार ही थे उन्हों का उपदेश परोपकार के लिये ही हुआ करता था अतः महाजन संघ परोपकार के लिये बात ही बात में करोड़ों रुपये खर्च कर डालते थे यही कारण है कि केवल साधारण जनता ही क्यों परन्तु बड़े बड़े राजा महाराज महाजनसंघ का आदर सत्कार किया करते थे और नगरसेठ जगतसेठ वगैरह उपाधियों से सन्मान किया करते थे। इन दोनों भयंकर दुःकालों में साधुओं का विहार तक भी प्रायः बन्द सा ही हो गया था जब दुःकाल के अन्त में पुनः सुकाल हुआ तब जाकर साधुओं का विहार हुआ आचार्य सिद्धसूरीश्वरजी मरुधर के छोटे बड़े प्राम नगर में विहार कर जैनधर्म का खूब प्रचार एवं उद्योत किया था रत्नपुर विजयपुर ताबावती पाल्हीकापुरी कोरंटपुर सत्यपुर भीनमाल जाबलीपुर शिवपुरी चन्द्रावती पद्मावती आदि नगरों में भ्रमन करते हुए आपश्री शाकम्भरी नगरी में पधारे वहां के राजा नागभट्ट को जैनधर्म में दीक्षित किया “यथा राजास्तथा प्रजा" धर्म करने में उत्साही बन गये। राजा नागभट्ट ने एक समय सुरिजी से प्रार्थना की कि हे प्रभो! अब आपकी वृद्धावस्था है तो आप अपने पट्ट पर किसी योग्य मुनि को आचार्य बनावें कि इस पद का महोत्सव करने का सौभाग्य इस नगर को मिले कारण हमारी जानकारी में इस प्रकार का उत्तम कार्य इस नगरी में नहीं हुआ है केवल एक मेरी ही नहीं पर सकल श्रीसंघ की यही इच्छा है विशेषता में यहां की जनता चाह रही है कि वादी चक्रवर्ती उपाध्याय रत्नभूषण महाराज को पद प्रतिष्ठित किया जाय अतः आप जैन शासन की प्रभावना करने योग्य हैं इत्यादि । सूरिजी ने कहा भावुकों ! आपकी भावना अच्छी है पर मैं कल विचार कर आपको जवाब दूंगा। __ आचार्य श्री ने रात्रि समय देवी साचायिका को याद किया देवी आकर सूरिजी के चरण कमलों में वन्दन किया और अर्ज की कि प्रभो ! मेरे योग्य कार्य हो सो फरमावे ? सूरिजी ने कहा कि मेरी इच्छा है कि उपाध्याय रत्नभूषण को सूरि पद दिया जाय तथा यहां के श्रीसंघ की भी उत्कण्ठा है इसमें आपकी क्या राय है ? देवी ने कहा पूज्यवर ! आप जो विचार किया है वह बहुत ही उत्तम है उपाध्यायजी इस पद के योग्य एवं सर्व गुण सम्पन्न है श्राप इनको पदार्पण कर उपकेशपुर पधार इत्यादि कहकर देवी आदृश्य हो गई सुबह सूरिजी राजादि सकल संघ के सामने अपने विचार प्रगट कर दिये बस फिर तो कहना ही क्या था जनता का उत्साह खूब बढ़ गया और वे अपना कार्य सम्पादन करने में जुट गये जिन मन्दिरों में अष्टान्हिका महोत्सव प्रारम्भ करवा दिया और आस पास के प्राम नगरों में आमन्त्रण पत्र भेज दिये ठीक समय पर बहुत से भक्त जन शाकम्भरी में एकत्र हो गये और सूरिजी महाराज ने शुभमुहूर्त में उपाध्याय रत्नभूषण को सूरि पद प्रदान कर आपका नाम रत्नप्रभसूरि रख दिया तत्पश्चात् श्राचार्य सिद्धसूरि उपकेश. Jain Edge international For Private & Personal use only [ शाकम्भ री का राव नागभट्ट ry.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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