________________
[ ५२ | उपदेश से श्राप ने जैनधर्म स्वीकार कर जैनधर्म का खूब प्रचार किया यहां तक कि उन्होंने यह उद्घोषना करवादी कि कोई भी व्यक्ति भ० नेमिनाथ के पास दीक्षा ले उनके लिये मैं जो चाहे सहायता करने को तैयार हूँ । इतना ही क्यों पर खास मेरे पुत्र एवं राणियां वगैरह कोई भी दीक्षा ले तो मैं बड़ी खुशी से आज्ञा देदेता हूँ । इस आज्ञा से श्रीकृष्ण की राणियों पुत्र और नागरिकों ने प्रभु नेमिनाथ के पास दीक्षा ली थी इस धर्म दलाली से ही श्रीकृष्ण श्रावती चौवीसी में अमामनाम के बारहवें तीर्थंकर होंगे। इस कारण जैन संघ श्रीकृष्ण को दिन प्रतिदिन ७ सातवार नमस्कार करते हैं ।
७ शंका का समाधान — कई लोग यह शंका किया करते हैं कि जैनों ने मनुष्यों के कोसों तक शरीर और असंख्यत वर्षों का आयुष्य माना है यह कैसे संभव हो सकता है ? इस शंका के साथ हमारे भाई जैनों के माने हुए काल का भी ज्ञान कर लेते तो शंका को स्थान ही नहीं मिलता ।
मनुष्यमात्र का कर्तव्य है कि जिस किसी धर्म के शास्त्र के विषय में शंका करे तो पहले उन धर्म के सिद्धान्त का ज्ञान हासिल करले खैर । देखिये जैन सिद्धान्तों में तीन प्रकार का अंगुल माना है १ - प्रमाणां गुल २ आत्मगुल ३ उत्सेदांगुल । जिसमें प्रमाणांगुल तो भ० ऋषभदेव के हाथ की अंगुल । आत्मांगुल जिस समय जैसा मनुष्य हो उसके हाथ की अंगुल और उत्सेदांगुल श्राधे पांचवा श्रारे के लघु मनुष्यों की अंगुल । जिन मनुष्यों को जैनशास्त्र ने बड़े शरीर वाला माना है वे मनुष्य श्रात्मगुल से तो चार हाथ के ही होते हैं उनको बड़ा शरीर वाले कहते हैं वह उत्सेदांगुल की अपेक्षा से कहा जाता है जैसे एक दो वर्ष का बचा है वह अपने हाथ से चार हाथ का ही है पर उस दो वर्ष के बच्चा के हाथ से जवान मनुष्यों का नाप किया जाय तो करीब १५-१६ हाथ का हो सकता है यदि अपेक्षा के अज्ञात मनुष्य को कह दिया जाय कि श्राज के जवान, मनुष्य १५-१६ हाथ के होते है तो वह नहीं मानेगा पर जब उसको यह समझाया जाय कि हम जिस जवान मनुष्य को १६ हाथ के कहते हैं वह हाथ दो वर्ष के बच्चा का है तब उसकी समझ श्री जायगा इसी प्रकार असंख्याता काल पूर्व जो मनुष्य वे दीर्घ काय वाले तो थे ही फिर उनके शरीर का माप उन आधा पांचवा श्रारा के मनुष्यों की अंगुल से किया जाय तो उनके बड़े शरीर में शंका रही नहीं सकती है जैनो ने जिन मनुष्यों के शरीर को बड़ा माना है वह काल की अपेक्षा से माना है ।
देखिये भ० महावीर का शरीर उन आधा पांचवा श्रारे के मनुष्यों के हाथ के नाम से सात हाथ का माना है भ० महावीर के २५० वर्ष पूर्व पार्श्वनाथ हुए उनका शरीर ९ हाथ का था उनके ८३७५० वर्ष पूर्व बावीस नेमिनाथ हुए उनका शरीर १० धनुष्य का माना है उनके पूर्व पांच लक्ष वर्ष नमिनाथ हुए उनका शरीर १५ धनुष्य का था उनके पू' छ लक्ष वर्ष मुनिसुव्रत हुए उनका शरीर २० धनुष्य का था इस प्रकार ज्यों ज्यों काल बढ़ता जाता है त्यों त्यों शरीरमान भी बढ़ता जाता है और जैसे काल की अधिकता से शरीर का मान बढ़ता गया वैसे ही मनुष्यों का श्रायुष्य भी बढ़ता गया जब प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव को इतना काल होगया कि गिनती के भी परे है अर्थात् मनुष्य उस काल की गिनती नहीं लगा सकता है उनका शरीर ५०० धनुष्य को और आयुष्य ८४ लक्ष पूर्व की थी यदि मनुष्य के योग्य बुद्धि और अनुभव है वह तो इस बात को कदापि इन्कार नहीं कर सकता है ।
वर्तमान में पुरातत्व की शोध खोजसे कइ प्राचीन ऐसे भी पदार्थ मिले हैं कि जिनको बिना देखे कोह मुह से कह दे तो मानने में शंका ही रहती है जैसे एक मनुष्य की खोपडीमें एक सौ पौन्ड से भी अधिक गाहु भरा
जा सकता है एक मनुष्य के दोनो आखों के बीच अठारहइंच का अन्तर, एक मनुष्य के पौने दो तोले का एक Jain एक दान्त है समुद्र में एक मच्छी चौरासी फटकी लम्बी जिसके तदरसे दो गाठे रूह की निकली हैं यदि
ry.org