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[ ५३ 1 पडों उदाहरण हमारी आखों के सामने उपालब्ध हैं जिसके कालकी हम गिनती लगासकते हैं जब गिनती के
है जिनका काल उसकाल के पदार्थ कितने लम्बे चौड़े होंगे जिसका अनुमान लगाना बुद्धि के बहार की ही -है अत: जैनों के मृत भविष्य वर्तमान काल के ज्ञाताओं ने अपने तीक्षण ज्ञानसे जिस बातको अपने व द्वारा देखकर लिखी है उसमें शंका हो ही नहीं सकती है इत्यादि ।
८-नौवों सुबुद्धिनाथ का शासन विच्छेद और ब्राह्मणभासों की उत्पतिः-इस समय हुन्डावसर्पिणी बल का महाभयंकर असर भ० सुबुद्धिनाथ के शासन पर इस कदर का हुआ कि स्वल्पकाल से ही आपके शासन का उच्छेद हो गया अर्थात सुविधिनाथ भगवान मोक्ष पधारने के बाद थोडे ही काल में मुनि, आर्याए श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ व सत्यागम और उनकी उद्घोषना करनेवाले लोप हो गये ।।
भ० ऋषभदेव के अधिकार में लिख आये हैं कि राजा भरत ने चार आर्य वेद बनाकर जैन ब्राह्मणों ने दिये थे और वे उन वेदों द्वारा संसार का उपकार करते थे जिससे उन जैन ब्राह्मणों की मान्यता जैसे राजा महाराजा करते थे वैसे ही प्रजा भी करती थी, उस समय उनमें पूजा सत्कार के योग्य गुण थे । इस समय शासन उच्छेद होने से उन ब्राह्मणों में स्वार्थ वृत्ति से जो भगवान् आदीश्वर के उपदेश से भरतचक्रवर्ती ने चार आर्यवेद जनता के कल्याण के लिये बनाये थे उनमें इतना तो परिवर्तन कर दिया कि जहाँ निःस्वार्थपने जनता का कल्यान का रास्ता था वह स्वार्थवृति से दुनिया को लुटने का एवं अपनी आजीविका का साधन बना लिया और नये नये प्रन्यादि की रचना भी कर डाली। कारण उस जमाने की जनता ब्राह्मणों के ही आधीन हो चुकी थी, सब धर्म का ठेका ब्राह्मणभासों ने ही ले रखा था ; तब तो उन्होंने गौदान, कन्या हान भूमिदान आदि का विधि-विधान बना के स्वर्ग की सड़क को साफ कर दी। इतना ही नहीं किन्तु ऐसे भी प्रन्थ बना दिये कि जो कुच्छ ब्राह्मणों को दिया जाता है वह स्वर्ग में उनके पूर्वजों को मिल जाता हैं तथा ब्राह्मण है सो ही ब्रह्मा है इत्यादि । क्रमशः धर्मनाथ भगवान के शासन तक जैनधर्म स्वल्पकाल उदय और विशेषकाल अस्त होता रहा इस सात जिनान्तर में उन ब्राह्मणभासों का इतना तो जोर बढ़ गया कि इनके आगे किसी की चल ही नहीं सकती थी ब्राह्मणों को इतने से ही संतोष नहीं हुआ था पर उन आर्यवेदों का नाम तक बदल के उनके स्थान पर ऋग्वेद, युजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद नाम रख दिया. इन वेदों में भी समय समय परिवर्तन होता गया था, जिस किसी की मान्यता हुई वह भी इनमे श्रुतियाँ मिलाते गये. अन्त में यह छाप ठोक दी कि वेद ईश्वरकृत है और इन देशों को न माने वह नास्तिक हैं । वेदों में विशेष श्रुतियाँ हिंसामय यज्ञों के लिये ही रचि दी गई थी। जिसमें भी याज्ञवल्क्य सुलसा और पिप्पलादने तो नरमेघ, मातृमेघ, पितृमेघ, गजमेघ, अश्वमेघ तक का मी विधिविधान ठोक मारा और ऐसा यज्ञ किया भी था। वेदों में "याज्ञवल्केतिहोवाच" यानि याज्ञवल्क्य ऐसा कहता है और उपनिषदों में कहीं कहीं पिप्पलाद का भी नाम आता है । इत्यादि
8-भ० शीतलनाथ के शासन में हरिवंश की उत्पति कौसंवी नगरी में एक वीर नाम का सालवी रहता था उसकी स्त्री वनमाल बहुत रूपवंती थी जिसको राजा ने बलात्कार अपनी रानी बना ली जिससे वीर पागल होकर नगर में वनमाला २ करता फिरता था एक दिन राजा और वनमाला ने झरोखा में बैठे हुए वीर को पागलसा फिरता हुआ देखा तब उन दोनों के दिल में आया कि अपुनलोगों ने अन्याय किया इत्यादि भद्रिक परिणाम आते ही उन दोनों पर विद्युत्पात होने
* इस विषय में मुनिवरयं श्रीदर्शनविजयजोम की लिखी विश्वरचना नाम की पुस्तक का अवलोकन करना चाहिये ।
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